न्यूज़क्रेडिट: अमरउजाला
हिमाचल की तर्ज पर उत्तराखंड में छोटे हाइड्रो पावर प्लांट की नई पॉलिसी तैयार की जा रही है। 25 मेगावाट तक की छोटी परियोजनाएं लगाने में विशेष राहत देने की तैयारी कर सरकार कर रही है। प्रोत्साहन को बनाई गई समिति ने भी की जीएसटी छूट और कम रॉयल्टी जैसी कई सिफारिशें कीं हैं।
बिजली किल्लत से जूझ रहे उत्तराखंड में अब गांवों के किनारे से होकर बहने वाली छोटी नदियां बिजली बनाएंगी और रोजगार भी देंगी। 25 मेगावाट तक की छोटी पनबिजली परियोजनाओं के लिए राज्य सरकार नई पॉलिसी बना रही है, जिसमें हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर बड़ी राहतें प्रदान की जाएंगी।
सरकार ने दो मेगावाट तक के छोटे हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट की स्थापना को 2015 में एक पॉलिसी बनाई थी। इस पॉलिसी के प्रावधान आसान न होने की वजह से लोगों में उत्साह नजर नहीं आया। हाइड्रो पावर प्लांट्स को लेकर प्रदेश में पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी अड़चनें आती रही हैं।
अब सरकार बिजली की किल्लत को कम करने, गांवों तक रोजगार को बढ़ावा देने के लिए 25 मेगावाट तक की छोटी पनबिजली परियोजनाओं के लिए नई नीति बना रही है। इस नीति से पहले सरकार ने एक समिति गठित की थी, जिसने हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर छोटे प्रोजेक्ट के लिए खास रियायतें देने की सिफारिश की है। नई पॉलिसी से पहले सरकार हिमाचल प्रदेश की हाइड्रो पावर पॉलिसी 2006 का अध्ययन भी कर रही है।
यह होगा लाभ
गांव-गांव तक छोटे हाइड्रो पावर प्लांट लगाने पर एक ओर जहां उस गांव के लोगों को रोजगार मिलेगा तो दूसरी ओर गांव या आसपास के कई गांवों में बिजली की आपूर्ति की राह आसान हो जाएगी। चूंकि, उत्तराखंड की नदियों में पानी का वेग काफी तेज है। इसलिए यहां स्टोरेज पानी के बजाय चलते पानी पर आसानी से छोटे प्लांट लगाए जा सकते हैं।
तेजी से बढ़ रही बिजली की जरूरत
प्रदेश में कोरोना लॉकडाउन के बाद से बिजली खपत के नए रिकॉर्ड बने हैं। पहली बार बिजली की मांग रोजाना 60 मिलियन यूनिट तक पहुंची। इसके सापेक्ष केंद्रीय व राज्य पूल से रोजाना करीब 35 से 40 मिलियन यूनिट तक उपलब्धता ही होती है। बाकी बिजली बाजार से खरीदनी पड़ती है। किल्लत की वजह से इस साल लोगों को बिजली कटौती की समस्या से भी जूझना पड़ा।
हिमाचल की तर्ज पर यह मिल सकती हैं राहतें
ग्राम पंचायत, पीडब्ल्यूडी, राजस्व, वन विभाग की अलग-अलग एनओसी से राहत। सभी नियमों का अनुपालन प्रोजेक्ट लगाने वालों को सुनिश्चित करना होगा। भूमि से संबंधित नौ विभागों की एनओसी से भी राहत।
- हर विभाग के अलग-अलग निरीक्षण के बजाय एक ही संयुक्त निरीक्षण समिति बनेगी जो प्रोजेक्ट के हर विभाग के नियमों का अनुपालन देखेेगी।
- ऊर्जा विभाग की ओर से टीईसी प्रमाणपत्र की जरूरत पांच मेगावाट तक की परियोजनाओं में नहीं होगी। इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 में इसमें राहत दी गई है।
- रॉयल्टी के तौर पर शुरू में राज्य को फ्री बिजली दस प्रतिशत या इससे कम होगी। हिमाचल में यह शुरू के 12 साल में तीन प्रतिशत, 12 से 30 साल में 13 प्रतिशत और 31 से 40 साल में 19 प्रतिशत है।
- 25 मेगावाट तक के प्रोजेक्ट लगाने पर इस पर लगने वाली जीएसटी पर सरकार छूट दे सकती है।
समिति ने की रियायतों की सिफारिश
सरकार ने छोटे हाइड्रो पावर प्लांट को प्रोत्साहन देने को एक समिति बनाई थी। इस समिति ने हिमाचल व अन्य राज्यों की पॉलिसी का अध्ययन करने के बाद सरकार से रियायतों की सिफारिश की है। समिति के सदस्य एवं यूजेवीएनएल के एमडी संदीप सिंघल ने बताया कि इसमें जीएसटी छूट, रॉयल्टी में राहत सहित कई रियायतों की सिफारिश सरकार को की गई है।
बड़े पावर प्रोजेक्ट की राह मुश्किल
सरकार ने वर्ष 2005 से 2010 के बीच दो दर्जन से अधिक जलविद्युत परियोजनाओं को मंजूरी दी थी। 30 हजार करोड़ की लागत वाली इन परियोजनाओं के पूरा होने से 2944.80 मेगावाट बिजली उत्पादन होता। गैर सरकारी संगठनों की ओर से एक-एक कर 24 छोटी-बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं का मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया। यह प्रकरण एनजीटी भी पहुंचा हुआ है। अदालत के आदेश पर वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने विशेषज्ञों की 12 सदस्यीय समिति गठित की थी। कई महीने के अध्ययन के बाद समिति ने अपनी रिपोर्ट मंत्रालय को दे दी थी। मंत्रालय की ओर से यह रिपोर्ट अदालत को सौंप दी गई, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इन 24 परियोजनाओं पर रोक लगा दी थी।
प्रदेश में 25 मेगावाट तक की छोटी जल विद्युत परियोजनाओं की बहुत संभावना है। गांव-गांव तक अपनी बिजली और अपने रोजगार के लिए हम हाइड्रो पावर पॉलिसी तैयार कर रहे हैं। इसके लिए हिमाचल प्रदेश की पॉलिसी का अध्ययन किया जा रहा है। इसमें कई तरह की रियायतें दी जाएंगी, ताकि लोग प्रोजेक्ट लगाने के लिए प्रोत्साहित हों।