उत्तर प्रदेश

लाल किले में अंग्रेजों ने दोनों हाथों में ठोक डाली थी कीलें

Shantanu Roy
14 Aug 2022 11:02 AM GMT
लाल किले में अंग्रेजों ने दोनों हाथों में ठोक डाली थी कीलें
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बड़ी खबर
बागपत। यूपी के बागपत जनपद का एक छोटा-सा गांव सिसाना, लेकिन इस छोटे-से गांव के रहने वाले महान क्रांतिकारी के विषय में शायद ही हर कोई जानता हो, जिसने अंग्रेजों की चूलें हिलाने का कार्य किया। भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त के बेहद करीबी रहे क्रांतिकारी ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ी जाने वाली लड़ाईयों में अपने स्तर पर आर्थिक सहायता ही मुहैय्या नहीं कराई वरन अपना सर्वस्व भी कुर्बान कर दिया। इनका नाम हैं महान क्रांतिकारी विमल प्रसाद जैन, जो आज गुमनामी के अंधेरे में कहीं खो गए हैं।
10 अप्रैल 1910 को सिसाना गांव में सेठ बनारसीदास के घर जन्मे विमल प्रसाद जैन का पूरा जीवन देश सेवा में व्यतीत हुआ। बचपन से ही देश को अंग्रेजों से आजाद कराने का जज्बा ही था कि विमल प्रसाद जैन को गर्मदल के क्रांतिकारियों से जुड़ गए। दिल्ली में पढ़ाई के दौरान क्रांतिकारी बटुकेश्वरदत्त के संपर्क में आने के बाद विमल प्रसाद जैन ने हर तरह से अंग्रेजों के खिलाफ लड़ी जा रही लड़ाई में अपना योगदान दिया। मुल्तान जेल में 3 साल की सजा भी विमल प्रसाद ने काटते हुए अंग्रेजों द्वारा दिये कष्ट सहे। विमल जैन के चचेरे भाई स्व. जगदीश प्रसाद जैन के बेटे सत्येंद्र जैन बताते हैं कि शहीद भगत सिंह और बटुकेश्वरदत्त ने एसेंबली में जो बम फेंके थे, उनका मसौदा और पूरी कार्य योजना सिसाना के इसी घर में तैयार हुई थी। जहां पर वर्तमान समय में विमल प्रसाद जैन का पुराना घर मौजूद हैं, उसके आसपास घना जंगल हुआ करता था जिस कारण क्रांतिकारी यहां पर आकर छिपा करते थे।
इस बम को शहीद भगत सिंह व बटुकेश्वरदत्त ने एसेंबली में फेंका था। एसेंबली में भगत सिंह व बटुकेश्वरदत्त को विमल प्रसाद जैन ने ही प्रवेश कराया। वहीं शहीद चंद्रशेखर आजाद व विमल प्रसाद जैन पिस्टल लिए एसेंबली के बाहर खड़े थे। बाद में विमल प्रसाद जैन ने एक लिफाफा, फोटोग्राफ जिन्हें कश्मीरी गेट दिल्ली में एक फोटोग्राफर के यहां खिंचाया गया था, पर्चे दिल्ली के ही एक अंग्रेजी अखबार के दफ्तर में पहुंचाएं ताकि खबरों के माध्यम से सारी दुनिया यह बात जान सके। भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद और भगवती चरण बोहरा व उनकी पत्नी दुर्गा भाभी कई सिसाना आए थे। सत्येंद्र जैन घर के पास वर्ष 1707 में बने जैन मंदिर दिखाकर बोले कि विमल प्रसाद जैन यहां पूजा कर देश की आजादी की कामना करते थे।
अंग्रेजों का लहु पीने वाली दुनाली बंदूक आज बागपत पुलिस के पास...
