उत्तर प्रदेश

अब गरीब बच्चों के लिए कर रहीं गजब का काम

Admin4
3 Aug 2022 9:52 AM GMT
अब गरीब बच्चों के लिए कर रहीं गजब का काम
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न्यूज़क्रेडिट: अमरउजाला 

उम्र 30 साल, जन्म से मंगलामुखी हैं। मां ने लोगों का सामना कर हाईस्कूल तक पढ़ाया। समाज के ताने हृदय चीरने लगे तो पिता ने उन्हें मंगलामुखियों को सौंप दिया, फिर आगे की पढ़ाई नहीं कर सकीं। मन में टीस थी, ऐसे में राधिका बाई ने जरूरतमंद बच्चों को पढ़ाकर उनकी दुनिया रोशन करने की ठानी। 19 बच्चों का निजी स्कूल में दाखिल कराया है। खुशी के मारे बच्चे इन्हें राधिका ताई (दीदी) बुलाने लगे हैं।

उत्तर प्रदेश किन्नर कल्याण बोर्ड की राधिका बाई ने बताया कि ये बच्चे आवास विकास कॉलोनी आयकर कॉलोनी के पास बनी झुग्गियों में रहते हैं। वी एंब्र्रेस संस्था और उन्नति मानव सेवा ट्रस्ट के पदाधिकारी यहां आकर पढ़ाते थे। इनके संपर्क में आने के बाद परिजन से पता चला कि आर्थिक तंगी के कारण बच्चों का पढ़ा नहीं पा रहे हैं। ऐसे में पढ़ने के इच्छुक 19 बच्चों को आवास विकास कॉलोनी सेक्टर नौ में स्थित महाराज जी पब्लिक स्कूल में प्रवेश दिलाया। राधिका ताई ने बताया कि स्कूल का शुल्क जमा करने के साथ पुस्तकें और पोशाक भी दिला रही हूं। कुछ अभिभावकों ने आगे की पढ़ाई के लिए फीस भरने की बात कही है। किसी परिस्थिति में वह फीस नहीं भरते तो बच्चों की पढ़ाई नहीं रुकने देंगी।

साल भर झोपड़-झुग्गी में पढ़ाने के बाद किया प्रेरित

वी एंब्रेस संस्था के राज सक्सेना ने बताया कि हमारी संस्था झुग्गियों में रहने वाले और कूड़ा बीनने वाले बच्चों को पढ़ाती है। यहां हमारी टीम के सदस्य बीते एक साल से आकर पढ़ा रहे थे, इस एक साल में बच्चों और इनके परिजन को स्कूल भेजने के लिए जागरूक किया। आर्थिक तंगी बताई तो राधिका बाई ने कदम बढ़ाए, स्कूल में प्रति बच्चे की 250 रुपये महीने शुल्क है।

राधिका ताई ने दिलाया दाखिला

दिन भर खेलते रहते थे और घर का कामकाज करते थे। जब दूसरे बच्चों को पढ़ने जाते देख उनके मन में भी स्कूल जाने को करता था। पढ़ाई के लिए घर में इतने पैसे नहीं थे, अब राधिका ताई ने स्कूल में दाखिला करा दिया है। - अनिल कुमार, कक्षा तीन

और साथी भी स्कूल जाने लगे

अब मैं भी औरों की तरह टाई, बेल्ट और पोशाक पहनकर स्कूल जाता हूं। स्कूल में मन लगाकर पढ़ता हूं। मेरा भी पढ़ने का सपना पूरा हो रहा है। दीदी ने पढ़ाने भेजा है। मेरे और साथी भी स्कूल जाने लगे हैं। - रोहित अनुरागी, कक्षा दो


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