
मोदी सरकार के नये कृषि कानूनों को खारिज करेंगे कांग्रेस शासित प्रदेश

नई दिल्ली:- कृषि सुधार कानूनों के खिलाफ अपने कड़े विरोध को नये पायदान पर ले जाते हुए कांग्रेस ने पार्टी शासित राज्यों को केंद्र के इस नये कानून को अप्रभावी करने का कानूनी विकल्प तलाशने पर गौर करने का निर्देश दिया है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने राज्यों के अधिकार क्षेत्र में केंद्र के अतिक्रमण के खिलाफ संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप इस विकल्प पर विचार करने को कहा है। वहीं, पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने नये कानून के खिलाफ किसानों के विरोध प्रदर्शन का पूरा समर्थन करते हुए कहा नया कृषि कानून किसानों के लिए मौत का फरमान है।
संसद से सड़क तक कृषि कानूनों के खिलाफ कांग्रेस का प्रदर्शन
कांग्रेस शासित राज्यों को सोनिया गांधी की ओर से दिए गए इस निर्देश से साफ है कि संसद से सड़क तक कृषि कानूनों के खिलाफ पार्टी लड़ाई तो जारी ही रखेगी। साथ ही केंद्र सरकार के खिलाफ इसको लेकर कानूनी लड़ाई का नया मोर्चा भी खोला जाएगा। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कृषि कानूनों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की बात कह इस ओर इशारा भी कर दिया है। केरल से कांग्रेस के एक सांसद ने तो इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दाखिल कर दी है।
केंद्र के नए कृषि कानून को लागू करने के लिए राज्य बाध्य नहीं
कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने बयान जारी कर बताया कि सोनिया गांधी की ओर से पार्टी शासित राज्यों को इन कानूनों को खारिज करने के लिए विधायी संभावनाएं तलाशने को कहा गया है। पार्टी के अनुसार, संविधान के अनुच्छेद 254 (2) के तहत राज्यों की विधानसभाओं को केंद्र द्वारा पारित ऐसे कृषि विरोधी कानूनों को निरस्त करने का अधिकार है, जो राज्यों के संवैधानिक अधिकार पर अतिक्रमण करते हैं। वेणुगोपाल के मुताबिक, इस विकल्प के जरिये केंद्र के नये कठोर कृषि कानूनों को लागू करने के लिए कांग्रेस शासित राज्य बाध्य नहीं होंगे।
राहुल गांधी बोले- भारत में लोकतंत्र मर चुका है
कृषि कानूनों के खिलाफ देश भर में विरोध आंदोलन कर रही कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों समेत हर राज्य में उसके बड़े नेता सोमवार को विरोध मार्च में भी शामिल हुए। राहुल गांधी ने इस विरोध मार्च के समर्थन में करते हुए ट्वीट में राज्यसभा में उपसभापति हरिवंश की ओर से कृषि कानूनों को जबरन पारित कराए जाने की खबर का हवाला दिया। राहुल ने कहा, 'कृषि कानून हमारे किसानों के लिए मौत की सजा है। उनकी आवाज सांसद के अंदर और बाहर कुचल दी गई। ये इस बात का प्रमाण है कि भारत में लोकतंत्र मर चुका है।'
आसान नहीं है केंद्रीय कानून निरस्त करना
कृषि पर केंद्र के हालिया कानूनों को निरस्त करना संविधान को चुनौती देने समान हो सकता है। एक विशेषज्ञ के अनुसार, मंडी संशोधन कानून एग्रो ट्रैड के तहत बनाए गए हैं, जो राज्य सूची में आने वाले कृषि से परे समवर्ती सूची का विषय है। यानी केंद्र और राज्य दोनों को इस पर कानून बनाने का अधिकार है, लेकिन संविधान के अनुसार, अगर केंद्र ऐसे विषय पर कोई कानून बनाता है तो उसे ही प्रभावी माना जाएगा। यही कारण है कि पंजाब ने इस कानून से बचने के लिए कोई कानून बनाने की बजाय पूरे प्रदेश को मंडी बनाने की तरकीब सोची।
छग में किसानों के लिए नया कानून बनाएगी सरकार
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कृषि विधेयक कानून को गलत ठहराते हुए कहा कि केंद्र सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य को भी खत्म करना चाहती है। छत्तीसगढ़ के किसान इसी मूल्य पर उपज का सौदा करते हैं। छत्तीसगढ़ में हम किसानों के साथ अन्याय नहीं होने देंगे, इसके लिए कानून बनाएंगे। एयरपोर्ट और रेलवे स्टेशन बेचने के बाद इनकी नजर किसानों की जमीन पर है। केंद्रीय कृषि विधेयक केंद्र ने पारित किया, वह नियमों के विपरीत है। राजीव भवन में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के साथ रविवार को प्रेसवार्ता में मंत्री रविंद्र चौबे, मोहम्मद अकबर, डा. शिव डहरिया भी मौजूद थे। उन्होंने कहा कि पूरा देश महामारी से जूझ रहा है, तब इन कानूनों को गुपचुप तरीके से लाया गया। पूरे मीडिया का ध्यान एक्टर सुशांत सिंह की मौत मामले में था, तब कानून बनाया गया। केंद्र सरकार एफसीआई को खत्म कर देना चाहती है। इससे छत्तीसगढ़ जैसे अनाज उत्पादक राज्यों को नुकसान होगा।
संविधान में कृषि राज्य सरकार का विषय है, इस पर कानून बनाने का अधिकार राज्य को है। मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा पारित बिल अवैधानिक है, ट्रेड शब्द जोड़कर बिल लाया गया, जो संघीय ढांचे के विपरीत है, ऐसी स्थिति में भविष्य में केंद्र किसानों की उपज पर टैक्स भी लगा सकती है। श्रम कानून राज्यों के बिना विश्वास के लाया गया, शांता कमेटी की रिपोर्ट अनुसार यह कानून लागू किया गया। कृषि सुधार कानून, श्रम कानून में परिवर्तन को लेकर उन्होंने कहा कि जो बिल लाए गए, हम उसका विरोध करते हैं। केंद्र सरकार किसानों को धोखा दे रही है। इन्हीं किसान और गरीब विरोधी नीतियों की वजह से हम कृषि विधेयक और श्रम कानूनों को वापस लेने की मांग करते हैं। उन्होंने कहा कि एआईसीसी के नेतृत्व में देश के राष्ट्रपति से अनुरोध करेंगे कि इस कानून पर हस्ताक्षर न करें।
उन्होंने कहा कि कांट्रैक्ट फॉर्मिंग में कई कानूनी दांव-पेंच हैं, जिसमें अनपढ़ और कम पढ़े-लिखे लोग फंसकर रह जाएंगे, व्यापारी अब सस्ते दाम पर उपज खरीदकर मनमाने दाम पर बेचेंगे। यह पीडीएस सिस्टम को खत्म करने की साजिश है। किसानों को पहले भी अपनी उपज बेचने के लिए छूट थी। छत्तीसगढ़ में 90 प्रतिशत किसानों को एमएसपी के अलावा अतिरिक्त भी लाभ दिया गया है। विधेयक में इस बात का प्रावधान नहीं है कि एमएसपी से कम दर पर फसल बेचने का अनुबंध नहीं किया जाएगा। इसके अतिरिक्त बाढ़, सूखे, अतिवृष्टि अथवा कीट प्रकोप की दशा में किसानों की क्षति की भरपाई का कोई प्रावधान नहीं है।