राजस्थान

केला फसल में लगने वाले रोगों की पहचान एवं प्रबंधन का प्रचार-प्रसार कराने का निदेश

Shantanu Roy
20 Sep 2022 5:52 PM GMT
केला फसल में लगने वाले रोगों की पहचान एवं प्रबंधन का प्रचार-प्रसार कराने का निदेश
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बेतिया। जिलाधिकारी कुंदन कुमार ने कृषि विभाग अंतर्गत पौधा संरक्षण से संबंधित कार्यों की समीक्षा आज की। उन्होंने कहा कि कृषि विभाग-पौधा संरक्षण द्वारा सर्वेक्षण के क्रम में यह ज्ञात हुआ है कि जिन जगहों पर केला का अधिक उत्पादन होता है, वहां केला फसल में सिगाटोका रोग एवं पनामा विल्ट रोग फैलने की संभावना है। जिले में इसकी रोकथाम के लिए विभाग द्वारा जारी दिशा-निर्देश के अनुरूप समुचित उपाय किया जाय। उन्होंने निदेश दिया कि केला उत्पादकों के बीच केला फसल में लगने वाले रोगों की पहचान एवं प्रबंधन का व्यापक प्रचार-प्रसार कराना सुनिश्चित किया जाय। समीक्षा के क्रम में सहायक निदेशक, पौधा संरक्षण द्वारा बताया गया कि केला के सिगाटोका रोग अंतर्गत दो प्रकार के रोग पीला सिगाटोका एवं काला सिगाटोका आते हैं। केला के सिगाटोका रोग की पहचान निम्न प्रकार से की जा सकती है।
(1) पीला सिगाटोका-मायकोस्फेरेल्ला म्युसिकोला नामक फफूंद से लगने वाला रोग है। जिसके लक्षण केले के नये पत्ते के ऊपरी भाग पर हल्का पीला दाग या धारीदार लाईन के रूप में परिलक्षित होता है। बाद में धब्बे बड़े तथा भूरे रंग के हो जाते हैं, जिसका केन्द्र हल्का कत्थई रंग होता है।
(2) काला सिगाटोका-मायकोस्फेरेल्ला फिजियेन्सिस नामक फफूंद से लगने वाला रोग है। जिसके लक्षण केले के पत्तियों के निचले भाग पर काला धब्बा, धारीदार लाईन के रूप में परिलक्षित होता है।
उन्होंने बताया कि इसका प्रबंधन निम्न प्रकार से किया जा सकता है।
(1) कृषक बंधु खेत को खर-पतवार से मुक्त एवं साफ-सुथरा रखें।
(2) खेत से अधिक पानी की निकासी कर लें।
(3) प्रतिरोधी किस्म के पौधे लगायें।
(4) जैव कीटनाशी, ट्राइकोडरमा विरीडी एक किलोग्राम 25 किलोग्राम गोबर खाद के साथ मिलाकर प्रति एकड़ की दर से मिट्टी उपचार करें।
(5) रासायनिक फफूंदनाशी कॉपर ऑक्सीक्लोराईड 50 प्रतिशत घु0चू0 03 ग्राम प्रति लीटर पानी अथवा मैंकोजेब 75 प्रतिशत घु0चू0 02 ग्राम प्रति लीटर पानी अथवा थायोफिनेट मिथाईल 75 प्रतिशत घु0चू0 01 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
सहायक निदेशक, पौधा संरक्षण द्वारा बताया गया कि केला फसल में लगने वाला दूसरा रोग पनामा विल्ट है। बारिश के दिनों में जल निकासी प्रबंधन नहीं रहने के कारण, अधिक तापमान वाले जगहों पर केले के फसल में यह रोग फैलता है। अचानक सम्पूर्ण पौधे का सूखना या नीचे का हिस्से की पत्ती का सूखना इस मूल पर्णवृत तथा तने के अंदर से सड़ी हुई मछली की दुर्गन्ध आती है।
उन्होंने बताया कि पनामा विल्ट से रोग का प्रबंधन निम्न प्रकार से किया जा सकता है।
(1) एक किलो ट्राइकोडरमा भिरीडी 25 किलोग्राम गोबर खाद के साथ प्रति एकड़ की दर से मिट्टी उपचार करें।
(2) खेत को खर-पतवार से मुक्त रखें।
(3) प्रतिरोधी किस्म के पौधे लगायें।
(4) सकर को 30 मिनट तक कार्बेन्डाजिम 1.0 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल में डुबाने के बाद रोपनी करें।
(5) कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत घु0चू0 का 01 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
(6) केले की पत्तियां चिकनी होती है। अतः घोल में स्टीकर मिला देना लाभदायक होगा।
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