उत्तर प्रदेश

कोरोना काल में 'छप्पन भोग' ने ग्राहकों से संवाद कर सेहत-सुरक्षा को किया सुनिश्चित, मिठास रही कायम | जनता से रिश्ता

Admin4
2 Oct 2020 4:13 AM GMT
कोरोना काल में छप्पन भोग ने ग्राहकों से संवाद कर सेहत-सुरक्षा को किया सुनिश्चित, मिठास रही कायम |  जनता से रिश्ता
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कोरोना काल में 'छप्पन भोग' ने ग्राहकों से संवाद कर सेहत-सुरक्षा को किया सुनिश्चित, मिठास रही कायम

नई दिल्ली, 'छप्पन भोग' की मिठाइयों की मिठास को कोरोना का क़हर कम नहीं कर पाया है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क |नई दिल्ली, । 'छप्पन भोग' की मिठाइयों की मिठास को कोरोना का क़हर कम नहीं कर पाया है। इस संकटकाल में भी लखनऊ की यह सुप्रसिद्ध मिठाई शॉप लोगों के उत्साह-उम्मीदों का साथ देती, उनका मुंह मीठा करा रही है। लोगों ने स्वाद ही नहीं, बल्कि इसकी शुचिता और सुरक्षा पर भी भरोसा जताया है। प्रतिष्ठान के संचालक रवींद्र गुप्ता यह खुलकर स्वीकार करते हैं। कहते हैं, 'हमें शून्य से स्वादों के शिखर में पहुंचाने वाले हमारे ग्राहक ही हैं। ख़ासतौर पर पिछले 6 महीने में ग्राहकों का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष सहयोग-सलाह ही हमारा संबल बना।' ग्राहकों से लगातार संवाद कर 'छप्पन भोग' ने स्वाद के साथ-साथ सेहत-सुरक्षा का खास ख्याल रखते हुए ऐसे उपाय किए, जिसे दूसरे उद्यमी भी अपना सकते हैं।

सेवा का मेवा : शोरूम तक का सफर

रवींद्र गुप्ता बताते हैं, 'हमारे पिताजी ने कानपुर में मिल के बाहर मीठा-नमकीन से शुरुआत की थी। उन्होंने 20-20 घंटे काम किया, ताकि लोगों को सुबह से देर रात तक मिठाई और मलाई दे सकें। स्कूलों के अंदर कैंटीन में नाश्ता तैयार कराया। मैंने 1992 में अपने पिता रामशरण के साथ मिलकर दुकान शुरू की। शुरुआत में हमारा मकसद था कि हम बाजार में कुछ स्पेस बना सकें। हमने लोगों के सुझावों पर काम किया और छोटी दुकान से बढ़कर शोरूम बनाने का सफर शुरू हो गया।' यही वजह है कि रवींद्र गुप्ता आज इस संकटकाल में भी अपने ग्राहकों के सुझावों को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हैं। आइए, उन्हीं से जानते हैं कि ग्राहकों के सुझाव और संवाद से उन्होंने कौन-से खास कदम उठाए, जिनसे महामारी की चुनौती से निबटने में आसानी हुई।

समाधान - 1 : सेहत की सुरक्षा

रवींद्र गुप्ता कहते हैं कि कोरोना में लॉकडाउन के बाद हमने शोरूम का रेनोवेशन किया। उसमें बदलाव किया। इस बदलाव के बारे में पिताजी रामशरण जी ने विचार दिया। हमने ऐसा मॉडल बनाया है, जिसमें कस्टमर दुकान के अंदर प्रवेश न करें। हमने शो रूम के बाहर विंडो बनवाया है, मेन्यू लगाया है और एक माइक लगा दिया है, जिससे ग्राहक और कर्मचारी एक-दूसरे से संवाद कर सकें और समय से डिलीवरी हो सकें। इससे बड़ा फायदा यह हुआ कि दुकान पर ग्राहकों की संख्या बढ़ गई। लखनऊ के लालबाग में रहने वाले दिलीप पटवर्धन ने बताया कि दुकान के अंदर से सामान लेने में हिचक और डर था। पर अब नए रूप से फायदा यह है कि आप फिजिकल डिस्टेंसिंग या बिना किसी को टच किए सामान ले लेते हैं जो कि संतोष की बात है।

समाधान - 2 : स्वाद के साथ इम्युनिटी

ग्राहकों ने सुझाव दिया कि मिठाई में ऐसे सामान या सामग्री की अधिकता बढाई जाए, जो इम्युनिटी के लिहाज से बेहतर हो। ऐसे में हमने आठ उत्पादों की लैब से टेस्टिंग कराई और उन्हें लॉन्च किया। इनमें केसर-पेड़ा, काजू-बर्फी जैसे उत्पाद थे।

