x
उत्तराखंड: बीते दो वर्षों में हिमालयी राज्यों में जंगलों में आग लगने की सर्वाधिक घटनाएं उत्तराखंड में हुई हैं। वहीं, देशभर में उत्तराखंड का पहले साल छठवां तो दूसरे साल सातवां स्थान रहा। फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (एफएसआई) के अध्ययन में यह बात सामने आई है।
इससे पहले आमतौर पर उत्तराखंड में कभी सर्दियों में जंगलों में आग नहीं लगती थी, लेकिन पहले लॉकडाउन के आखिर में जंगलों में पुनः मानव गतिविधियां बढ़ीं तो सर्द मौसम में भी जंगल आग की लपटों से घिर गए। एफएसआई की रिपोर्ट के अनुसार, कोविड की पहली लहर में देशभर में नवंबर 2019 से जून 2020 के दौरान एक लाख 24 हजार 473 वनाग्नि के मामले दर्ज किए गए।
उसके बाद नवंबर 2021 से जून 2022 के बीच कोविड की तीसरी लहर में दो लाख 23 हजार 333 फायर अलर्ट दर्ज किए गए।इस दौरान दौरान सबसे अधिक जंगल में आग की घटनाएं ओडिशा (51,968) में हुईं, उसके बाद मध्य प्रदेश (47,795), छत्तीसगढ़ (38,106), महाराष्ट्र (34,025), झारखंड (21,713) और छठवें नंबर पर सर्वाधिक घटनाएं उत्तराखंड (21,487) में दर्ज की गईं।
…तब अचानक जंगलों पर जैसे आक्रमण हो गया
मार्च 2020 के अंतिम सप्ताह में देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान जंगलों के भीतर लोगों की आवाजाही पूरी तरह से प्रतिबंधित थी। जब प्रतिबंधों में ढील दी गई, तो इससे जंगलों में लोगों का अचानक जैसे आक्रमण हो गया। उस दौरान जंगल की जमीन सूखी पत्तियों से भरी थी। वरिष्ठ पारिस्थितिकी वैज्ञानिक एसपी सिंह का कहना है कि इस दौरान जंगल की आग के लिए तमाम जैव और भौतिक कारक तैयार हो गए थे। जैसे ही लॉकडाउन खुला, तमाम पर्यटन और व्यावसायिक गतिविधियां शुरू हो गईं। यही सब जंगलों में आग का बड़ा कारक बने।
आग जानबूझकर लगाई जाती
पर्यटन और अन्य आर्थिक गतिविधियां भीं वजहमार्च 2020 से मई 2020 तक की लॉकडाउन अवधि के दौरान आईआईटी बॉम्बे और आईआईआरएस के वैज्ञानिकों ने जंगल की आग और मानव हस्तक्षेप के बीच संबंधों के बारे में एक अध्ययन किया। आईआईआरएस देहरादून के वरिष्ठ वैज्ञानिक अरिजीत रॉय के अनुसार, अध्ययन में जंगल की आग के लिए 70 प्रतिशत सीधे पर्यटन और अन्य आर्थिक गतिविधियों कारक के रूप में सामने आई हैं। इधर, सीईडीएआर के निदेशक (अनुसंधान) विशाल सिंह ने कहा कि इनमें से ज्यादातर आग की घटनाएं सड़कों के किनारे से शुरू हुईं। यह खुद ही इस बात का संकेत है कि आग जानबूझकर लगाई जाती है।
Rani Sahu
Next Story