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उत्तर प्रदेश
वेद और शिव में कोई अन्तर नहीं, वेद ही शिव है और शिव ही वेद : शंकराचार्य
Shantanu Roy
20 Dec 2022 12:18 PM GMT
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बड़ी खबर
वाराणसी। ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती ने कहा कि लोग जब काशी आते हैं तो वे गोस्वामी तुलसीदास जी की पंक्ति जहॅ बस शम्भू भवानी के आधार पर यहां भगवान् शिव को खोजते हैं। पर हमारे शास्त्र यह स्पष्ट उद्घोष करते हैं कि वेदो शिवः शिवो वेदः वेदमूर्ति सदाशिवः अर्थात् वेद और शिव दोनों में अमेद है और वेदमूर्ति को सदाशिव कहा गया है। इसलिए जो वेद का अध्ययन-अध्यापन करता है वह साक्षात् शिव ही होता है। इसलिए यदि काशी में भगवान् शिव का दर्शन करना हो तो वेदमूर्तियों का दर्शन करना चाहिए। ज्योतिष्पीठाधीश्वर सोमवार शाम केदारघाट स्थित श्रीविद्यामठ में आयोजित वसंतपूजा में बटुकों और श्रद्धालुओं के बीच ज्ञानवर्षा कर रहे थे। उन्होंने कहा कि वेद और शिव में कोई अन्तर नहीं,वेद ही शिव है और शिव ही वेद है। प्रवचन के पूर्व ब्रह्मचारी मुकुन्दानन्द ने पारम्परिक विरुदावली का पाठ किया। कार्यक्रम के दौरान काशी करवट मन्दिर के श्री महंत व केंद्रीय ब्राम्हण महासभा के प्रदेश अध्यक्ष पं. अजय शर्मा ने शिव को प्रिय ऋतुफल नारंगी शंकराचार्य महाराज को समर्पित किया। गिरीश चन्द्र ने शंकराचार्य को चांदी का मुकुट भेंट किया।
जिस मुकुट को स्वामिश्री ने वेद के विद्वान आचार्य लक्ष्मीकांत दीक्षित को भेंट कर दिया। कार्यक्रम के दौरान दी सेंट्रल बार के नवनिर्वाचित अध्यक्ष प्रभु नारायण पाण्डेय ने भी शंकराचार्य का आर्शिवाद लिया। वसंत पूजा में वैदिक आचार्य दीपेश दुबे, अनंत भट्ट, बालमुकुंद मिश्रा, साध्वी पूर्णम्बा, साध्वी शारदम्बा, अमित तिवारी, ब्रम्हचारी रामानंद, शैलेन्द्र योगी शामिल रहे। इस दौरान उत्तर प्रदेश प्रधानाचार्य परिषद् के अध्यक्ष डॉ हरेन्द्र राय, डॉ चारुचन्द्र राम त्रिपाठी, भारत धर्म महामण्डल के डॉ परमेश्वर दत्त शुक्ल, डॉ श्रीप्रकाश पाण्डेय, आचार्य अवधराम पाण्डेय, शंकराचार्य के प्रेस प्रतिनिधि संजय पांडेय भी मौजूद रहे। कार्यक्रम में ऋग्वेद शाकल, कृष्ण यजुर्वेद तैत्तिरीय, शुक्ल यजुर्वेद माध्यान्दिनी, शुक्ल यजुर्वेद काण्व, सामवेद कौथुम, सामवेद कौथुम (मद्र पद्धति), सामवेद कौथुम (गुर्जर पद्धति), सामवेद राणायनी, सामवेद जैमिनी, अथर्ववेद शौनक, अथर्ववेद पैप्पलाद का पारायण हुआ। आचार्य धनंजय दातार ने कहा कि जिस प्रकार से ऋतुओं में वसन्त ऋतु सबसे अधिक पसन्द को जाती है। उसी प्रकार से वेद के सन्दर्भ में वसन्त पूजा सबसे अधिक लोकप्रिय है। इस पूजन के माध्यम से वेद की सभी शाखाओं का समय-समय पर पारायण वैदिकों द्वारा करके वेद को उसके उसी रूप में संरक्षित करने का कार्य किया जाता है।
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