उत्तराखंड

क्रूरता: मामूली शरारत पर बच्चों के सिर पर डाला लीसा, आंखें सूजी

Gulabi Jagat
28 July 2022 5:12 AM GMT
क्रूरता: मामूली शरारत पर बच्चों के सिर पर डाला लीसा, आंखें सूजी
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अल्मोड़ाः जिले की स्याल्दे तहसील क्षेत्र में ग्राम पंचायत टिटरी में 5 मासूमों के साथ एक दिल दहला देने वाली घटना घटित हुई है. टिटरी गांव के 5 मासूमों की छोटी सी शरारत जान पर बन आई है. दरअसल अपनी गायों और बैलों को चराने जंगल गए बच्चों ने शरारत में लीसा ठेकेदार के कर्मचारियों द्वारा निकाले जा रहे लीसा के कुप्पों को फेंक दिया.
इतनी सी बात पर लीसा ठेकेदार के कर्मचारियों का पारा इतना हाई हो गया कि कर्मचारी बच्चों को उनके घर से पकड़कर लीसा डीपो लाए. पहले तो उनके नाम और पहचान पूछी और फिर उन्हें लीसा के कुप्पे देकर अपने अपने सिर पर डालने को कहा. इस क्रूर कृत्य को करते हुए वे बच्चों को लगातार धमका रहे थे क्या करोगे जिंदगी भर… इस घिनौने कृत्य का वीडियो भी स्वयं लीसा कर्मचारी ने बनाया है.
मामूली शरारत पर बच्चों के सिर पर डाला लीसा
वीडियो में साफ दिख रहा है कि 5 मासूम बच्चों को किस तरह धमकाया जा रहा है. वहीं, बच्चे भी सिर पर लीसा डालते हुए बोल रहे हैं कि उनकी आंखों में जलन हो रही है. वायरल वीडियो के कर्मियों पर अभी तक किसी भी तरह की कोई कार्रवाई नहीं हुई है. बताया जा रहा है लीसा के कारण कुछ बच्चों की आंख पर सूजन भी आ गई है. दूसरी तरफ निर्दलीय विधायक उमेश कुमार शर्मा ने फेसबुक पर वीडियो पोस्ट करते हुए सीएम धामी से मामले पर कार्रवाई की मांग की है.
क्या होता है लीसा: लीसा डामर (कोलतार) या गोंद की तरह चिपचिपा पदार्थ है. इसे रेजिन भी कहते हैं. लीसा चीड़ के पेड़ से निकलता है. चीड़ से निकलने वाला लीसा (रेजिन) राजस्व प्राप्ति का बड़ा जरिया है. लीसा का उपयोग तारपीन का तेल बनाने में होता है.
लीसा से उत्तराखंड को 200 करोड़ की आय: उत्तराखंड के वन महकमे को अकेले लीसा से सालाना डेढ़ से दो सौ करोड़ की आय होती है. चीड़ के पेड़ों से लीसा विदोहन के लिए 1960-65 में सबसे पहले जोशी वसूला तकनीक अपनाई गई. मगर इससे पेड़ों को भारी नुकसान हुआ. इसके बाद 1985 में इसे बंद कर यूरोपियन रिल पद्धति को अपनाया गया. इसमें 40 सेमी से अधिक व्यास के पेड़ों की छाल को छीलकर उसमें 30 सेमी चौड़ाई का घाव बनाया जाता है. उस पर दो मिमी की गहराई की रिल बनाई जाती है और फिर इससे लीसा मिलता है. लीसा अत्यंत ज्वलनशील है. उत्तराखंड के जंगलों में जो आग लगती है, उसका सबसे बड़ा कारण चीड़ के पेड़ हैं, जिनसे लीसा निकलता है.
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