शरद यादव याद हैं? पिछले कुछ वर्षों से वह दरकिनार थे और अब तो दुनिया में भी नहीं रहे। वह राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के संयोजक थे। ढेर सारे दल तब जुड़े, जिसमें उठापटक के खतरे के बीच भी केंद्र में सरकार चली थी। ठीकठाक चली थी। तो, क्या शुक्रवार को देशभर के भाजपा-विरोधी 15 दलों के पटना में जुटकर शरद यादव जैसी भूमिका किसी को देंगे? भाजपा बार-बार सवाल कर रही है कि भाजपा के विरोध में इतनी लंबी बारात तो जुट गई है, लेकिन दूल्हा कौन होगा? तो, यह पक्का है कि विपक्षी दल शुक्रवार को दूल्हा, यानी अपनी ओर से प्रधानमंत्री पद का दावेदार नहीं चुनेंगे। तो, क्या सब अलग-अलग अपनी राह चलते रहेंगे? नहीं, इसी के लिए संयोजक का नाम पक्का होगा। नीतीश होंगे या कोई और? क्या लालू के लिए भी कुछ है?
भाजपा के साथ बार-बार मिलना और दूर होना, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए यह इकलौता निगेटिव प्वाइंट है। इसी के आधार पर आम आदमी पार्टी के कुछ नेताओं ने होर्डिंग्स के जरिए नीतीश-निश्चय पर सवाल भी उठाया है। दूसरी तरफ नीतीश कुमार के पक्ष में सबसे बड़ी और ताजा बात यह है कि उन्होंने अलग-अलग मोर्चे पर आपस में जूझ रहीं भाजपा-विरोधी पार्टियों को बहुत कम समय में एक जगह बैठक के लिए बुला लिया। इस बैठक के एजेंडे को लेकर नीतीश सरकार के मंत्री विजय कुमार चौधरी ने साफ कर दिया था। बता दिया था कि प्रधानमंत्री पद के दावेदार पर कोई बात नहीं होगी और न ही विभिन्न दलों के बीच चले आ रहे झंझट को अभी फ्लोर पर लाया जाएगा।
मुख्यमंत्री आवास के अंदर से निकल रही जानकारी पर भरोसा करें तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को फिलहाल शरद यादव की तरह संयोजक की भूमिका देने पर विचार किया जाएगा। फिलहाल अगर यह हो गया तो जीत की स्थिति में पीएम पद की दावेदारी पर निर्णय लेना आसान होगा। लेकिन, जिस तरह से ममता बनर्जी और स्टालिन गुरुवार को पटना पहुंचने के बाद पहले राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद से मिलने पहुंचे, उससे यह बात भी उठ रही है कि अभिभावक के रूप में उनके लिए भी समन्वय की कोई भूमिका तय की जाए। दोनों पद बिहार में बड़े-छोटे भाइयों के पास आने से एतराज की स्थिति हो सकती है, इसलिए यह भी संभव है कि जोन आधारित समन्वय के लिए चार-पांच अलग नेताओं के नाम तय हों। इसमें वामपंथी दलों के नेताओं के साथ कांग्रेस के किसी राष्ट्रीय नेता को जगह मिल सकती है।