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बड़ी खबर
हरदोई। भारत के महान कहानीकार रहे मुंशी प्रेमचन्द ने अब से करीब 100साल पूर्व 1921में भारतीय किसानो की दीन दशा का चित्रण करते हुये" पूस की रात" नामक कहानी लिखी थी।उस समय देश में ब्रिटिश शासन था। कहानी में हल्कू नामक पात्र पूस की रात में जानवरों से अपने खेत को बचाने के लिये फूस की झोपड़ी में एक सूती चादर के सहारे भंयकर ठंड में रात काट रहा है। आज कहानी लिखे जाने के 100साल बाद भी किसान की जिंदगी हल्कू की जिंदगी से आगे नहीं जा पायी है। भारत में किसानो की दशा सुधारने के लिये सरकारों द्वारा कोई खास ध्यान नहीं दिया गया। परिणामस्वरूप भारतीय किसान आज भी ग़रीबी की त्रासदी से उबर नहीं पा रहा है।कहने को तो भारत कृषि, प्रधान देश है।और कृषिदेश की अर्थव्यवस्था की रीढ की हडडी कही गयी है।किन्तु आजादी के बाद से कृषि,के उन्नयन मे उत्पादकता की दृष्टि से विज्ञान का आधार लेकर कृषि,उपज मे उत्तरोत्तर वृद्धि हुयी इसमे कोई दो राय नही है किन्तु कृषि सँसाधनो एवँ उपज के उचित रखरखाव की ओर सरकारोँ द्वारा विशेष ध्यान नही दिया गया।इसी का परिणाम है कि पर्याप्त क्रषि योग्य भूमि होने के बाबजूद किसान गरीबी की त्रासदी से उबर नही पा रहा है ।सिचाई के सँसाधनो को आकडोँ की माध्यम से देखा जाय तो पर्याप्त मात्रा में है किन्तु परिस्थितयाँ वास्तविकता से कोसोँ दूर खडी है।बर्षो से 70से 80 प्रतिशत बन्द नलकूप एवँ सूखी पटी पडी नहरे इस बात का सबूत है कि सिचाई सँसाधनो पर करोडो रूपया फूँकने वाली सरकार की व्यवस्था मे कितनी खामियाँ है वहीँ खाद बीज के नाम पर प्रशासनिक अधिकारियो की लम्बी फौज की द्रष्टि के मध्य नकली खाद बीज एवँ कालाबाजारी के बीच पिसता अन्न दाता बमुश्किल तमाम अपनी हाड तोड मेहनत से पैदा की गयी उपज के बाजिव मूल्य के लिये भिखारियो की भातिँ कृषि क्षेत्र से जुडे अधिकारियो कर्मचारियो धन्नासेठो की दुत्कार व लानत मलानत करने पर मजबूर हो रहा है।
किसानो को मेहनत से कमाई गयी उपज का बाजिब मूल्य न मिलने से किसान गरीब और गरीब होता चला जा रहा है। आज अन्नदाता को राजनीति की पॉलिथीन से कवर कर दिया गया है ताकि वह अंदर ही अंदर घुटता रहें और बाहरी वातावरण से उसका संबंध विच्छेद रहे वह अपने परंपरागत समाज को समझ ही न सके यही नहीं वह अपने को भी नहीं समझ सकता है कि वह कितने टुकड़ों में बट कर अपना जीवन जी रहा है।उप्र का जनपद हरदोई खेती किसानी की अधिकता वाला जनपद है।इस जनपद की अधिकांश आबादी ग्रामीण है।और खेती किसानी से अपना जीवन यापन करती है।बर्तमान में आवारा गोवंश किसानो के लिये बड़ी समस्या बने हुये है। वैसे आवारा गोवंशों को लेकर उप्र सरकार काफी संजीदा है और गोवंश संरक्षण के लिये लगातार करोड़ों रूपए पानी की तरह बहा भी रही है इसमें कोई संदेह नहीं है लेकिन जमीनी हकीकत मुख्यमंत्री के आशानुरूप परिलक्षित होती दिखाई नहीं दे रही है। आवारा गोवंशों से किसानो को निजात दिलाने के लिये प्रत्येक ग्राम पंचायत में गौशाला बनाये जाने के निर्देश दिए गए हैं। लेकिन प्रशासनिक मक्कारी के चलते योजना परवान नहीं चढ़ पा रही है।जिन ग्राम पंचायतों में गौशाला बन गये है उनके संचालन में जानबूझकर कर बिलम्ब किया जा रहा है जहां संचालन हो रहा है वहां अव्यवस्था का बोलबाला बताया जा रहा है। जिम्मेदार केवल आफिस में बैठकर व्लोअर की गर्माहट में मस्ती करते नजर आ रहे हैं जबकि किसान पूस की रात में 5 डिग्री तापमान में बिना झबरा के फूस की झोपड़ी में भंयकर ठंड झेलने को मजबूर हो रहा है। पूस की रात कहानी में हल्कू अकेला पात्र हैं लेकिन आधुनिकता का दम्भ भरते समाज में आज हर घर में एक हल्कू मौजूद हैं जिसकी कड़कड़ाती ठंड भंयकर कोहरे से भरी पूस की रात खेतों पर जानवर भगाते जिंदगी कटी जा रही है।
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