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खारिज की याचिका, शातिर साढ़ू को अमरोहा परिवार न्यायालय ने दिखाया आईना
फौजी की नाबालिग बेटी को कानूनी तरीके से हथियाने में जुटे अमरोहा के एक दंपती की उम्मीदों पर पानी फिर गया है। वहां की फैमिली कोर्ट ने दंपती को आइना दिखाते दो टूक कहा कि बेटी के जैविक मां-बाप जिंदा हैं तो नाबालिग का संरक्षण किसी और को नहीं सौंपा जा सकता। कोर्ट की दो टूक से फौजी व उसकी पत्नी को जहां राहत मिली है, वहीं कार्रवाई की गेंद एक बार उस तंत्र के पाले में है, जो प्रकरण में अपनी प्रासंगिकता बताने में पूरी तरह विफल रहा है।
अमरोहा के गजरौला की रहने वाली ममता सिंह पत्नी श्यामवीर सिंह ने फैमिली कोर्ट में वाद दाखिल किया। बाल कल्याण समिति अमरोहा के आदेश का हवाला देते हुए महिला ने अपनी छोटी बहन शैली सिंह पत्नी यशवीर सिंह निवासी मझोला मुरादाबाद की नाबालिग पुत्री कशिश का खुद को कानूनी संरक्षक नियुक्त करने की मांग की। बड़ी बहन की याचिका कोर्ट में दाखिल होने की भनक लगते ही शैली सिंह ने भी साक्ष्य व दलील पेश कर दिया। बताया कि पति यशवीर सेना के जवान हैं। नौकरी के कारण पति को घर से बाहर जाना पड़ता था। तब उन्होंने अपनी बेटी के पालन पोषण की जिम्मेदारी बड़ी बहन ममता सिंह को सौंप दी।
नाबालिग बेटी की परवरिश में व्यय धनराशि का वहन फौजी व उनकी पत्नी करते रहे। कुछ वर्षों बाद ममता सिंह व उनके पति की नीयत में खोट आ गई। मंशा भांप दंपती मुरादाबाद बाल कल्याण समिति, उत्तर प्रदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग, सीएम पोर्टल, मुरादाबाद व अमरोहा के डीएम समेत अन्य जिम्मेदार संस्थाओं व अधिकारियों की शरण में पहुंचे। दंपती की गुहार तंत्र ने नजरंदाज कर दी। उधर, नाबालिग कशिश को संरक्षण में लेने का तानाबाना बुना जाने लगा। कशिश के मौसा- मौसी को अमरोहा बाल कल्याण समिति का साथ मिला।
समिति ने दंपती को कशिश का अस्थाई संरक्षक नियुक्त कर दिया। न्यायपीठ का आदेश लेकर दंपती अमरोहा फैमिली कोर्ट पहुंच गए। वहां याचिका दाखिल करते हुए उन्होंने कशिश का कानूनी संरक्षक घोषित करने की मांग कोर्ट से कर दी। दावे व साक्ष्य का परीक्षण करने पर कोर्ट को पता चला कि नाबालिग कशिश के जैविक मां-बाप जिंदा हैं। 14 सितंबर को प्रकरण में आदेश पारित करते हुए कहा कि जिस बच्चे के मां-बाप जिंदा हैं, उसका संरक्षक कोई और कैसे हो सकता है। कोर्ट ने यहां तक कहा कि संभव है कि याचिकाकर्ता आर्थिक रूप से संपन्न हों। वह बच्चे की बेहतर परवरिश कर सकते हों, लेकिन सिर्फ इस आधार पर कोर्ट उन्हें संरक्षक नियुक्त नहीं कर सकती। याचिकाकर्ता पहले से ही तीन बच्चों की मां है। ऐसे में वह कशिश को गोद लेने की भी पात्र नहीं हैं। ऐसे में कोर्ट ने ममता सिंह की याचिका खारिज कर दी।
प्रशासन के पाले में गेंद
वर्षों से नाबालिग बेटी को पाने की कोशिश में तंत्र से गुहार लगा रहे फौजी यशवीर सिंह को अमरोहा फैमिली कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। अब गेंद मुरादाबाद व अमरोहा के प्रशासनिक अमले के पाले में है। दोनों जिलों के डीएम के अलावा बाल कल्याण समिति को भी सुनिश्चित करना होगा कि कशिश अपने जैविक मां-बाप के घर वापस लौट सके। फौजी व उनकी पत्नी शैली सिंह बड़ी बेटी को गले लगाने की हसरत में वर्षों से तड़प रहे हैं। बाल कल्याण समिति मुरादाबाद के सदस्य हरिमोहन गुप्ता ने कहा कि प्रशासन की मदद से कशिश को उसके जैविक मां-बाप के सुपुर्द कराया जाएगा।
न्यूज़क्रेडिट: amritvichar