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हैदराबाद (आईएएनएस)| इस साल के अंत में होने वाले तेलंगाना विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस मुख्य चुनौती पेश करेंगी।
सन् 2018 में सिर्फ एक विधानसभा सीट और एक नगण्य वोट शेयर हासिल करने वाली भाजपा कांग्रेस को पीछे छोड़ते हुए सत्ताधारी पार्टी के लिए मुख्य चुनौती बन गई है।
भाजपा ने 2019 में राज्य में चार लोकसभा सीटें जीती थी। इसके अलावा दो विधानसभा उपचुनाव में उसने जीत हासिल की और ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम (जीएचएमसी) चुनावों में प्रभावशाली प्रदर्शन के साथ राज्य की राजनीति में उसका नाटकीय उदय हुआ।
बंदी संजय कुमार के नेतृत्व में भाजपा मिशन 2023 को प्राप्त करने के लिए आक्रामक मोड में है। तेलंगाना को कर्नाटक के बाद दक्षिण भारत का अपना दूसरा प्रवेश द्वार बनाने के उद्देश्य से पार्टी का पूरा राष्ट्रीय नेतृत्व राज्य पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
केसीआर 'अब की बार किसान सरकार' के नारे के साथ तेलंगाना से बाहर बीआरएस का विस्तार करना चाहते हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती देना चाहते हैं। दूसरी तरफ भाजपा उन्हें उनके ही घरेलू मैदान पर व्यस्त रखने के लिए हरसंभव कोशिश कर रही है।
वर्ष 2014 में तेलंगाना राज्य के गठन के बाद पहली बार भाजपा को चुनावी संभावनाएं दिख रही हैं। हिंदुत्व की राजनीति अपनाकर और परिवार के शासन और कथित भ्रष्टाचार के मुद्दे पर केसीआर को निशाना बनाकर भगवा पार्टी सत्ता में आने के प्रति आश्वस्त दिखती है।
वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में टीआरएस ने 88 सीटें जीतकर सत्ता बरकरार रखी थी। भाजपा महज एक सीट जीत सकी थी जबकि मात्र नौ निर्वाचन क्षेत्रों में दूसरे स्थान पर रही। अधिकांश सीटों पर इसके उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई।
हालांकि, कुछ महीने बाद हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सबको चौंका दिया। पार्टी ने न केवल सिकंदराबाद सीट दोबारा जीती बल्कि टीआरएस से करीमनगर, निजामाबाद और आदिलाबाद सीटें भी छीन लीं।
उपचुनावों में दो जीत ने भी भाजपा को मजबूती दी। हालांकि, मुनुगोडे में उपचुनाव में जीत की हैट्रिक लगाने की उसकी उम्मीदों को बीआरएस ने पिछले साल नवंबर में धराशायी कर दिया था।
जीएचएमसी में 2021 के चुनावों में प्रभावशाली प्रदर्शन ने भी भगवा पार्टी का मनोबल बढ़ाया। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा सहित अपने शीर्ष केंद्रीय नेताओं के आक्रमक प्रचार से पार्टी ने पिछले चुनावों में 150 सदस्यीय नगरपालिका निकाय में अपनी संख्या में चार से बढ़ाकर 48 कर ली।
जीत के बाद भगवा पार्टी को आने वाले चुनाव में अपने लिए एक वास्तविक मौका नजर आने लगा है। यही वजह है कि पार्टी यहां अपनी पूरी ताकत झोंक रही है।
पिछले कुछ महीनों के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह, जे.पी. नड्डा और कई केंद्रीय मंत्री राज्य का दौरा कर चुके हैं। भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक भी यहां आयोजित हुई थी। इनसे साफ है कि पार्टी तेलंगाना को कितना महत्व दे रही है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा आक्रामक हमले की फिराक में है।
जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, भगवा पार्टी धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण के लिए संवेदनशील मुद्दों को भुनाने के प्रयासों को तेज कर सकती है।
भाजपा भावनात्मक मुद्दों को उठा रही है जो बहुसंख्यक समुदाय के वोटों को हासिल करने में मदद कर सकता है, खासकर हैदराबाद और उसके आसपास के निर्वाचन क्षेत्रों और राज्य के अन्य शहरी इलाकों में।
बंदी संजय के 2020 में प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद भाजपा संवेदनशील मुद्दों से राजनीतिक लाभ लेने में बहुत आगे निकल गई। इसे एआईएमआईएम को उसके घरेलू मैदान पर चुनौती देने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। उन्होंने भाग्यलक्ष्मी मंदिर से ऐतिहासिक चारमीनार को पार करते हुए अपनी राज्यव्यापी प्रजा संग्राम यात्रा शुरू की।
