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नई दिल्ली: राजस्थान में हुए सियासी घटनाक्रम के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत एक बार फिर अनुशासन और बड़प्पन के मोड में है ! वस्तुत: 50 साल से उनका गांधी परिवार के एक वफादार सिपाही की तरफ सुख-दुख में उनके साथ खड़े रहने का यही स्टैंड रहा है. लेकिन पिछले 4-5 दिनों से उनकी जन्मपत्री में एक अजीब योग रहा है. मुख्यमंत्री और CLP लीडर रहते हुए कांग्रेसी विधायकों का बैठक में ना पहुंचकर एक तरह से आलाकमान के खिलाफ खुली बगावत करना और इसका परिणाम ये निकला कि गहलोत ने कांग्रेस अध्यक्ष का पर्चा नहीं भरा. और सोनिया के सामने एक तरह से लज्जित होना पड़ा. राजस्थान के घटनाक्रम के लिए हाथ जोड़कर माफी मांगनी पड़ी और एक बार फिर से आलाकमान के साथ खड़े रहने का भरोसा दिलवाना पड़ा.
सूत्रों के अनुसार सोनिया से मिलने के बाद कल रात खुद गहलोत भी बेचैन रहे और आज सुबह उन्होंने फिर गांधी परिवार और आलाकमान की हर बात मानने का पूरा भरोसा दिलाया है. हालांकि गहलोत सीधे तौर पर इस घटनाक्रम के लिए जिम्मेदार नहीं थे. लेकिन CLP लीडर के नाते उनकी नैतिक जिम्मेदारी थी. गहलोत एक अनुशासित कार्यकर्ता की तरह AICC पहुंचे और सोनिया के प्रत्याशी मल्लिकार्जुन खड़गे के नाम के प्रस्तावक बने.
एक बार फिर मीडिया के सामने उन्होंने बड़प्पन दिखाया:
गहलोत के इस आचरण और व्यवहार से गांधी परिवार और आलाकमान निश्चित तौर पर प्रभावित होगा. और 10, जनपथ पर भी बर्फ पिघलना शुरू हुई होगी. अब जहां तक गहलोत के इस्तीफे का प्रश्न है वहां एक बार फिर मीडिया के सामने उन्होंने बड़प्पन दिखाया, और कहा कि 'मेरा इस्तीफा हमेशा ही सोनिया जी के पास रहता है'. अब हर किसी की निगाहें कल या परसों होने वाली विधायक दल की बैठक में गहलोत के संभावित 'रोल' पर है. सूत्रों के अनुसार विधायक दल की बैठक में गहलोत इस्तीफा दे सकते हैं! और नए मुख्यमंत्री के नाम के प्रस्तावक बन सकते हैं. अब सवाल यह कि नया मुख्यमंत्री कौन होगा
राजनीति संभावनाओं का 'खेल':
आलाकमान से जुड़े सूत्रों के अनुसार अभी तक पायलट ही दौड़ में सबसे आगे हैं. कल रात सोनिया-पायलट की एक घंटे की मुलाकात के बाद लगभग पूरे तौर पर तस्वीर साफ हो चुकी है. लेकिन गहलोत समर्थकों को अभी भी "बैक डोर चैनल्स" के मार्फत गहलोत द्वारा आलाकमान से किसी दूसरे नाम पर सहमति बनाने की उम्मीद है. अलबत्ता इसकी उम्मीद काफी कम है. वैसे राजनीति संभावनाओं का 'खेल' है. अब दूसरा सवाल यह कि धारीवाल-महेश जोशी-खाचरियावास और धर्मेंद्र राठौड़ जैसे लोगों का रुख क्या होगा? सूत्रों के अनुसार गहलोत को उन्हें मनाने के लिए मशक्कत करनी होगी. लेकिन राजनीतिक प्रेक्षकों के अनुसार मौजूदा हालात और पायलट के प्रति आलाकमान का झुकाव देखकर ये विधायक मान भी सकते हैं.
आखिर कब तक कोई अपने आलाकमान से लड़ सकता है?
इस संदर्भ में आलाकमान ने आज या कल जयपुर आने वाले पर्यवेक्षकों द्वारा एक-एक विधायक से अकेले में मिलने का एक महत्वपूर्ण फैसला लिया है. और लगभग 80% विधायकों द्वारा आलाकमान पर फैसला छोड़ने का मन बनाया गया है. आखिर कब तक कोई अपने आलाकमान से लड़ सकता है? और यदि फिर भी HARD LINERS अपने बगावती तेवरों पर हैं कायम?... और आलाकमान भी अपने 'स्टैंड' पर कायम रहा? ... तो फिर राजस्थान राष्ट्रपति शासन की ओर बढ़ेगा? ऐसे में जयपुर और दिल्ली में वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ईश्वर से राजस्थान में सब कुछ शांति और भाईचारे से निपट जाने की दुआ कर रहे हैं.
न्यूज़ क्रेडिट: firstindianews
Admin4
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