श्रीडूंगरगढ़। एक ओर सरकार ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कई तरह की योजनाओं का संचालन कर अभिभावकों व बच्चों को प्रेरित कर रही है। वहीं दूसरी ओर कुछ विद्यालय ऐसे भी हैं जहां न तो प्रधानाध्यापक है और न ही विषय अध्यापक। ऐसा ही दंश धीरदेसर पुरोहितान गांव की राजकीय प्रवेशिका संस्कृत विद्यालय पिछले दस साल से झेल रहा है। यह विद्यालय बारह वर्ष पूर्व क्रमोन्नत हुआ था, लेकिन क्रमोन्नति के बाद से ही यहां प्रधानाध्यापक का पद रिक्त चल रहा है। इसके साथ ही हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत व सामाजिक जैसे विषय अध्यापकों के पद रिक्त चल रहे हैं।
विद्यालय में भरपूर नामांकन होने के उपरांत भी शिक्षण व्यवस्था नहीं होने से बेहतर परिणाम मिलना बेमुशीकल ही होगा। ग्रामीण लगातार संस्कृत शिक्षा निदेशक को इस सम्बंध में अवगत करवा रहे हैं पर परिणाम ढाक के तीन पात वाला ही मिल रहा है। वहीं विभाग द्वारा इस विद्यालय को संस्कृत शिक्षा का संकुल केंद्र बनाना भी कोढ़ में खाज वाली लोकोक्ति चरितार्थ कर रहा है। गांव के इस माध्यमिक विद्यालय में द्वितीय श्रेणी के 6 पद स्वीकृत है, लेकिन यहां केवल दो ही अध्यापक कार्यरत हैं। अंग्रेजी, हिन्दी, संस्कृत व सामाजिक विषयों के पद लंबे समय से रिक्त पड़े हैं। इसी तरह लिपिक व चतुर्थ श्रेणी के पद भी खाली पड़े हैं।