वास्तव में यह मंदिर, जिसकी वैधता पर अतीत में कई बार सांप्रदायिक तनाव की चिंगारी उठती रही है, पिछले कुछ वर्षों में राज्य में भाजपा की राजनीति का केंद्र बिंदु बन गया है।
हालांकि, इसके बड़े दावों और अगले चुनाव को बीआरएस बनाम भाजपा की लड़ाई के रूप में पेश करने के प्रयासों के बावजूद तथ्य यह है कि भगवा पार्टी की पूरे राज्य में जमीन पर मजबूत उपस्थिति नहीं है। भाजपा की उपस्थिति उत्तर तेलंगाना और ग्रेटर हैदराबाद के कुछ हिस्सों तक सीमित मानी जाती है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मोदी शासन के मॉडल को छोड़कर भाजपा के पास तेलंगाना में कोई अन्य मुद्दा नहीं है। हालाँकि, बीआरएस इसे भी विफल मॉडल बताकर इसका मुकाबला कर रही है।
भाजपा के मिशन 2023 में राज्य का भीड़ भरा राजनीतिक मैदान बाधक हो सकता है। कई दलों की उपस्थिति से सत्ता विरोधी वोटों का विभाजन हो सकता है।
अभिनेता पवन कल्याण के नेतृत्व वाली जन सेना पार्टी, तेलुगु देशम पार्टी और वाईएसआर तेलंगाना पार्टी के साथ गठबंधन इसे बढ़त दे सकता है।
पवन कल्याण का पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश में भाजपा के साथ गठबंधन है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि यह तेलंगाना में भी होगा या नहीं।
कांग्रेस का मनोबल 2014 और 2018 के चुनावों के बाद दलबदल की एक श्रंखला, उपचुनावों में अपमानजनक हार और अंदरूनी कलह से पूरी तरह टूट चुका है, हालांकि तेलंगाना क्षेत्र कभी उसका गढ़ हुआ करता था।
तेलंगाना राज्य के निर्माण का श्रेय लेने का दावा करने के बाद भी दो विधानसभा चुनावों में हार के बावजूद, पार्टी सबक सीखने में विफल रही और घर में ही बंटी हुई है।
इसके बावजूद 2014 और 2018 में कांग्रेस कम से कम बीआरएस के लिए मुख्य प्रतिद्वंद्वी थी, लेकिन इस बार पार्टी इस स्थिति के बिना भी चुनाव का सामना कर रही है।
मुनुगोडे निर्वाचन क्षेत्र से मौजूदा विधायक, कोमाटिरेड्डी राजगोपाल रेड्डी के इस्तीफे और पिछले साल के अंत में उपचुनाव को मजबूर करने के लिए भाजपा में उनके दलबदल ने कांग्रेस को एक और झटका दिया। इसके उम्मीदवार तीसरे स्थान पर रहे और उनकी जमानत जब्त हो गई।
कांग्रेस ने 2014 में 119 सदस्यीय तेलंगाना विधानसभा में 22 सीटें जीती थीं। 2018 में यह सिर्फ 19 सीटें जीत सकी, हालांकि इसने टीडीपी, वामपंथी दलों और कुछ छोटे दलों के साथ चुनावी गठबंधन किया था।
कई वरिष्ठ नेताओं और मजबूत दावेदारों की अनदेखी के बाद 2021 में केंद्रीय नेतृत्व ने नए राज्य अध्यक्ष रेवंत रेड्डी की नियुक्ति की। नेताओं के एक वर्ग ने खुलेआम विद्रोह शुरू कर दिया क्योंकि वह 2018 के चुनाव से पहले टीडीपी से कांग्रेस में शामिल हुए थे।
नेतृत्व परिवर्तन पार्टी की किस्मत नहीं बदल सकी। कई वरिष्ठ नेताओं ने उन्हें दरकिनार करने के लिए रेवंत रेड्डी पर खुलकर हमला करना शुरू कर दिया।
लगातार गिरावट ने रेवंत रेड्डी के नेतृत्व पर नए सवाल खड़े कर दिए, जिनकी कार्यशैली ने कुछ वरिष्ठों को भी नाराज कर दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि एआईसीसी प्रभारी मणिकम टैगोर रेवंत रेड्डी के साथ हैं। मजबूतरन केंद्रीय नेतृत्व को हस्तक्षेप करना पड़ा माणिकराव ठाकरे को नया अध्यक्ष बनाया गया।
हालांकि ऐसा लगता है कि कांग्रेस मुख्य चुनौती देने वाली भाजपा के सामने झुक गई है, लेकिन इस पुरानी पार्टी के पास अभी भी कुछ जिलों में कुछ आधार है।
तेलंगाना में 8 मई को कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी की पहली जनसभा ने पार्टी खेमे में कुछ खुशी ला दी। पार्टी के नेताओं को उम्मीद है कि जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आएंगे, कांग्रेस तेलंगाना में सत्ता हासिल करने के लिए मजबूत होगी।
--आईएएनएस
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