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बड़ी खबर
शाहजहांपुर। रामलीला खिरनी बाग में नव चेतना कला परिषद के कलाकारों द्वारा हनुमान का लंका नगरी की ओर प्रस्थान मार्ग में मैनाक पर्वत एवं आगे सुरसा नाम की एक राक्षसी से सामना हुआ जोकि देवताओं के द्वारा भेजी हुई एक देवी थी। उसने हनुमान की परीक्षा ली अपने शरीर का आकार बड़ा कर उसने हनुमान को खाने की कोशिश की किंतु बुद्धि से परिपूर्ण हनुमान जी ने एक छोटा सा रूप धर उसके मुख से वापस आ गए। तब हनुमान की बुद्धि को देखकर सुरसा ने उनको आशीर्वाद दिया। तत्पश्चात हनुमान ने सिंहनी को मारकर लंका नगरी के द्वार पर पहुंचे द्वार पर उनकी भेंट लंकिनी से हुई उसका मान मर्दन कर हनुमान ने उसका आशीर्वाद लिया एवं नगर में प्रवेश किया सभी स्थानों पर भवनों में एवं बागों में हनुमान को जब सीता की सुधि नहीं मिली तो वह दुखी हो गए। किंतु एक भवन पर जब उन्होंने राम नाम अंकित देखा तो वह सोच में पड़ गए और महात्मा का रूप रख राम नाम का गुणगान करने लगे गृह स्वामी जोकि लंकेश का छोटा भाई विभीषण था उसने ब्राह्मण रूपी हनुमान का स्वागत सत्कार किया और हनुमान ने जब यह जान लिया कि यह राम भक्त है और इस लंका नगरी में हमारी सहायता कर सकता है। तब हनुमान अपने रूप में आ गए और उसे शिक्षा देकर उसे माता की सुधि प्राप्ति की विभीषण के बताए अनुसार हनुमान अशोक वाटिका में गए और माता के दर्शन किए। तभी रात के चौथे पहर में रावण अपनी अर्धांगिनी के साथ सीता के सम्मुख पहुंचा और विभिन्न प्रकार के प्रलोभन देकर सीता को आकृष्ट किया किंतु सीता ने उसका शब्दों से तिरस्कार किया और समस्त प्रलोभन अस्वीकार कर दिए तब 1 माह का समय देकर रावण अपने भवन में चला गया सीता बहुत ही दुखित अवस्था में अपनी देह को अग्नि में जला लेना चाहती थी। किंतु उसी समय हनुमान ने मुद्रिका डालकर अपने आप को उनके सामने प्रकट किया और विभिन्न प्रकार से सांत्वना दी जब हनुमान को भूख लगी तो उन्होंने माता सीता का आशीर्वाद लेकर अशोक वाटिका में लगे वृक्षों के फल खाएं और शक्ति दिखाने हेतु उन सभी पेड़ों को नष्ट भ्रष्ट कर दिया। इस दृश्य को देखकर दर्शकों ने मंचन की सराहना।
तभी रावण का पुत्र अक्षय कुमार हनुमान को रोकने के लिए आया और हनुमान द्वारा उसका वध हो गया यह खबर सुन रावण ने अपने शक्तिशाली पुत्र मेघनाथ को हनुमान को अपने पास में बांधकर लाने को कहा हनुमान और मेघनाथ में भीषण युद्ध हुआ और अंततः जब पार न पाने पर मेघनाथ के द्वारा ब्रह्म शक्ति का प्रयोग हुआ तो ब्रह्मदेव के आदर हेतु हनुमान ने अपने आप को ब्रह्म शक्ति से बंधवा लिया और रावण के दरबार में प्रस्तुत हुए हनुमान ने रावण को समझाया और तीखा संवाद के बाद रावण ने अभिमान में चूर होकर हनुमान की पूंछ में आग लगवाने का आदेश दिया। किंतु हनुमान पूछ में आग लगने के बाद उन्होंने समस्त लंका नगरी को ही जलाकर राख कर दिया और सागर में पूंछ बुझा कर माता सीता के सामने हाथ जोड़कर खड़े हो गए। तब माता ने उन्हें अमोघ आशीर्वाद दिया और अपनी व्यथा सुनाई। हनुमान माता से विदा लेकर राम-दल में वापस आ गए और समस्त राम-दल प्रभु श्रीराम के समक्ष गया तब हनुमान ने सीता की व्यथा प्रभु श्रीराम से कही उसी क्षण राम ने सुग्रीव को आदेश दिया कि अपनी समस्त वानर सेना के साथ हम इसी समय सागर तट पर प्रस्थान करेंगे। तत्पश्चात लंका नगरी में रावण के द्वारा विभीषण को देश निकाला दिया एवं पद प्रहार किया लंका नगरी छोड़कर विभीषण राम की शरण में आने के लिए आतुर हो गया और राम-दल में आकर उसने राम की शरण ली। तत्पश्चात विचार विमर्श किया कि किस प्रकार सागर को पार किया जाए तब विभीषण द्वारा समुद्र की आराधना करने की बात कही गई और राम ने 3 दिन तक समंदर की आराधना की किंतु ना मानने पर क्रोध में आकर राम ने अग्निबाण से सागर के जल को सुखाने का फैसला किया। समुद्र देव त्राहिमाम करते हुए राम के चरणों में आ गए और विभिन्न प्रकार के आभूषण देकर नल नील द्वारा उनके वरदान के विषय में बताया सागर पर पुल बांधने की युक्ति बताई। तब समस्त वानर सेना एवं हनुमान द्वारा सेतु का निर्माण किया गया और उसके बाद समस्त वानर सेना सेतु से होते हुए लंका नगरी की ओर प्रस्थान कर गई उस पार पहुंचने के बाद रामद्वारा भोले शंकर की स्थापना की गई और आराधन किया गया तभी रावण के दो दूत शूक और सारंग का प्रवेश होता है और राम-दल द्वारा उन्हें विभिन्न प्रकार की यातनाएं दी गई। तथा लक्ष्मण के चरणों में डाला गया। तब लक्ष्मण ने शब्दों का एक संदेश रावण को देने को कहा और मुक्त कर दिया।
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