कासगंज : कंकड़ से पैरों में उभरे छालों ने कदम-कदम पर इम्तिहान लिया। गर्मी के तेवर बाधाएं डालने की कोशिश करते रहे, लेकिन मैनपुरी के इन सात श्रवण कुमार का रास्ता न रोक सके। बूंद-बूंद टपकते पसीने से एक इतिहास रचते हुए माता-पिता के ये भक्त अपने बूढ़े मां-बाप को कंधों पर लाद कर तीर्थनगरी में गंगा स्नान कराने ले ही आए। श्रवण कुमार बने सात भाइयों की इस श्रद्धा से माता-पिता गदगद थे। बूंद-बूंद टपकते पसीने से एक इतिहास रचते हुए माता-पिता का ये भक्त अपने बूढ़े मां-बाप को कंधों पर लाद कर तीर्थनगरी के हरिपदी स्थित गंगा घाट पर स्नान को ले आए। यह त्रेता युग के श्रवण कुमार का प्रेरक प्रसंग नहीं। वह नजारा है, जो रविवार को सोरों मार्ग पर श्रद्धालुओं ने देखा। फूलों से सजी कांवड़ में बंधी टोकरी और उसमें बैठे बुजुर्ग दंपती,लेकिन ये टोकरी किसी वाहन में नहीं बल्कि टोकरी को खुद सात भाई उठा रहे थे। यह थे मैनपुरी बरनाहल के गांव इकहरा के रहने वाले विकास, आकाश, विकास, श्रीकांत, अर्जुन और पंकज, जो कांवड़नुमा टोकरी के एक पलड़े में 95 वर्षीय पिता राधेश्याम और दूसरे पलड़े में मां 90 वर्षीय रामवती को बैठाकर सोरों के हरिपदी गंगा घाट पर स्नान कराने को ले जा रहे थे।गर्मी के तेवर बाधाएं डालने की कोशिश करते रहे, लेकिन मैनपुरी के इन सात श्रवण कुमार का रास्ता न रोक सके। बूंद-बूंद टपकते पसीने से एक इतिहास रचते हुए माता-पिता के ये भक्त अपने बूढ़े मां-बाप को कंधों पर लाद कर तीर्थनगरी में गंगा स्नान कराने ले ही आए। श्रवण कुमार बने सात भाइयों की इस श्रद्धा से माता-पिता गदगद थे। बूंद-बूंद टपकते पसीने से एक इतिहास रचते हुए माता-पिता का ये भक्त अपने बूढ़े मां-बाप को कंधों पर लाद कर तीर्थनगरी के हरिपदी स्थित गंगा घाट पर स्नान को ले आए। यह त्रेता युग के श्रवण कुमार का प्रेरक प्रसंग नहीं। वह नजारा है, जो रविवार को सोरों मार्ग पर श्रद्धालुओं ने देखा। फूलों से सजी कांवड़ में बंधी टोकरी और उसमें बैठे बुजुर्ग दंपती,लेकिन ये टोकरी किसी वाहन में नहीं बल्कि टोकरी को खुद सात भाई उठा रहे थे। यह थे मैनपुरी बरनाहल के गांव इकहरा के रहने वाले विकास, आकाश, विकास, श्रीकांत, अर्जुन और पंकज, जो कांवड़नुमा टोकरी के एक पलड़े में 95 वर्षीय पिता राधेश्याम और दूसरे पलड़े में मां 90 वर्षीय रामवती को बैठाकर सोरों के हरिपदी गंगा घाट पर स्नान कराने को ले जा रहे थे।