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उत्तर प्रदेश
यूनिवर्सिटी में हिंदी विभाग ही नहीं, हिंदी सीखने को अंग्रेजों ने छापी थी किताब
Harrison
16 Sep 2023 9:50 AM GMT
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उत्तरप्रदेश | हिंदी के उत्थान को हर वर्ष बड़े-बड़े संकल्प लिए जाते हैं मगर सच तो यह है कि इनमें से अधिकतर संकल्प बस रस्म अदायगी भर होते हैं. हिंदी पट्टी में स्थित रुहेलखंड यूनिवर्सिटी में आज भी हिंदी का विभाग ही नहीं है. हालांकि यूनिवर्सिटी चीनी, फ्रेंच, जर्मन जैसी भाषाओं की पढ़ाई करवा रही है.
नई शिक्षा नीति में भाषाओं पर जोर बढ़ा तो यूनिवर्सिटी ने भी सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर मल्टीलिंगुअल स्टडीज में फंक्शनल हिन्दी नाम से पीजी डिग्री कोर्स शुरू कर दिया. इसे मानविकी विभाग के अंतर्गत चलाए जा रहा है. हिंदी विभाग नहीं खुल सका. वहीं, विश्वविद्यालय ने विदेशी भाषाओं के महत्व को समझते हुए अपने यहां मैंडरिन-चाइनीज, जर्मन, स्पेनिश और फ़्रेंच भाषाओं के एक साल (दो सेमेस्टर) के चार डिप्लोमा कोर्स प्रोफिशिएन्सी इन जर्मन, प्रोफिशिएन्सी इन फ़्रेंच , प्रोफिशिएन्सी इन मैंडरिन और प्रोफिशिएन्सी इन स्पैनिश शुरू कर दिए. कोर्स कोऑर्डिनेटर डॉ. अनीता त्यागी ने बताया कि हिंदी के कोर्स का भी खूब प्रचार किया गया मगर विद्यार्थियों ने ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई. अभी भी एडमिशन चल रहे हैं.
हिंदी सीखने को अंग्रेजों ने छापी थी किताब
इतिहास देखें तो बरेली में अंग्रेजों ने हिंदी सीखने के लिए एक किताब छापी थी. दरअसल लोगों को ईसाई धर्म के बारे में समझाने के मिशनरीज को हिंदी आना जरूरी था. ऐसे में 1866 के आसपास मिशनरी ने सब से पहली किताब देवनागरी-रोमन प्राइमर छापी. अंग्रेजों को हिंदी सिखाने में इस किताब ने अहम भूमिका निभाई थी. इसे से हिंदी सीख कर मिशनरीज ने फिर धर्म के प्रचार के लिए हिंदी की किताबें छापीं.
कागजों तक सीमित पंडित राधेश्याम पीठ
यूनिवर्सिटी में 2016 में पं. राधेश्याम के नाम पर शोधपीठ स्थापित हुई थी. इतिहास विभाग के प्रोफेसर एके सिन्हा को कोऑर्डिनेटर बनाया गया था. विश्वविद्यालय ने अपने स्तर पर इस पीठ के लिए कोई बजट नहीं दिया. न ही शासन के लिए कोई प्रोजेक्ट गया. इस कारण यह पीठ सिर्फ और सिर्फ कागजों तक सीमित रह गई. नैक दौरे को लेकर साफ सफाई हुई तो पीठ का बोर्ड भी उखाड़ कर रख दिया गया है.
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