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नई दिल्ली । भारत (India) में मैन्युफैक्चरिंग (manufacturing) को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई प्रॉडक्शन लिंक्ड इनसेंटिव यानी PLI स्कीम के असर से अब भारत, चीन (China) को पीछे छोड़ने के नजदीक पहुंच गया है. इस स्कीम का कैसा असर हो रहा है ये महज 2 आंकड़ों से साफ हो जाता है. सबसे पहला तो ये कि इस स्कीम के तहत इस साल मार्च तक 2.34 लाख करोड़ रुपये के निवेश (Investment) का वादा किया जा चुका था. वहीं इस निवेश से अगले 5 साल में 64 लाख लोगों को नौकरियां (jobs) मिलने की उम्मीद है.
लेकिन ये जानकर हैरानी हो सकती है कि सरकार अभी तक इस स्कीम के नतीजों से खुश नहीं है. दरअसल, जिन 14 सेक्टर्स में PLI स्कीम को शुरू किया गया है उनके नतीजे मिले-जुले रहे हैं. ऐसे में भारत को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने की सरकार की कोशिशों को झटका लगने की आशंका है. इसलिए जब अगले 10 साल तक दुनिया में भारतीय अर्थव्यवस्था के परचम लहराने के अनुमान मॉर्गन स्टेनली जैसी दिग्गज एजेंसियों द्वारा लगाए जा रहे हैं तो फिर इस सेक्टर को लेकर सरकार ज्यादा गंभीर है. इसके लिए सरकार PLI स्कीम को फास्ट-ट्रैक में डालने की तैयारी में है.
हाल ही में इसके लिए डिपार्टमेंट फॉर प्रमोशन ऑफ इंडस्ट्री एंड इंटरनल ट्रेड, नीति आयोग और वित्त मंत्रालय के बड़े अधिकारियों की पिछले हफ्ते बैठक हुई. इसमें पीएलआई स्कीम (PLI Scheme) में निवेश की स्थिति पर चर्चा हुई. समीक्षा में सामने आया कि बीते दो साल में कुछ सेक्टर्स में पीएलआई स्कीम ने कमाल कर दिया है. वहीं कुछ सेक्टर्स ऐसे भी हैं जहां उम्मीद के मुताबिक नतीजे नहीं मिले हैं. ऐसे में बैठक में चर्चा हुई कि इस स्कीम में किस तरह के सुधार किए जाने की ज़रुरत है जिससे इसको ट्रैक पर लाया जा सके. मंजूरियों को देने में दिक्कत से लेकर इसकी तमाम खामियों को पहचानकर दूर करने और फंड का सही इस्तेमाल करने पर विचार किया गया.
इस स्कीम को लेकर सरकार को इसलिए भी गंभीर होने की ज़रुरत है क्योंकि चीन अभी तक कोरोना से उबर नहीं पाया है. इसको रोकने के लिए वहां पर सख्त लॉकडाउन जारी है, जिससे दुनियाभर में सप्लाई चेन पर असर पड़ा है. ऐसे में दुनिया की कई कंपनियां अब चीन का विकल्प तलाश रही हैं जो भारत के लिए एक सुनहरा मौका है. फिलहाल सबसे ज्यादा दिलचस्पी ऑटोमोबाइल एंड ऑटो कंपोनेंट्स, एडवांस्ड केमिस्ट्री सेल बैटरीज, स्पेशियल्टी स्टील और हाई-एफिशियंसी सोलर पैनल्स में देखने को मिल रही है.
इसके अलावा ड्रोन, व्हाइट गुड्स, टेक्सटाइल्स, टेलीकॉम एंड नेटवर्किंग प्रॉडक्ट्स, फूड प्रॉडक्ट्स और मेडिकल डेवाइसेज में भी पीएलआई स्कीम शुरू की जा चुकी है. लेकिन इन सेक्टर्स में इसके नतीजे उम्मीद के मुताबिक नहीं रहे हैं. इसकी वजहों को तलाशकर अब इस बात पर जोर दिया जा रहा है कि PLI स्कीम में किस तरह के बदलाव किए जाएं जिससे सभी सेक्टर्स में इसका असर दिखाई दे और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को फायदा मिल सके.
कुल निवेश वादे के मुकाबले अभी तक 26 हजार करोड़ रुपये का निवेश अलग-अलग सेक्टर्स में हो चुका है. लेकिन जैसे ही अगले 5 साल में पूरा 2.34 लाख करोड़ रुपये का निवेश हो जाएगा तो कुल 64 लाख लोगों को रोजगार मिलने का अनुमान है. ऐसे में सरकार के लिए रोजगार और ग्रोथ के लिहाज से इस स्कीम को सफल बनाना बेहद जरुरी है.
2020 में सबसे पहले मोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स और फार्मा सेक्टर में PLI स्कीम को शुरू किया गया था. व्हाइट गुड्स सेक्टर में 64 कंपनियों को मंजूरी मिली है. इनमें से 15 कंपनियां प्रॉडक्शन फेज में हैं जबकि बाकी 49 कंपनियां अपने निवेश को अमली जामा पहनाने की प्रक्रिया में हैं.
Admin4
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