उत्तर प्रदेश

शंख ध्वनि कर श्रीहरि विष्णु को जगाया, पूजन कर आरती उतारी

Admin4
4 Nov 2022 6:08 PM GMT
शंख ध्वनि कर श्रीहरि विष्णु को जगाया, पूजन कर आरती उतारी
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बांदा। परिवार की खुशहाली के लिये बुंदेलखंड में पूरे वर्ष तीज त्योहार मनाए जाते हैं। इनमें से एक देव दीपावली (देवोत्थान एकादशी) भी है। शुक्रवार को देवोत्थान एकादशी पर मंदिर व घरों में भगवान श्रीहरि विष्णु का पूजन-अर्चन किया गया। प्रतीक के रूप में भक्तों ने शंख ध्वनि के साथ घंटा और घड़ियाल बजाकर उन्हें जगाया और मौसमी फल व मीठा गन्ना अर्पण कर आरती उतारी।
कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवोत्थान एकादशी मनाई जाती है। इस एकादशी का विशेष महत्व माना जाता है। बुन्देलखण्ड में इसे देव दीपावली के नाम से भी लोग जानते हैं। ऐसी मान्यता है कि श्रीहरि विष्णु त्रिदेवों में प्रमुख माने जाते हैं और उनके शयन से सारी सृष्टि की गतिविधियों पर विराम लग जाता है। इसीलिये चातुर्मास में सारे मांगलिक और वैवाहिक कार्यक्रम भी संपादित नहीं होते। श्रीहरि के जागरण से प्रसन्न होकर देवता भी दीपावली मनाते हैं। परिवार की सुख-समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति के लिए लोग एकादशी का व्रत रखते हैं। एकादशी के दिन भगवान श्रीहरि विष्णु का पूजन-अर्चन किया जाता है।
ज्योतिष और कर्मकांड के ज्ञाता पं.आनंद तिवारी बताते हैं कि आषाढ़ मास को होने वाली देवशयनी एकादशी को देव शयन के बाद जब कार्तिक मास की एकादशी को चातुर्मास की योग निद्रा से भगवान श्रीहरि जागते हैं, तो श्रद्धालु इस दिन को उत्सव के रूप में मनाते हैं। श्रद्धालु शंख, घड़ियाल, मृदंग आदि अन्य वाद्ययंत्रों की मंगल ध्वनि और मंत्रोच्चार के साथ भगवान को योग निद्रा से जगाते हैं और षोडाशोपचार विधि से पूजा-अर्चना करते हैं। देवोत्थान एकादशी के दिन भगवान श्रीहरि विष्णु चातुर्मास के बाद निद्रा पूर्ण कर जागृत होते हैं। इसलिए इस दिन लोग मीठे गन्ने से मंडप सजाते हैं। गाय के गोबर से लीप कर भगवान का सिंहासन स्थापित किया जाता है। कुछ लोग रंगोली भी बनाते हैं। श्रीहरि के स्वागत में उन्हें फल-फूल अर्पित किये जाते हैं।
ज्योतिष और कर्मकांड के ज्ञाता पं.आनंद तिवारी बताते हैं कि आषाढ़ मास को होने वाली देवशयनी एकादशी को देव शयन के बाद जब कार्तिक मास की एकादशी को चातुर्मास की योग निद्रा से भगवान श्रीहरि जागते हैं, तो श्रद्धालु इस दिन को उत्सव के रूप में मनाते हैं। श्रद्धालु शंख, घड़ियाल, मृदंग आदि अन्य वाद्ययंत्रों की मंगल ध्वनि और मंत्रोच्चार के साथ भगवान को योग निद्रा से जगाते हैं और षोडाशोपचार विधि से पूजा-अर्चना करते हैं। देवोत्थान एकादशी के दिन भगवान श्रीहरि विष्णु चातुर्मास के बाद निद्रा पूर्ण कर जागृत होते हैं। इसलिए इस दिन लोग मीठे गन्ने से मंडप सजाते हैं। गाय के गोबर से लीप कर भगवान का सिंहासन स्थापित किया जाता है। कुछ लोग रंगोली भी बनाते हैं। श्रीहरि के स्वागत में उन्हें फल-फूल अर्पित किये जाते हैं।
एकादशी पूजन(देव दीपावली) में गन्ना और मौसमी फल, शाक-सब्जी और अपने खेतों की अंकुरित फसलों में चने की भाजी, झाड़ी के बेरों (छोटे बेर), ज्वार का भुट्टा, रेउछा की फली को अर्पण करने की प्राचीन परंपरा है। इसलिये इनकी जमकर खरीददारी भी होती है। बीते कई वर्षों से लगातार प्रकृति की मार का असर त्योहारों में स्पष्ट दिख रहा है। ऐसे में महंगाई सिर चढ़कर बोल रही है। जनपद में गन्ने की फसल अच्छी न होने से बाजार में गन्ना ऊंचे दामों पर बिका। लोगों ने 25 से 50 रुपए कीमत पर प्रति गन्ना तक खरीदा। इसी प्रकार साग-सब्जी, चने की भाजी,मौसमी फल बेर, सिंघाड़ा, अमरूद आदि के भी दाम आसमान छू रहे थे। महंगाई के असर के चलते लोगों ने महज रस्म अदायगी के लिए पूजन का सामान खरीदा और अपने भगवान से सुख समृद्धि की कामना की।
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