समाधान - 3 : सुझावों से बदला स्वाद और आकार

ग्राहकों के सुझाव पर चॉकलेट के विकल्प के लिए मेवा बाइट बनाई, जिसकी अंदर और बाहरी पैकेजिंग काफी बेहतर थी। इसकी सेल्फ लाइफ अधिक थी और पैकेजिंग शानदार। इसकी देश-दुनिया से बड़ी मांग आई। अभी मेरे कुछ ग्राहकों ने इस संकटकाल में कुछ मिठाइयों का आकार छोटा करने को कहा। इनके सुझाव पर मैंने अमल किया और इसका फायदा मिला। छोटी-छोटी मिठाइयां बनाने के पीछे मकसद था कि इन्हें सीधे पेपर के माध्यम से बिना छुए खाया जा सके। फिर मैंने मिनी समोसा से भी छोटा समोसा बनाया। रेग्युलर मोदक से छोटा मोदक बनाया, जो कि काफी पॉपुलर है।

समाधान - 4 : पार्सल और ऑनलाइन से सामान

रवींद्र ने बताया कि हम कुछ स्पेशलाइज्ड मिठाई बनाने के लिए देश के अलग-अलग राज्यों जैसे कश्मीर से केसर, किन्नौर से चिलगौजा, कुछ जगहों से ब्लैक बैरी आदि मंगाते हैं। लॉकडाउन के दौरान ट्रांसपोर्टेशन की दिक्कत आ रही थी। ऐसे में मेरे ग्राहक उमाशंकर सिंह का विचार काम आया। हमने अपने बड़े ऑर्डर नियत तरीके से ही मंगाए, लेकिन तत्काल जरूरत के लिए एक छोटा पार्सल अपने कारोबारी मित्र के सामान के साथ मंगवा लिया। इससे हमारी समस्या सुलझ गई और बाद में हमारा सामान भी आ गया।

समाधान - 5 : ऑनलाइन खरीद-भुगतान

लॉकडाउन के दौरान सामग्री जुटाना सबसे बड़ा चैलेंज था। हर कोई सामान जुटाने की किल्लत से जूझ रहा था। ऐसी स्थिति में एक ग्राहक समीर मित्तल ने हमें ऑनलाइन सामान देखने, ऑर्डर करने और भुगतान आदि के लिए कुछ ऑनलाइन ऐप सुझाये। उनसे हमें मदद मिली। इससे कोरोना काल में सामान की डिलीवरी आसान हो गई।

समाधान - 6 : डिलीवरी के लिए ऐप

रवींद्र बताते हैं कि ग्राहकों ने हमें फीडबैक दिया कि हम दुकान पर सुरक्षा की वजह से नहीं आ सकते और फोन लाइन कभी-कभार व्यस्त हो जाती है। ऐसी स्थिति में ऑर्डर मंगाने में दिक्कत रहती है। ग्राहकों की सलाह को ध्यान में रखते हुए हमने 'छप्पन भोग' नाम से ऐप बनाया। जो ग्राहक दुकान सामान लेने में सक्षम न थे, वह ऐप के माध्यम से ऑर्डर करने लगे। इससे सुरक्षा भी काफी हद तक सुनिश्चित हुई।

समाधान - 7 : सुरक्षित पैकिंग और अवकाश

शुचिता और सुरक्षा में भरोसा के लिए ख़ास तरह की पैकिंग शुरू की। इस अनूठी पैकिंग को डिलीवरीमैन पूरे निर्देश पालन के साथ पहुंचाता है, जिससे मिठाई, स्नैक्स पूरी तरह सुरक्षित रहें। ग्राहक इसकी तारीफ भी कर रहे हैं। बैंक ऑफ बड़ौदा में काम करने वाले एच.डी. जैन कहते हैं, 'साफ- अनूठी पैकिंग से हमें सुरक्षा का भरोसा मिलता है।' लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में सबसे बड़ी परेशानी यह थी कि पूरा स्टाफ एक साथ दफ्तर नहीं आ सकता था, लेकिन जहां चाह होती है वहां राह भी निकल ही आती है। कर्मचारियों ने ही सलाह दी कि हर दिन सीमित स्टाफ को बुलाएं। कुछ स्पेशलाइज्ड सामानों को बनाने वालों को अलग-अलग इंटरवल पर अवकाश दें। हमने कर्मचारियों के आने-जाने के प्रबंध को सुनिश्चित किया। इस तरह सीमित संसाधनों में भी हम ग्राहकों की सेवा कर पा रहे हैं।

सहयोग-मदद की भावना ने बढ़ाई मिठास

रवींद्र बताते हैं कि लॉकडाउन के दौरान हम 500-700 प्रवासी मजदूरों को स्नैक्स बांटने का काम करते थे। फिर हम दो एनजीओ 'एहसास' और 'उम्मीद' के माध्यम से लोगों को खाना पहुंचाते थे। उसी दौरान मुंबई से कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव का फोन आया। उन्होंने ओडिशा के कुछ लोगों की मदद करने की बात कही। उनकी बसें लखनऊ से गुजरने वाली थीं। हमने उनके खान-पान का इंतजाम किया। जनसहयोग से इस तरह की समाजसेवा भी जारी है।

लॉकडाउन के बीच 'छप्पन भोग' की इस सफलता से साफ है कि अगर ग्राहक और दुकानदार का रिश्ता अटूट हो तो आपसी सहयोग, सूझबूझ और नए विचारों से सकारात्मक समाधान, उत्पादकता और सफलता का मार्ग जरूर प्रशस्त होता है।

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