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राजस्थान | शहर में 8 बड़े सहित करीब 30 श्मशान घाट हैं, जबकि 6 गोशालाएं हैं। लेकिन एक भी श्मशान घाट पर गो-काष्ठ से दाह संस्कार की सुविधा नहीं है। यह स्थिति तब है, जबकि इन गोशालाओं पर रोज 40 से 50 क्विंटल गाय का गोबर उत्पादित होता है। करीब 60 किलो गोबर से 15 किलो गो-काष्ठ बनाई जा सकती है। ऐसे में रोज 12 से 13 क्विंटल गो काष्ठ का निर्माण हो सकता है। लकड़ी से एक शव के दाह संस्कार के लिए न्यूनतम 5 क्विंटल लकड़ी (कीमत करीब 3250 रुपए) की जरूरत होती है, जबकि गो-काष्ठ महज 3 क्विंटल (कीमत 1200 रुपए) में ही यह काम हो सकता है। इससे न केवल पैसे की बचत होगी, बल्कि धार्मिकता-पवित्रता के लिहाज के साथ-साथ पर्यावरण तथा पेड़ों की सुरक्षा के लिए यह बड़ा कदम होगा। हालांकि, गो-काष्ठ में भी थोड़ी-बहुत लकड़ी की आवश्यकता होगी, लेकिन यह नाममात्र की रहेगी।
प्रदेश में ही उदयपुर से काफी छाेटे जिलाें में गो-काष्ठ से दाह संस्कार की शुरुआत हाे चुकी है, लेकिन यहां नहीं हाेने के पीछे किसी समाज या संस्थान की ओर से रुचि नहीं दिखाना तथा प्रशासन की ओर से भी प्राेत्साहित नहीं किया जाना बड़ा कारण है। शहर के सभी 30 श्मशान घाटों में से गैस से शवदाह की सुविधा एकमात्र अशोक नगर श्मशान में हैं। इलेक्ट्रिक शवदाह की सुविधा किसी भी श्मशान में नहीं है। अशोक नगर स्थित श्मशान घाट में 160 शवों का एकसाथ दाह संस्कार करने की सुविधा है। आयड़, फतेहपुरा, अहिंसापुरी, राणी रोड, सेक्टर-13, सविना, सेक्टर-3 में बड़े श्मशान घाट हैं। इसके अलावा शहर में अन्य श्मशान घाट भी हैं।
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Harrison
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