उत्तराखंड

राजन की महि, आईपीएस अफसर बनने के संघर्ष की कहानी है

Admin4
1 Aug 2022 9:54 AM GMT
राजन की महि, आईपीएस अफसर बनने के संघर्ष की कहानी है
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न्यूज़क्रेडिट; अमरउजाला

किताब दूध बेचने वाली एक अकेली मां की बेटी महि पर केंद्रित है। राजन नाम का एक सरकारी अफसर इस परिवार की जिंदगी में आता है। वह महि को देहरादून के एक बोर्डिंग स्कूल में दाखिला दिलाता है और हर कदम पर उसकी मदद करता है।

बहुत सामान्य परिवार की एक दस साल की बच्ची कैसे अपने शारीरिक और मनोवैज्ञानिक बदलावों से जूझते हुए आईपीएस अफसर बनने का अपना सपना पूरा करती है, इसका सुंदर चित्रण करने वाली एक किताब का विमोचन रविवार को देहरादून में हुआ।

'राजन की महि' शीर्षक वाली 136 पन्नों की इस किताब के लेखक हैं बी एस चौहान, जो भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षा कार्यालय के मीडिया सलाहकार हैं। चौहान खुद एक उच्च प्रशासनिक अधिकारी हैं। उनका कहना है कि उनकी किताब एक सच्ची कहानी से प्रेरित है। हिंदी में हंस प्रकाशन और अंग्रेजी में रुब्रिक्स पब्लिकेशंस से प्रकाशित इस किताब के विमोचन समारोह की अध्यक्षता वैली ऑफ वर्ड्स फेस्टिवल डायरेक्टर एवं लाल बहादुर शास्त्री प्रशासनिक अकादमी के पूर्व निदेशक डॉ. संजीव चोपड़ा ने की।

किताब दूध बेचने वाली एक अकेली मां की बेटी महि पर केंद्रित है। राजन नाम का एक सरकारी अफसर इस परिवार की जिंदगी में आता है। वह महि को देहरादून के एक बोर्डिंग स्कूल में दाखिला दिलाता है और हर कदम पर उसकी मदद करता है। राजन की स्नेहिल छांव तले महि बड़ी होती है, जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों से गुजरती है, प्रेम विवाह और तलाक के मुकाम पार करती है, लंदन में नौकरी हासिल करती है और उसके बाद स्वदेश लौटकर आईपीएस की परीक्षा पास करती है।

किताब के विमोचन के बाद डॉ. संजीव चोपड़ा ने कहा कि 'राजन की महि' में सबसे अच्छी बात यह है कि इस कहानी की नायिका में सिर्फ गुण ही गुण नहीं दर्शाए गए। उसकी कमियां, उसकी कमजोरियां भी दर्शाई गई हैं। यही बात महि की कहानी को मजबूत बनाती है। हिंदी फिल्मों की तरह उसमें हीरो-हिरोइन का सिर्फ एकतरफा पॉजिटिव रूप नहीं दिखाया गया। कोई विलेन है तो उसमें सिर्फ नेगेटिव बातें ही होंगी और कोई हीरो है तो उसमें सब पॉजिटिव ही होगा। ऐसा असल जिंदगी में नहीं होता।

इसलिए यह देखकर लेखक की बारीक नजर का पता चलता है कि महि की किशोरावस्था में उसकी छोटी-मोटी चोरियां करने या अधिक खाने जैसी आदतों का चित्रण भी किया गया है। साथ ही मासिक धर्म और पुरुषों के प्रति आकर्षण जैसी स्वाभाविक घटनाओं से गुजरते समय झेले जाने वाले मानसिक झंझावातों के प्रसंग भी कहानी को यथार्थ के करीब ले आते हैं। उन्होंने कहा कि एक साधन सीमित लड़की के सपनों के पूरे होने की यह कहानी खासी रोचक है और पाठक को एक बेहतर इंसान बनाने वाले कई अनुभव यह किताब देती है।

लेखक बीएस चौहान ने इस अवसर पर अपने पूर्व प्रकाशित कहानी संग्रह 'बेटी को तलाशती आंखें' का जिक्र भी किया। उन्होंने कैफे में आए डीएवी कॉलेज के छात्र-छात्राओं से किताब के बारे में बातचीत की और बताया कि कैसे ये किताबें लिखने की प्रेरणा उन्हें मिली। उन्होंने कहा कि सीएजी दफ्तर की व्यस्त दिनचर्या के बावजूद वह नियमित लेखन का समय निकालते थे। उन्होंने बताया कि यह किताब अमेजन पर उपलब्ध है। पुस्तक विमोचन के अवसर पर हुई परिचर्चा में अमर उजाला के संपादक संजय अभिज्ञान, पूर्व डिप्टी सीएजी अश्विनी अत्री, ओएनजीसी के पूर्व कार्यकारी निदेशक मनोज बर्तवाल, पीआईबी के एडीजी विजय, वैली ऑफ वर्ड्स से जुड़ीं रश्मि चोपड़ा समेत कई लोगों ने हिस्सा लिया।


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