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रिश्वत के एक मामले में अदालत में 13 साल तक सुनवाई चलती रही। आरोपी इंजीनियर पर 1500 रुपए रिश्वत लेने का आरोप है। अब उसको दोषी मानते हुए अदालत ने एक साल की सजा सुनाई है। उदयपुर में भ्रष्टाचार संबंधित मामलो की अदालत ने यह सजा सुनाई है।
क्या है पूरा मामला
दरअसल मामला 2009 का है। आरोप लगाने वाले डूंगरपुर निवासी रईस अहमद ने कोल्ड स्टोरेज में बिजली विभाग में नई एलटीसीटी लगाने के लिए आवेदन किया था। यह फाइल एईएन के पास गई। वहां से इस फाइल को बांसवाड़ा के बिजली निगम के एईएन को भेजा गया। इस पर भीलवाड़ा निवासी बांसवाड़ा एईएन (मीटर) चिरंजित चौधरी ने काम के बदले 1500 रुपए की रिश्वत मांगी। एसीबी ने एईएन चिरंजित को रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया।
1 साल की सजा और 20 हजार जुर्माना
इस मामले में लोक अभियोजक राजेश पारीक ने सरकार की ओर से पैरवी करते हुए 16 गवाह और 46 दस्तावेज पेश किए। अदालत ने विभिन्न धाराओं में आरोपी को एक साल की सजा और कुल 20 हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई है।
क्यों होती है न्याय में देरी
वरिष्ठ अधिवक्ता दिनेश गुप्ता बताते हैं कि भ्रष्टाचार वाले मामलों में अभियोजन स्वीकृति में ही काफी वक्त लग जाता है। बाकी अदालतों में कभी गवाह नहीं होते तो कभी वकीलों की छुट्टी हो जाती है। पीठासीन अधिकारी नहीं होने पर भी सुनवाई में देरी होती है। बहरहाल सरकार को अभियोजन स्वीकृति देने में जल्दी करनी चाहिए। साथ ही अदालतों में सुनवाई भी जल्दी होनी चाहिए, तभी समय पर न्याय मिल पाएगा।
Kajal Dubey
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