मौजूदा सरकार और विधानसभा के स्तर पर भवन निर्माण को लेकर दिलचस्पी दिखाई दे रही है। यही वजह है कि यह मसला एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है। जानकारों के मुताबिक, खुलकर पैरवी इसलिए नहीं हो रही है कि सरकारों को हमेशा से ही तीन-तीन विधानसभाओं के औचित्य और पहाड़ बनाम मैदान के सियासी सवालों का सामना करना पड़ सकता है।
देहरादून में राज्य की तीसरी विधानसभा बनाने की राह में अभी पर्यावरणीय स्वीकृति का पेंच फंसा है। रायपुर विधानसभा क्षेत्र में प्रस्तावित विधानसभा भवन के निर्माण के लिए राज्य सरकार को करीब 60 हेक्टेयर भूमि ट्रांसफर हो चुकी है। शेष भूमि के लिए अभी केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से अंतिम मंजूरी नहीं मिली है।
वन्यजीवों की सुरक्षा को लेकर एक वाइल्ड लाइफ मिटिगेशन प्लान केंद्रीय मंत्रालय को भेजा जाएगा। इसके बाद ही वन भूमि हस्तांतरण की प्रक्रिया पूरी हो पाएगी। नई सरकार के गठन के बाद देहरादून के रायपुर क्षेत्र में नई विधानमंडल भवन और नया सचिवालय बनाने की चर्चाएं गर्म हैं। हालांकि, अभी चयनित स्थान पर भूमि का पूरी तरह से हस्तांतरण नहीं हो पाया है।
केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से सैद्धांतिक मंजूरी पूर्व में मिल चुकी है। आसपास वनीय क्षेत्र होने की वजह से मंत्रालय ने कुछ शर्तें लगाई हैं, जिनके वन्यजीवों की सुरक्षा को लेकर एक योजना का प्रस्ताव तैयार होना है। वन विभाग के मुताबिक, प्रस्ताव तैयार कर केंद्रीय मंत्रालय को भेजा जाएगा।
करीब 61 हेक्टेयर वन भूमि का हस्तांतरण होना शेष
रायपुर में नई विधानसभा और सचिवालय भवन निर्माण के लिए करीब 300 एकड़ यानी करीब 121.45 हेक्टेयर भूमि चिह्नित है। इसमें से करीब 60 हेक्टेयर भूमि पर वनीय स्वीकृति मिल चुकी है। इसके लिए 2017 में ही राज्यसंपत्ति विभाग 7.62 करोड़ रुपये वन विभाग में जमा करा चुका है। शेष करीब 61 हेक्टेयर भूमि के लिए उसे करीब 16 करोड़ रुपये जमा कराने हैं। राज्यसंपत्ति विभाग ने अभी यह धनराशि जमा नहीं कराई है।
नई विधानसभा बनाने की जरूरत क्यों?
देहरादून में नई विधानसभा बनाने के पीछे जो कारण बताए जा रहे हैं, उनमें सबसे बड़ी वजह मौजूदा विधानसभा का छोटा आकार है। प्रदेश की सर्वोच्च प्रतिनिधि सभा की गरिमा के हिसाब से इसे भव्य, सुरक्षित और भावी जरूरतों को पूरा करने वाला होना चाहिए। शहर के बीचोंबीच होने की वजह से सत्र के दौरान स्थानीय शहरवासियों को ट्रैफिक जाम की समस्या से जूझना पड़ता है। विधानसभा और सचिवालय शहर से बाहर होने पर देहरादून शहर पर दबाव कम होगा।
खुलकर पैरवी करने की हिचक भी
देहरादून में एक और विधानसभा भवन बनाए जाने की खुलकर पैरवी करने से सत्तारूढ़ दल की हिचक हमेशा से दिखाई दी है। यही वजह है कि इस प्रस्ताव पर किसी भी सरकार में बहुत तेजी नहीं दिखी। लेकिन सूत्र बता रहे हैं कि मौजूदा सरकार और विधानसभा के स्तर पर भवन निर्माण को लेकर दिलचस्पी दिखाई दे रही है। यही वजह है कि यह मसला एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है। जानकारों के मुताबिक, खुलकर पैरवी इसलिए नहीं हो रही है कि सरकारों को हमेशा से ही तीन-तीन विधानसभाओं के औचित्य और पहाड़ बनाम मैदान के सियासी सवालों का सामना करना पड़ सकता है।
चिह्नित भूमि के लिए केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से सैद्धांतिक मंजूरी पूर्व में मिल चुकी है। मंत्रालय ने वन्यजीवों की सुरक्षा को लेकर कुछ शर्तें लगाई हैं। इसमें हाथियों के गलियारे जैसा कोई विषय नहीं है। वन्यजीवों की सुरक्षा को लेकर एक प्रस्ताव मंत्रालय को भेजा जाना है। इस प्रस्ताव पर मंजूरी के बाद ही शेष वन भूमि का हस्तांतरण हो पाएगा।