स्व. विमल प्रसाद जैन की वह 12 बोर की बंदूक जिससे निकली गोलियों से दो अंग्रेजों को मौत के घाट उतारा गया था, वह 2011 में जगदीश प्रसाद जैन के निधन के बाद पुलिस प्रशासन ने अपने कब्जे में ले ली थी, वह दुनाली बंदूक आज भी बागपत पुलिस के पास है। परिजन बताते हैं कि इस पारिवारिक धरोहर को वापस पाने का वे लगातार प्रयास कर रहे हैं, लेकिन अभी तक यह प्रयास सफल नहीं हो पाया है। इसके अलावा 1965 में भी विमल प्रसाद की एक अन्य बंदूक व चांदी के मूठ की दो तलवारें भी थाने में ही जमा हैं।
इंदिरा गांधी से अवार्ड लेने से कर दिया था इंकार
क्रांतिकारी लाला विमल प्रसाद जैन को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अवार्ड देने की भी घोषणा की थी। परिजन बताते हैं कि यह अवार्ड विमल प्रसाद जैन ने यह कहते हुए लेने से इंकार कर दिया था कि हम बेटी के घर का पानी तक नहीं पीते, फिर यह तो अवार्ड है। इस कारण वे यह अवार्ड स्वीकार नहीं कर सकते। इतने सौम्य और आदर्शवादी क्रांतिकारी थे विमल प्रसाद जैन।
भगत सिंह के पौत्र भी आए थे यादों को सहेजने सिसाना गांव
अपने दादा भगत सिंह यादों को सहेजने के लिए सुखविंदर सिंह सांगा अगस्त 2016 में सिसाना गांव पहुंचे थे। यहां पर उन्होंने विमल प्रसाद जैन व भगत सिंह की क्रांतिकारी गतिविधियों की जानकारी उनके परिवार से ली थी। सहारनपुर से लाकर जिस बम को एसेंबली में फेंका गया था, उस बम को विमल प्रसाद जैन ने अपने घर की एक अलमारी में छिपाया था, वह अलमारी, दुनाली बंदूक भी सुखविंदर सिंह सांगा ने देखकर खुद को गौरांवित महसूस किया था।
एसेंबली में फेंके जाने वाले बम को अलमारी में छिपाया
मकान में आज भी वह तिजोरी मौजूद है जिसमें चार अप्रैल 1929 को एसेंबली में फेंका गया बम छिपाकर रखा गया था। सिसाना गांव में क्रांतिकारी विमल प्रसाद जैन के यहां 3 अप्रैल 1929 को भगत सिंह, बटुकेश्वरदत्त, भगवती चरण वोहरा, दुर्गा भाभी ने एसेंबली में बम फेंके जाने की पूरी कार्ययोजना तैयार की। सहारनपुर से वे बम भी साथ लाए गए थे जिन्हें एसेंबली में फेंका जाना था। इन बम को एक अलमारी में छिपा कर रखा गया। वर्तमान में इस अलमारी को बाहरी तौर पर तो नया रूप दे दिया गया हैं, लेकिन इसके अंदर का हिस्सा आज भी उसी तरह से सुरक्षित हैं। अलमारी को खोलते ही अंदर एक गहरी व कच्ची मिट्टी से बनी सुरंग नजर आती हैं जिसके अंदर बम को छिपाया गया था।
आर्थिक सहायता कराते थे मुहैय्या
क्रांतिकारी विमल प्रसाद जैन के विषय में सतेंद्र जैन, अनीस जैन, जयविंदर जैन बताते हैं कि क्रांतिकारियों को आर्थिक सहायता मुहैय्या कराए जाने के अलावा उन्हें भोजन की व्यवस्था भी सिसाना से ही होती थी। रात के अंधेरे में चोरी छिपे भोजन व पैसा क्रांतिकारियों की मदद के लिए विमल प्रसाद जैन पहुंचाया करते थे। घर का एक बहुत बड़ा हिस्सा रसोई के रूप में था जहां पर खाना बनाया जाया करता था। खाना बनाने वाले कुछ पात्र आज भी घर के स्टोर रूम में मौजूद हैं जो उस समय की यादें ताजा करते हैं। विमल प्रसाद जैन का पानदान, एक माउथ आर्गन भी मौजूद हैं जिनका प्रयोग विमल प्रसाद जैन किया करते थे। सत्येंद्र जैन बताते हैं कि हमारा परिवार बडे जमीदार हुआ करते थे। पूर्वज मुसद्दीलाल जैन द्वारा आर्थिक सहायता के रूप में महाराणा प्रताप को भी युद्ध के समय यहीं से हुंडी (वह कागज जिसके माध्यम से लेनदेन का व्यवहार किया जाता था) भेजी जाती थी।
मंत्री पद लेने से भी कर दिया था इंकार
