देश की आन-बान-शान के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले शहीदों के लिए सरकारें बड़ी-बड़ी घोषणाएं तो करती हैं, लेकिन शहीदों की स्मृतियों को जिंदा रखने के लिए जो स्मारक और द्वार बने हैं, उनकी सुध लेना भी गवारा नहीं समझतीं। दून में जगह-जगह शहीदों के स्मारक बदहाल स्थिति में हैं, लेकिन कोई सुध लेने को तैयार नहीं है।
दून के 28 वीर सपूत थे, जिन्होंने कारगिल युद्ध में अपना सर्वाेच्च बलिदान दिया। इनमें मेजर विवेक गुप्ता, स्क्वाड्रन लीडर राजीव पुंडीर, राइफल मैन विजय भंडारी, नायक मेख गुरंग, राइफल मैन जयदीप भंडारी, राइफल मैन नरपाल सिंह, सिपाही राजेश गुरंग, नायक हीरा सिंह, नायक कश्मीर सिंह, नायक देवेंद्र सिंह, लांस नायक शिवचरण सिंह आदि वीर जवान शामिल हैं। सरकार ने इन वीर सपूतों की याद में बल्लीवाला चौक, बल्लूपुर चौक, न्यू कैंट रोड, चांदमारी, तुनवाला चौक, श्यामपुर प्रेमनगर, तेलपुर, नेहरूग्राम, कैनाल रोड, चाय बागान आदि जगहों पर स्मारक बनाए हैं
इनमें से अधिकतर स्मारकों की हालत दयनीय बनी हुई हैं। तेलपुर में बने शहीद देवेंद्र सिंह के स्मारक के आगे तो ठेली वालों से कब्जा जमा रखा है। कूड़े का ढेर भी लगा रहता है। कई स्मारकों के के आगे झाड़ियां उगी हुई हैं।
वहीं, कुछ सड़कों का नामकरण शहीदों के नाम पर किया गया, लेकिन शायद ही कोई ऐसी सड़क हो जो कारगिल शहीदों के नाम से जानी जाती हो। यहां तक कि सरकारी फाइलों में भी सड़कों के पुराने नाम ही अंकित हैं।
सरकार की ओर से शहीदों के परिजनों के लिए की गईं कई घोषणाएं अभी तक पूरी नहीं हो पाई हैं। शहीदों के परिजन 23 साल बाद भी इन घोषणाओं के लिए दर-दर भटक रहे हैं। राज्य सरकार शहीदों के एक परिजन को सरकारी नौकरी का दावा हर कार्यक्रम में करती है, लेकिन जिला सैनिक कल्याण विभाग के रिकॉर्ड के अनुसार कारगिल शहीद के किसी भी परिजन को आज तक नौकरी नहीं दी गई है।
केशर जन कल्याण समिति के अध्यक्ष एडवोकेट एनके गुसाईं ने कहा कि यह अफसोसजनक है कि सरकारों ने शहीदों के सम्मान में की गईं घोषणाओं को धरातल पर नहीं उतारा है। कारगिल शहीद राजेश कुमार के बड़े भाई शंकर थापा ने बताया कि सरकार ने उन्हें दस बीघा जमीन और पेट्रोल पंप की घोषणा की थी। रायपुर में जमीन दी गई, लेकिन वह किसी और की निकली। इसके बाद दूसरी जगह जमीन देने का वादा किया, लेकिन अभी तक न जमीन मिली और न पेट्रोल पंप।