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कांग्रेस के टिकट पर जीतकर चेयरपर्सन बनी अंजू अग्रवाल की मुश्किलें भाजपा में शामिल होने के बाद भी कम नहीं हुई। भाजपा के ही सभासदों ने शिकायत की, जिसके बाद अग्रवाल के वित्तीय अधिकार सीज हो गए। शहर की वैश्य समाज की वर्तमान और भविष्य की राजनीति को लेकर भी अंदरूनी दांव खूब चले गए हैं।
चेयरपर्सन अंजू अग्रवाल का कार्य करने का अपना तौर-तरीका रहा। कांग्रेस में रहने के दौरान भाजपा सदस्य विरोध में रहे, लेकिन दबाव बढ़ा तो वह भाजपा में शामिल हो गई। संगठन जरूर बदला, लेकिन सियासत में समन्वय नहीं हुआ। पालिका के अलावा शहर के वैश्य समाज की राजनीति में कौशल विकास राज्यमंत्री कपिल देव अग्रवाल का वर्चस्व रहा है। लगातार अंजू अग्रवाल की शिकायत कर रहे भाजपा सभासद राजीव शर्मा और मनोज वर्मा को मंत्री का करीबी माना जाता रहा है। वित्तीय अधिकार की कानूनी लड़ाई शुरू हुई तो गेंद शासन के पाले में चली गई। इसी बीच अंजू अग्रवाल ने इस्तीफा देने का एलान कर कई संकेत दिए हैं। यह भी देखना दिलचस्प होगा कि इस बार निकाय चुनाव में कौन क्या चाल चलता है।
इस्तीफा हो सकता है सधी रणनीति का हिस्सा
चेयरपर्सन अंजू अग्रवाल और राज्यमंत्री कपिल देव अग्रवाल के बीच की दूरी जगजाहिर हैं। अहम बात ये है कि अंजू अग्रवाल की भाजपा संगठन और सरकार दोनों ही स्तर पर उपेक्षा साफ नजर आई है। ऐसे में इस समय जब कुछ ही माह के भीतर निकाय चुनाव होना तय माना जा रहा है, तो अंजू अग्रवाल का इस्तीफा सधी हुई रणनीति का हिस्सा भी हो सकता है। क्योंकि जिस तरह अभी तक अंजू अग्रवाल तमाम मोर्चों पर डटी नजर आई हैं, ऐसे में उनका इस तरह इस्तीफा देने को कुछ लोग भागना नहीं, बल्कि भविष्य की ठोस रणनीति का हिस्सा मान रहे हैं।
लखनऊ तक दबाई गई अंजू की आवाज
चेयरपर्सन अंजू अग्रवाल और राज्य मंत्री कपिलदेव अग्रवाल के बीच सियासी खींचतान जग जाहिर है। वर्चस्व की जंग में लखनऊ तक अंजू अग्रवाल को राहत नहीं मिली। यही वजह है कि उन्हें इस्तीफे का एलान करना पड़ा।
शहर विधायक और प्रदेश सरकार में राज्यमंत्री कपिल देव अग्रवाल के खास समझे जाने वाले दो सभासदों की शिकायत पर ही चेयरपर्सन के खिलाफ कार्रवाई हुई है। जिले से लकर लखनऊ तक कांग्रेस से भाजपाई बनी अंजू अग्रवाल की पीड़ा किसी ने नहीं सुनी। अपनी ही पार्टी में उन्होंने अपने आपको बेबस पाया। लेड़ी सिंघम कही जाने वाली भाजपा की महिला चेयरपर्सन इतनी हताश, निराश और असहाय हो गई है कि उन्हें त्यागपत्र देने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।हाईकोर्ट के आदेश के बाद शासन ने प्रशासन से जांच रिपोर्ट मांगी थी। प्रशासन ने जो रिपोर्ट भेजी है, उसके बाद चेयरपर्सन के वित्तीय के साथ प्रशासनिक अधिकार भी छीने जाने की तैयारी है। इससे पहले शासन कार्रवाई करे चेयरपर्सन ने त्यागपत्र देने की योजना बनाई है। सिस्टम के सामने उनके सभी प्रयास दम तोड़ते नजर आ रहे हैं। त्यागपत्र देने के अलावा अब उनके पास कोई चारा भी नहीं है।
सभासदों ने इस्तीफा देने से रोका
पालिका में बैठक के दौरान सभासदों ने चेयरपर्सन को इस्तीफा देने से भी रोका, लेकिन उन्होंने एलान कर दिया है। हालांकि लिखित में अभी तक कहीं कोई प्रक्रिया नहीं अपनाई गई है।
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