- Home
- /
- राज्य
- /
- उत्तर प्रदेश
- /
- पुलिस कमिश्नर को हटाए...
लखनऊ: योगी सरकार ने पुलिस महकमे में बड़ा बदलाव किया है. रविवार देर रात को लखनऊ और कानपुर कमिश्नर को उत्तर प्रदेश शासन द्वारा हटा दिया गया है. लखनऊ पुलिस कमिश्नर डीके ठाकुर को हटा कर 1993 बैच के आईपीएस अधिकारी एडीजी इंटीलेजेंस एसबी शिरोडकर को राजधानी का नया पुलिस कमिश्नर बनाया गया है. जबकि डीके ठाकुर को वेटिंग में डाल दिया गया है. वहीं, कानपुर कमिश्नर विजय कुमार मीणा को हटा कर उनकी जगह 1991 बैच के आईपीएस अधिकारी बीपी जोगदण्ड को नियुक्त किया है. हालांकि इन दोनों कमिश्नर को हटाए जाने को लेकर कई तरह की चर्चाएं और कयास लगाए जा रहें हैं. इन मामलों पर करीब से नजर रखने वालों के अनुसार योगी सरकार द्वारा इस कार्रवाई की तीन बड़ी वजहें है.
लुलु मॉल में नमाज पढ़ने पर हुआ था विवादः 13 जुलाई को लखनऊ लुलु मॉल में नमाज पढ़ने का एक वीडियो वायरल हुआ. जिसको लेकर शुरू हुआ विवाद अब तक नहीं थम सका है. लखनऊ पुलिस की शिथिलता के कारण ये विवाद काफी चर्चा में रहा. जिसने वैश्विक स्तर पर राज्य सरकार की भद्द पिटवाई. बावजूद इसके लखनऊ पुलिस लगातार इस विवाद को खत्म करने के बजाए बढ़ाती ही रही. जिसके बाद इस मामले में उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी काफी नाराज दिखे थे. सीएम के निर्देश के पर डीसीपी और थाना प्रभारी को हटाया गया था. डीके ठाकुर को कमिश्नर पद से हटाए जाने को लेकर सबसे बड़ी वजह बीते दिनों लुलु मॉल में हुए विवाद को माना जा रहा है.
लखनऊ के ट्रैफिक जाम भी रहा एक बड़ा मुद्दाः राजधानी में ट्रैफिक जाम के मुद्दे को लेकर सीएम योगी आदित्यनाथ लगातार ट्रैफिक व्यवस्था साचुरू रूप से संचालित करने को लेकर हिदायत देते रहें हैं. 19 मई को यूपी सीएम ने पुलिस अधिकारियों के साथ बैठक कर राजधानी समेत महानगरों में लगने वाले जाम को लेकर नाराजगी भी जाहिर की थी. बावजूद इसके लखनऊ में लगातार हर सड़क चौराहों पर घण्टों के जाम देखे जाते रहें. इतना ही नहीं बीते 23 जुलाई को लखनऊ के गोमतीनगर इलाके में सुप्रीम कोर्ट के जज और हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस समेत 4 जजों के जाम में फंसने की खबर सामने आई थी. वहीं 28-30 जुलाई तक लखनऊ-कानपुर हाईवे पर 4 घंटे से ज्यादा समय के लिए जाम लगने की चर्चा भी रही थी. जहां राज्य सरकार के ट्रैफिक मैनेजमेंट पूरी तरह फेल दिखी. इसका गाज भी डीके ठाकुर पर गिरा.
कानपुर हिंसा बनी बड़ी वजहः 3 जून को कानपुर देहात में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम योगी आदित्यनाथ मौजूद थे. इसके बावजूद कानपुर में नूपुर शर्मा के बयान को लेकर जुमे की नमाज के बाद शहर में हिंसा भड़क गई. हिंसा होने की सूचना कानपुर पुलिस को पहले से ही थे, फिर भी पुलिस इसे रोकने में नाकाम रही थी. इसके बाद से ही सरकार कानपुर कमिश्नर को हटाने के मूड में आ गयी थी. लेकिन दंगे के वक़्त नए कमिश्नर की तैनाती से हिंसा के आरोपियों पर कार्रवाई बाधित न हो इसके लिये प्रदेश सरकार ने फैसला टाल दिया था. हालांकि उस दौरान उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 3 आईपीएस अधिकारियों को कानपुर के हालात सुधारने के लिए भेजकर योगी सरकार ने ये साफ कर दिया था कि कमिश्नर हिंसा के हालत सभालने में फेल हुए हैं.
निर्दोषों को फंसाकर वसूली करने का लगा आरोपः कानपुर में हुई हिंसा के बाद पुलिसिया कार्रवाई पर भी कई सवाल उठे थे. पुलिस से जुड़े सूत्रों के मुताबिक शासन को लगातार शिकायतें मिल रही थी कि कानपुर पुलिस कमिश्नर के द्वारा बनाई गई एसआईटी ने निर्दोषों को आरोपी बना कर वसूली की थी. इसकी शिकायत मिलने के बाद भी कमिश्नर ने कोई कार्रवाई नहीं की. हालांकि शासन स्तर पर एडीसीपी त्रिपुरारी को हटाया गया था.चुनाव आयोग ने की थी तैनाती, हटना था तयः विधानसभा चुनावों में राजनीतिक दलों की शिकायत के बाद कानपुर के तत्कालीन डीएम विशाख जी अय्यर को पद से हटा कर नेहा शर्मा को चुनाव आयोग ने कानपुर की कमान सौंपी थी. लेकिन हिंसा के बाद 7 जून को उन्हें हटाया दिया गया था. ठीक उसी तरह चुनाव के दौरान ही असीम अरुण के वीआरएस लेने के बाद चुनाव आयोग ने ही विजय कुमार मीणा को कानपुर पुलिस कमिश्नर बनाया गया था. सरकार ने हिंसा के सभी आरोपियों की गिरफ्तारी और साजिशकर्ता हयात जफर हाशमी पर एनएसए लगने के बाद विजय मीणा का हटना तय था.