राजस्थान
अधिकमास में पूजा में भगवान विष्णु को कमल और चंपा अर्पित करने से भगवान होते प्रसन्न
Shantanu Roy
24 July 2023 10:40 AM GMT
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प्रतापगढ़। प्रतापगढ़ अधिकमास में भगवान विष्णु की विशेष पूजा का विधान शास्त्रों में बताया गया है। जिसमें विशेष फूल और पत्ते चढ़ाने से पूजा का पूरा फल मिलता है, लेकिन कुछ फूल और पत्ते भगवान विष्णु को पसंद नहीं हैं। इन्हें अर्पित करने से पूजा निष्फल मानी जाती है। विष्णु धर्मतार पुराण और पद्म पुराण में कहा गया है कि पुरूषोत्तम मास में भगवान विष्णु की पूजा स्वर्ण पुष्पों से करने का विधान है। यानी अधिक मास में भगवान विष्णु को चंपा के फूल चढ़ाने से सभी तरह के पाप खत्म हो जाते हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। ज्योतिषाचार्य सौरभ जोशी और धार्मिक विद्वान डॉ. गणेश मिश्र का कहना है कि आश्विन माह में जूही और चमेली के फूलों से भगवान विष्णु की पूजा करने से सौभाग्य और समृद्धि बढ़ती है। इनके साथ ही भगवान को तुलसी के पत्ते भी चढ़ाने चाहिए। इससे सभी प्रकार के दोष भी दूर हो जाते हैं। भगवान विष्णु को केवड़ा प्रिय है और भगवान विष्णु की पूजा में गुलाब, पारिजात, मालती, केवड़ा, चंपा, कमल, गुलाब, मोगरा, कनेर और गेंदा के फूलों का उपयोग करना चाहिए। इससे श्रीहरि प्रसन्न होते हैं। इनके साथ ही जती, पुन्नाग, कुंद, तगर और अशोक वृक्ष के फूल भी भगवान के प्रिय फूलों में आते हैं। इन फूलों से पूजा करने से भगवान विष्णु के साथ-साथ लक्ष्मी जी भी प्रसन्न होती हैं। भगवान विष्णु को प्रिय पत्तों में तुलसी के साथ फूलों के साथ बिल्वपत्र भी चढ़ाया जाता है।
इससे धन-धान्य और सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। भगवान विष्णु के पसंदीदा पत्ते तुलसी, शमी पत्र, बिल्वपत्र और दूर्वा यानी दूब हैं। इनके साथ ही भृंगराज, खेर, कुशा, दमनक यानी दवाण और अपामार्ग यानी चिरचिटा के पत्तों का भी विष्णुजी की पूजा में उपयोग किया जाता है। भगवान विष्णु की पूजा में अगस्त्य पुष्प, माधवी और लोध पुष्प का प्रयोग नहीं किया जाता है। भगवान को यह पसंद नहीं है. इनके साथ ही विष्णु की मूर्ति पर अक्षत यानी चावल भी नहीं चढ़ाए जाते. अधिकमास में भगवान की पूजा करते समय इन बातों का ध्यान रखना चाहिए। फूल-पत्तियों से जुड़ी ध्यान रखने योग्य बातें अशुद्ध, बासी और कीड़ों द्वारा खाए गए कटे-फटे फूल-पत्तियों का उपयोग भगवान की पूजा में नहीं करना चाहिए। जमीन पर गिरे हुए, दूसरों से मांगे या चुराए हुए फूलों का भी पूजा में उपयोग नहीं करना चाहिए। इनके अलावा कमल और कुमुदिनी के फूल पांच दिनों तक बासी नहीं होते। इसके साथ ही बिल्वपत्र, पान और तुलसी के टूटे हुए पुराने पत्ते भी चढ़ाए जा सकते हैं। शरीर पांच तत्वों जल, अग्नि, आकाश, वायु और पृथ्वी से बना है। अधिकमास में पूजा पाठ, चिंतन, मनन इन पांचों का संतुलन बनता है, जिससे व्यक्ति को भौतिक सुख और उन्नति मिलती है। कुंडली दोषों का भी निवारण होता है। यही कारण है कि हर तीन साल में आने वाले अधिकमास का विशेष महत्व है।
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Shantanu Roy
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