उत्तराखंड

देहरादून के परेड ग्राउंड में आजादी के दिन हजारों लोगों ने मनाया था जश्न

Gulabi Jagat
15 Aug 2022 7:04 AM GMT
देहरादून के परेड ग्राउंड में आजादी के दिन हजारों लोगों ने मनाया था जश्न
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मन्नूगंज में 1947 से निभाई जा रही परंपरा
15 अगस्त 1947 को देहरादून में जश्ने आजादी का उल्लास सिर चढ़कर बोल रहा था। जहां अंग्रेजी सैनिकों की कदमताल और मार्च पास्ट होता था। वहां पर खिलखिलाते बच्चे, ऊर्जावान युवा व अतीत के संघर्षमय जीवन से तपे हुए बुजुर्ग चले आ रहे थे। जनकवि डा.अतुल शर्मा बताते हैं कि 1946 में फिरोजपुर जेल के रहते हुए उनके पिता स्वाधीनता संग्राम सेनानी व कवि श्रीराम शर्मा ने कई कविताएं लिखी।
इनका संग्रह आजादी के साल में प्रकाशित हुआ था। देहरादून से छापी गई इस पुस्तक की भूमिका लोक नायक जयप्रकाश नारायण ने लिखी थी। अतुल शर्मा बताते हैं कि उनके पिता अक्सर बताते थे कि उस दिन हिन्दू नेशनल स्कूल में विराट कवि सम्मेलन हुआ था। इसमें कवियों के स्कैच बनाये गये और उन्हें सम्मानित किया गया।
पन्द्रह अगस्त के दिन देहरादून के आसपास देहात से हजारों लोग परेड ग्राउंड, पैवेलियन में पहुंचे थे। तब ये दोनों ग्राउंड एक ही थे। टाउन हाल मेें कवि सम्मेलन, मुशायरा और कवि दरबार एक ही दिन होना शुरू हुआ था। जो वर्षों तक चलता रहा। आज भी यह परंपरा जारी है। मिडफोर्ड हाउस, देहरादून टी कंपनी में भी कार्यक्रम हुआ था।
मन्नूगंज में 1947 से निभाई जा रही परंपरा
देहरादून। मन्नूगंज मोहल्ले में हर साल 15 अगस्त और 26 जनवरी को तिरंगा फहराया जाता है। आजादी के पहले पर्व पर भी इसी जगह तिरंगा फहराया था। पहले स्व.फकीरचंद ने इस परंपरा को बरकरार रखा। अब ओमप्रकाश प्रजापति इस परंपरा को निभा रहे हैं। ओमप्रकाश प्रजापति ने बताया कि 15 अगस्त 1947 को मन्नूगंज में तिरंगा फहराया गया था।
आजादी के दिन मसूरी के होटल में हुई थी फ्री दावत
मसूरी। 15 अगस्त 1947 को आजादी के दिन मसूरी में एक तरफ जश्न का माहौल था तो दूसरी तरफ भारत विभाजन की घोषणा का दुख भी झलक रहा था। आजादी का जुलूस निकला, तिरंगा फहराया गया और मशहूर होटल में मुफ्त दावत भी हुई। फिर भी जश्न के बीच बंटवारे की टीस चुभती रही।
मसूरी को कई वर्ष बंटवारे के दर्द से उबरने में भी लगे। इतिहासकार जयप्रकाश उत्तराखंडी बताते हैं कि उस दौर में कांग्रेस के जाने-माने नेता एवं कश्मीर होटल के मालिक पंडित पीएन तन्खा के नेतृत्व में लंढौर के सर्वे मैदान से लाइब्रेरी स्थित सेवॉय होटल तक बड़ा जुलूस निकाला गया। सेवॉय होटल के मालिक कैप्टन कृपाराम ने होटल के आंगन में तिरंगा फहराया। कैप्टन कृपाराम मसूरी मजदूर संघ के अध्यक्ष भी थे। उन्होंने अपने होटल में जुलूस में शामिल लोगों को दोपहर का भोजन कराया था।
रौनक भरा रहा गुलाम मसूरी का आखिरी सीजन
साल 1947 की शुरुआत से ही मसूरी और देहरादून में बसे अंग्रेज और उनके परिजनों के मन में कई सारी आशंकाएं थीं। जनवरी से लेकर 15 अगस्त 1947 तक अंग्रेजों की दुविधा और भारतीयों की खुशी के बीच कोई तालमेल नहीं था। इतिहासकार जयप्रकाश उत्तराखंडी ने अपनी पुस्तक मसूरी दस्तावेज में इसका वर्णन किया है।
जयप्रकाश उत्तराखंडी के अनुसार, जिन अंग्रेजों की दो-तीन पीढ़ियां मसूरी में गुजरी हों, उनके लिए तो इंग्लैंड पराया मुल्क था। इसके बावजूद मसूरी में गुलामी के आखिरी सीजन (गर्मी के मौसम) में रौनक भरपूर रही। सवाय, हेक्मन्स, चार्लीबिले, स्टैंडर्ड होटलों की शान शौकत में कमी नहीं थी।
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