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उत्तर प्रदेश
यूपी उपचुनाव : सत्ता और विपक्ष के लिए साबित होंगे लिटमस टेस्ट
Rani Sahu
13 Nov 2022 8:33 AM GMT
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लखनऊ, (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश में दो सीटों पर विधानसभा और एक सीट में लोकसभा के उपचुनाव होने हैं। यह चुनाव सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के लिए लिटमस टेस्ट साबित होंगे। 2024 में यहां लोकसभा चुनाव होने है। ऐसे में उपचुनाव के परिणाम पार्टियों की दशा और दिशा तय करने में सहायक होंगे।
मैनपुरी में मुलायम की विरासत और रामपुर में आजम की सियासत दांव पर है। खतौली सीट विधायक की सदस्यता जाने से उसे वापस लेने का दबाव भाजपा पर है। राजनीतिक पंडितों की मानें तो भाजपा और सपा के लिए यह तीनों सीटों के उपचुनाव परसेप्शन की लड़ाई है। मैनपुरी सीट की बात करें तो इस सीट पर यादव बाहुल्य होने के कारण बीते ढाई दशक से मुलायम परिवार का कब्जा रहा है। भाजपा 2024 के हिसाब से यादव लैंड कहे जाने वाले इन क्षेत्रों पर काफी दिन से काम कर रही है। इसी कारण उसने पहले एटा से हरनाथ यादव को राज्यसभा भेजने के बाद सुभाष यदुवंश को युवा मोर्चा का अध्यक्ष बनाया था। फिर एमएलसी बनाकर इस वोट बैंक को अपनी ओर खींचने के प्रयास में लगी है।
भाजपा ने लोकसभा चुनाव में 80 सीटों का लक्ष्य रखा है। जिसे हासिल करने के लिए उसने बड़ी लकीर खींची है। 2022 विधानसभा चुनाव के बाद से ही भाजपा की नजर सपा को कोर यादव वोटबैंक पर है। भाजपा ने दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ के जरिए सपा के मजबूत आजमगढ़ में जीतने के बाद 2024 में यादव बेल्ट में भी कमल खिलाने की रणनीति बनाई है। ऐसे में मुलायम के करीबी रहे चौधरी हरिमोहन यादव के पुण्यतिथि के जरिए भाजपा मिशन 2024 को पूरा करने के लिए सपा के यादव वोट बैंक में सेंधमारी करने का चक्रव्यूह रचा है।
भाजपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी की मानें तो कानपुर से लेकर इटावा, कन्नौज, फरुर्खाबाद फिरोजाबाद और आगरा तक एक समय चौधरी हरमोहन सिंह का यादव वोट बैंक पर दबदबा रहा है। विधानसभा चुनाव में हरमोहन के पौत्र मोहित यादव को भाजपा में शामिल कर अपने पक्ष में महौल बनाने का प्रयास हुआ। इसके बाद हरमोहन की पुण्य तिथि में पीएम का वर्चुअल शामिल होना यादव वर्ग के लिए बड़ा संदेश था। इसके साथ ही यादव वोटों को साधने में जुटी भाजपा ने जौनपुर सीट से जीते गिरीश यादव को मुख्यमंत्री योगी ने अपनी मंत्री परिषद में दोबारा जगह दी है।
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा सीट उपचुनाव में सपा को हराने के बाद भाजपा के हौंसले बुलंद हैं। हाल ही में गोला विधानसभा सीट पर पार्टी फिर सपा को मात दे चुकी है। अब नजरें मैनपुरी लोकसभा और रामपुर विधानसभा सीटों पर है। मैनपुरी में भाजपा की कोशिश किसी भी तरह गैर यादव और गैर मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण करने की है। प्रदेश महामंत्री संगठन धर्मपाल पिछले दिनों मैनपुरी में कार्यकर्ताओं का फीडबैक लेने के साथ ही पूरी ताकत से चुनावी तैयारियों में तेजी से जुटने को कहा है। भाजपा को पता है कि अगर इन चुनावों में जीत हासिल कर ली तो लोकसभा चुनाव तक जोश बरकरार रहेगा।
वहीं बात अगर समाजवादी पार्टी की करें तो मैनपुरी और रामपुर उनकी उनकी परंपरागत सीट रही है। मैनपुरी से अखिलेश ने अपनी पत्नी डिंपल को चुनावी मैदान में उतार कर एक तीर से कई निशाने साधे हैं। अखिलेश ने अपनी विरासत बचाने और कोर वोटर को संभालने के लिए यह दांव चला है। रामपुर आजम खान का गढ़ है। वहां से उनकी सदस्यता रद्द होने के बाद वहां के उपचुनाव की जिम्मेदारी अभी फिलहाल उन्ही के कंधो पर लग रही है। सपा सूत्रों की मानें तो उनके परिवार या कोई अन्य उन्ही का खास आदमी चुनाव लड़ सकता है। क्योंकि आजम खान यहां से कई बार के विधायक हैं।
अब चुनाव में सपा की जीत अखिलेश की व्यक्तिगत प्रतिष्ठा से जुड़ी है। ऐसा इसलिए भी कि अखिलेश के गढ़ में सपा अगर हारी तो यह उसकी व्यक्तिगत क्षति होगी। पर यहां भाजपा अगर सपा से सीट छीन लेती है तो यह उसके लिए अतिरिक्त लाभ माना जाएगा।
सपा के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि समाजवादी पार्टी पूरी ताकत से चुनाव मैदान में हैं। पिछले चुनाव के परिणाम से सीख लेते हुए राष्ट्रीय अध्यक्ष मैनपुरी और रामपुर सीट पर रणनीति बना रहे हैं। खुद प्रचार करने जायेंगे। परिवार की एकता के लिए तेज प्रताप और धर्मेंद्र यादव को लगाया गया है।
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक पीएन द्विवेदी कहते हैं कि यूपी की तीनों सीटों पर हो रहे उपचुनाव सत्तारूढ़ और विपक्षी दल के लिए महत्वपूर्ण है। इसके नतीजे लोकसभा चुनाव की दशा दिशा तय करेंगे। ये चुनाव एक प्रकार से सभी दलों के लिए लिटमस टेस्ट साबित होंगे।
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