सिसाना के उस महान क्रांतिकारी विमल प्रसाद जैन की शौर्य गाथा जानते हैं जिन्होंने पंडित जवाहर लाल नेहरू का आफर यह कहकर ठुकरा दिया कि हमने मंत्री बनने को नहीं, बल्कि देश को आजाद कराने के लिए लड़ाई लड़ी। यह वही विमल प्रसाद जैन थे, जिन्हें अंग्रेजों की पुलिस ने दिल्ली में गिरफ्तार कर लाल किले ले जाकर दोनों हाथों में कील ठोकी थी, लेकिन इस जुल्म के आगे न वह झुके और न टूटे।
अंग्रेजी छापेमारी के बाद दिल्ली जाकर छिपे थे विमल प्रसाद
एसेंबली में भगत सिंह व बटुकेश्वरदत्त द्वारा बम फेंके जाने की घटना के बाद अंग्रेजों ने साथी क्रांतिकारियों की तलाश में ताबड़तोड़ दबिशें डालनी शुरू की तो क्रांतिकारी विमल प्रसाद जैन दिल्ली के दरियागंज में गौलचा सिनेमा के पीछे जाकर छिप गए थे। यहां पर एक फैक्ट्री जिसमें आगे के हिस्से में साबुन बनाई जाती थी तो पीछे की ओर क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए बम बनाए जाते थे। यहीं पर विमल प्रसाद जैन ने काफी समय गुजारा। परिजन बताते हैं कि अंतिम समय में भी विमल प्रसाद जैन यहीं रहे। 2 जून 1989 को बीमारी के चलते उनका स्वर्गवास हो गया।
यमुना खादर में होता था बम का परीक्षण
सिसाना गांव के घने जंगलों से होकर यमुना तक पहुंचा जाता था। गर्मदल के क्रांतिकारी होने के कारण विमल प्रसाद जैन अपने साथ पिस्तौल, बम भी रखा करते थे। विमल प्रसाद जैन ने जो बातें अपने बच्चों को बताई, उसके बारे में सत्येंद्र जैन बताते हैं कि यमुना खादर में कई बार उन्होंने बम का परीक्षण किया। एक बार बम परीक्षण के दौरान एक क्रांतिकारी का हाथ भी फट गया था। गांव में एक पुराना कुंआ भी मौजूद हैं जिसमें विमल प्रसाद जैन ने एक पिस्तौल को तोडकर फेंक दिया था क्योंकि अंग्रेजों द्वारा उनका पीछा किया जा रहा था। इस कुंए की यदि खुदाई कराई जाए तो उस समय की बहुत-सारी वस्तुएं इसके अंदर से मिल सकती हैं।
विमल प्रसाद के जीवन पर पत्नी ने लिखी पुस्तक
अमर शहीद सरदार भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त के निकट सहयोगी और क्रांतिकारी आंदोलन के प्रमुख कार्यकर्ता स्व. विमल प्रसाद जैन के जीवन और कार्यकलापों के बारे में वर्णित एक पुस्तक 14 मई 1994 को राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा को राष्ट्रपति भवन में भेंट की गयी। इस पुस्तक को स्व. विमल प्रसाद जैन की पत्नी रूपवती जैन ने लिखा। वे स्वयं भी क्रांतिकारी आंदोलन से जुड़ी रही हैं। क्रांतिकारियों के बारे में भी पुस्तक में विस्तार से जानकारी दी गयी है। पुस्तक में इस तथ्य को भी उजागर किया गया है कि भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त के लिये असेंबली बम कांड में प्रवेश पत्रों की व्यवस्था विमल प्रसाद जैन ने ही की। बम कांड के तुरंत बाद इन दोनों क्रांतिकारियों के फोटो में अखबारों में उन्होंने भेजे। भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त के बेहद करीबी होने के नाते आंदोलन से जुड़ी बहुत सी बातें इस पुस्तक में वर्णित हैं।
दुर्भाग्य: बागपत में नहीं हैं कोई स्मारक
महान क्रांतिकारी होने के बावजूद विमल प्रसाद जैन के नाम से ना तो जनपद में कोई स्मारक मौजूद हैं, ना ही गांव में किसी सड़क, चौराहे का नाम उनके नाम पर रखा गया हैं और ना ही वर्तमान में परिवार को वह सम्मान मिल पाता हैं जो क्रांतिकारी परिवार होने के नाते मिलना चाहिए। परिजनों का कहना है कि उन्हें किसी तरह की पेंशन नहीं चाहिए, अगर प्रशासन कुछ कर सकता हैं तो विमल प्रसाद जैन के नाम पर कोई स्मारक, मूर्ति, गांव का नाम उनके नाम पर घोषित करें ताकि आने वाली पीढ़ियां भी विमल प्रसाद जैन के विषय में जान सकें।
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