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गोरखपुर जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर महराजगंज रोड पर स्थित औरंगाबाद गांव ¸में टेराकोटा शिल्पकारों की उंगलियां मिट्टी के लोंदे से खेलती नजर आ रही हैं. रामचंद्र प्रजापति अपनी पत्नी बेलासी देवी के साथ झूमर को आकार दे रहे हैं तो बेटा अखिलेश गणेश-लक्ष्मी की प्रतिमा को आकार देने में तल्लीन है. गांव के दर्जनभर शिल्पकारों के घरों का ऐसा ही नजारा है. ये सभी दीपावली और दशहरा के लिए मिला ऑर्डर पूरा करने में जुटे हैं. चेन्नई से लेकर दिल्ली, मुंबई से लेकर कोलकाता तक इन उत्पादों की बहार है.
उत्तर प्रदेश गवर्नमेंट ने टेराकोटा को एक जिला-एक उत्पाद योजना में शामिल किया तो गोरखपुर के इस शिल्प और शिल्पकारों को संजीवनी मिल गई. अब इनके उत्पाद औनलाइन प्लेटफार्म तक धूम मचा रहे हैं. आलम यह है कि दशहरा, दीपावली के लिए अभी से ऑर्डर फुल है. शिल्पकारों ने नये ऑर्डर लेने बंद कर दिए हैं.
एक दर्जन गांवों तक पहुंची कला
टेराकोटा के मूल गांव औरंगाबाद के साथ ही गुलरिहा, भरवलिया, जंगल एकला नंबर-2, अशरफपुर, हाफिज नगर, पादरी बाजार, बेलवा, बालापार, शाहपुर, सरैया बाजार, झुंगिया, झंगहा क्षेत्र के अराजी राजधानी आदि गांवों में 300 से अधिक हुनरमंद हाथ चाक पर दिन-रात मिट्टी को आकार दे रहे हैं. शिल्पकार राममिलन बताते हैं कि ओडीओपी में शामिल होने के बाद टेराकोटा का बाजार बढ़ गया और 30 से 35 प्रतिशत नए लोग इस कारोबार से जुड़ गए हैं. पहले दीपावली पर ही ऑर्डर मिलता था. अब पूरे 12 महीने काम मिल रहा है.
सरकार की सहायता से दिल्ली से मुंबई तक प्रदर्शनी में हिस्सा लेने का मौका मिल रहा है. सीएम स्वयं टेराकोटा के ब्रांड एंबेस्डर हैं. राममिलन बताते हैं कि चेन्नई के व्यवसायी ने फाउंटेन का ऑर्डर दिया है. यह 500 से लेकर 1500 रुपये में तैयार हो रहा है. रंग भरने के बाद इसकी मूल्य 5000 रुपये तक पहुंच जाती है. अब उन्हें कहीं काम मांगने नहीं जाना पड़ता. मेट्रो शहरों के व्यवसायी घर से पेमेंट कर ऑर्डर की डिलिवरी लेते हैं.
बाबाजी ने टेराकोटा का कायाकल्प कर दिया
राष्ट्रपति पुरस्कार विजेता बाबा श्यामदेव से टेराकोटा की बारीकियां सीखने वाले अखिलेश बताते हैं कि दीपावली के लिए लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा की अच्छी डिमांड है. मुंबई, जयपुर और नागपुर के व्यापारियों ने कछुआ और गणेश प्रतिमा का ऑर्डर दिया है. शिल्पी पन्नेलाल प्रजापति कहते हैं कि बाबा जी (सीएम योगी) ने टेराकोटा का कायाकल्प कर दिया है. अब वह सजावटी उत्पाद तो बना ही रहे हैं, मशीन लगाकर रोजमर्रा की आवश्यकता वाले कुल्हड़ भी बड़े पैमाने पर बना रहे हैं. बहुएं भी हुनरमंद हो गई हैं. इस समय गांव की 20 से अधिक स्त्री शिल्पकारों की आय का जरिया टेराकोटा है. शिल्पकार पूनम आजाद बताती हैं कि वह जब ससुराल आईं तो टेराकोटा का नाम भी नहीं सुना था, आज उनका अपना बैंक एकाउंट है. अच्छी कमाई हो जाती है.
ब्रांडिंग से हुआ बाजार का विस्तार
ओडीओपी में शामिल होने के बाद टेराकोटा शिल्पकारों को वित्तीय और तकनीकी सहायता तो मिली ही, मुख्यमंत्री की प्रतिनिधित्व में ऐसी जबरदस्त ब्रांडिंग हुई कि इसके बाजार को खुला आसमान मिल गया. राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त राजन प्रजापति कुछ सालों पहले तक कच्चे मकान में रहते थे. अब तीनमंजिला मकान फैक्ट्री और गोदाम में परिवर्तित हो गया है. करीब 30 हुनरमंद हाथ दिन-रात काम कर रहे हैं.
राजन स्वीकारते हैं कि ‘इलेक्ट्रिक चाक, पगमिल, डिजाइन मशीन आदि मिलने से शिल्पकारों का काम आसान और उत्पादकता तीन से चार गुनी हो गई. वर्ष के आरंभ में ही इतना ऑर्डर मिल गया है कि नए ऑर्डर नहीं ले रहे हैं. दो माह से तो दशहरा-दिवाली के ही ऑर्डर पर काम चल रहा है. वह बताते हैं कि टेराकोटा के सजावटी उत्पादों की सर्वाधिक मांग हैदराबाद, गुजरात, बेंगलुरु, चेन्नई, विशाखापत्तनम, पुडुचेरी, मुंबई आदि राज्यों से है.
ओडीओपी और माटी कला बोर्ड से मिली बूस्टर डोज
टेराकोटा शिल्पकारों को ओडीओपी योजना से लेकर माटी कला बोर्ड के अनुसार कर्ज मिला है. ओडीओपी योजना में 45 शिल्पकारों को 50 हजार से लेकर 5 लाख तक का कर्ज मिला है. वहीं माटी कला बोर्ड योजना में अनुसार 10 शिल्पकारों को कर्ज मिला है. माटी कला बोर्ड से 4.5 लाख का कर्ज लेने वाले हीरालाल का बोलना है कि मेट्रो शहरों में टेराकोटा आपूर्ति के लिए पूंजी की जरूरत पड़ती है और यह परेशानी समाप्त होने से काफी सहायता मिली है. अब हमारे उत्पाद औनलाइन प्लेटफार्म पर भी बिक रहे हैं.
तीन करोड़ तक पहुंच गया कारोबार
सरकार द्वारा औनलाइन और प्रदर्शनी का प्लेटफार्म उपलब्ध कराने के बाद कारोबार को पंख लग गए हैं. अब 250 से 300 शिल्पकार एक वर्ष में करीब तीन करोड़ रुपये के उत्पादों की बिक्री कर लेते हैं. अखिलेश चंद के अनुसार शिल्पकारों में आपस में प्रतियोगिता होने से उचित मूल्य नहीं मिल रहा है. एकजुटता हो तो बिचौलियों के हाथ जाने वाली रकम शिल्पकारों को ही मिले.
एसबीआई के कैलेंडर पर छप चुकी हैं बेलासी देवी
भारतीय स्टेट बैंक के कैलेंडर पर छप चुकी शिल्पकार बेलासी देवी बताती हैं कि राष्ट्रपति भवन में औरंगाबाद के शिल्प को जगह मिला है. अब योगी जी ने शिल्पकारों को पूरी दुनिया में पहचान दिलाई है