उत्तराखंड

किसान फसल को पाले से बचाने के लिए करें यह काम

Gulabi Jagat
6 Jan 2023 12:23 PM GMT
किसान फसल को पाले से बचाने के लिए करें यह काम
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सर्दी का मौसम शुरू होते ही ठंडक बड़ी समस्या बनकर खड़ी हो जाती है। तेज ठंड के कारण फसलों पर पाला पड़ने की आशंका बढ़ जाती है। पाला किसी प्रकार का रोग ना होते हुए भी विभिन्न फसलों, सब्ज़ियों, फूलों एवं फल उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। पाले के कारण सब्ज़ियों में 80-90 प्रतिशत, दलहनी फसलों में 60-70 प्रतिशत तथा अनाज फसलों जैसे गेहूं व जौ में 10-20 प्रतिशत का नुक़सान हो जाता है। इसके अतिरिक्त फलदार पौधे जैसे- पपीता व केला आदि में भी 80-90 प्रतिशत तक का नुकसान पाले के कारण हो सकता है। ऐसे में किसानों को समय रहते अपनी फसल को पाले से बचाने के उपाय कर लेना चाहिए।
देश में प्रायः पाला पड़ने की सम्भावना 25 दिसम्बर से 5 फरवरी तक अधिक रहती है। रबी फसलों में फूल आने एवं बालियाँ/फलियाँ आने व बनते समय पाला पड़ने की सर्वाधिक सम्भावनाएं रहती है। पाला पड़ने के लक्षण सर्वप्रथम वनस्पतियों पर दिखाई देते हैं। अतः इस समय कृषकों को सतर्क रहकर फसलों की सुरक्षा के उपाय अपनाने चाहिये।
♦️पाला क्या होता है?
जब आसमान साफ हो, हवा न चल रही हो और तापमान काफी कम हो जाये तब पाला पड़ने की सम्भावना बढ़ जाती है। दिन के समय सूर्य की गर्मी से पृथ्वी गर्म हो जाती है तथा जमीन से यह गर्मी विकिरण द्वारा वातावरण में स्थानान्तरित हो जाती है इसलिए रात्रि में जमीन का तापमान गिर जाता है तथा कई बार तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस या इससे भी कम हो जाता है। ऐसी अवस्था में ओस की बूंदे जम जाती है। इस अवस्था को हम पाला कहते है।
♦️पौधों में पाला पड़ने से क्या नुकसान होता है?
पाले से प्रभावित पौधों की कोशिकाओं में उपस्थित पानी सबसे पहले अंतरकोशिकीय स्थान पर इकट्ठा हो जाता है। इस तरह कोशिकाओं में निर्जलीकरण की अवस्था बन जाती है। दूसरी अंतरकोशिकीय स्थान में एकत्र जल जमकर ठोस रूप में परिवर्तित हो जाता है। इससे आयतन में वृद्धि होती है और वृद्धि होने के कारण उसका दबाव चारों ओर से कोशिकाओं की दीवार पर पड़ता है, इसके साथ ही आसपास की कोशिकाओं पर दबाव भी पड़ता है, यह दबाव अधिक होने पर कोशिकाएँ फट जाती हैं और अंत में पौधा धीरे-धीरे सूखने लगता है।
इस प्रकार कोमल टहनियाँ पाले से नष्ट हो जाती हैं। पाले का अधिकतम दुष्प्रभाव पत्तियों व फूलों पर पड़ता है। अधपके फल सिकुड़ जाते हैं, पत्तियों व बालियों में दाने नहीं बनते, जिससे उनके भार में कमी आ जाती है। पाले से प्रभावित फसलों का हरा रंग समाप्त हो जाता है तथा पौधों का रंग सफेद सा दिखाई देने लगता है। पौधों में लगी पत्तियाँ, फूल एवं फल सब सूख जाते हैं।
♦️फसलों को पाले से कैसे बचाएँ?
जब वायुमंडल का तापमान 4 डिग्री सेल्सियस से कम तथा 0 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच जाता है, तो पाला पड़ता है। इसलिए फसलों को पाले से बचाने के लिए किसी भी तरह से वायुमंडल के तापमान को 0 डिग्री सेल्सियस से ऊपर बनाए रखना ज़रूरी हो जाता है। ऐसे कुछ परंपरागत एवं रासायनिक तरीके हैं जिन्हें अपनाकर किसान भाई फसलों को पाला लगने से बचा सकते हैं। इनमें से कुछ उपाय इस प्रकार है:-
♦️खेतों में सिंचाई से पाले का बचाव
जब भी पाला पड़ने की संभावना अधिक हो उस समय फसल में हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए। नमीयुक्त जमीन में काफी देरी तक गर्मी रहती है तथा भूमि का तापक्रम एकदम कम नहीं होता है। इससे तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस से नीचे नही गिरेगा और फसलों को पाले से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है। स्प्रिंकलर से सिंचाई की स्थिति में किसानों को प्रातः काल से सूर्योदय तक लगातार चलाकर पाले से होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है।
♦️खेत के पास धुआँ करके
गाँव में खेत खलिहानों में कृषि पैदावार के अपशिष्ट पदार्थ के रूप में पुआल, गोबर, पौधों की जड़ें, बाजरे की तुड़ी आदि कई चीजें रहती हैं। जब भी पाला पड़ने की आशंका नजर आए तो रात्रि में इन अपशिष्ट पदार्थों को जलाकर धुआँ पैदा करना चाहिए। यह धुआँ जमीन की गर्मी, जो विकिरण द्वारा नष्ट हो जाती है, उसे रोकता है। इससे तापमान जमाव बिंदु तक नहीं गिर पाता और पाले से होने वाली हानि से बचा जा सकता है।
♦️गंधक का छिड़काव करके पाले से फसल का बचाव
जिन दिनों पाला पड़ने की सम्भावना हो उन दिनों फसलों पर 1 एम.एल. गन्धक का तेजाब या डाईमिथाईल सल्फोआक्साईड प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। ध्यान रखें कि पौधों पर घोल की फुहार अच्छी तरह लगे। छिड़काव का असर दो सप्ताह तक रहता है। यदि इस अवधि के बाद भी शीत लहर व पाले की सम्भावना बनी रहे तो छिड़काव को 15-15 दिन के अन्तर से दोहरातें रहें या थायो यूरिया 500 पी.पी.एम. (आधा ग्राम) प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर छिड़काव करें।
सरसों, गेहूँ, चना, आलू, मटर जैसी फसलों को पाले से बचाने में गन्धक का छिड़काव करने से न केवल पाले से बचाव होता है, बल्कि पौधों में लौहा तत्व की जैविक एवं रासायनिक सक्रियता बढ़ जाती है जो पौधों में रोग रोधिता बढ़ाने में एवं फसल को जल्दी पकाने में सहायक होती हैं।
♦️डाई मिथाइल सल्फो-ऑक्साइड का छिड़काव करके
डीएमएसओ पौधों से पानी बाहर निकालने की क्षमता में बढ़ोतरी करता है, जिससे कोशिकाओं में पानी जमने नहीं पाता। इस तरह उनकी दीवारें नहीं फटती और फलतः पौधा नहीं सूखता है। इस रसायन का छिड़काव पाले की आशंका होने पर 75-100 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 800-1000 लीटर पानी में घोलकर करना चाहिए। यदि आशा अनुरूप परिणाम नहीं मिलें तो 10-15 दिनों बाद एक और छिड़काव करें तथा संस्तुत सावधानियाँ अवश्य बरतनी चाहिए।
♦️ग्लूकोज का छिड़काव करके
इसके प्रयोग से पौधों की कोशिकाओं में घुलनशील पदार्थ की मात्रा में वृद्धि हो जाती है। फलतः तापमान कम होने पर भी कोशिकाओं की सामान्य कार्य पद्धति पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता, जिससे फसल पाले के प्रकोप से बच जाती है। साधारणतः एक किलोग्राम ग्लूकोज़ प्रति हेक्टेयर की दर से 800-1000 लीटर पानी में मिलाकर फूल आने की अवस्था में छिड़काव करते हैं। आवश्यकता अनुसार 10-15 दिनों बाद इसका पुनः छिड़काव किया जा सकता है।
♦️पाले से फसल बचाव के अन्य उपाय
सीमित क्षेत्र वाले उद्यानों/नगदी सब्जी वाली फसलों में भूमि के ताप को कम न होने देने के लिये फसलों को टाट, पोलीथिन अथवा भूसे से ढक देना चाहिए। वायुरोधी टाटियांए, हवा आने वाली दिशा की तरफ यानि उत्तर-पश्चिम की तरफ बांधे। नर्सरी, किचन गार्डन एवं कीमती फसल वाले खेतों में उत्तर-पश्चिम की तरफ टाटियां बांधकर क्यारियों के किनारों पर लगायें तथा दिन में पुनः हटा देना चाहिए।
फलदार वृक्षों के पास में तालाब व जलाशयों का निर्माण करने से फल वृक्षों पर पाले का असर कम पड़ता है। इसके अलावा जिन क्षेत्रों में पाला पड़ने की आशंका अधिक हो वहाँ, चुकंदर, गाजर, गेहूं, मूली, जौ इत्यादि फसलें बोने से पाले का प्रभाव कम पड़ता है।
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