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कोटा। कोटा मेडिकल कॉलेज के एमबीएस हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने 10 महीने की बच्ची के सिर के पीछे बड़ी गांठ (350 ग्राम) का सफल आपरेशन कर मासूम को नया जीवन दिया है। ऑपरेशन तीन घंटे तक चला। यह काफी जटिल और रिस्की था। इस बीमारी को 'ओक्सीपीटल एनकेफेलोसील' कहते हैं। न्यूरोसर्जन डॉ.एसएन गौतम ने बताया कि 21 अगस्त को डीसीएम निवासी बच्ची के घरवाले हॉस्पिटल आए। बच्ची के सिर के पीछे उसके सिर के बराबर की गांठ थी। बच्ची को चाइल्ड स्पेशलिस्ट को दिखाया था। इसके बाद उसे न्यूरो सर्जरी विभाग में भेजा गया। बच्ची की जांचें की गईं। उसका सिर भी काफी बड़ा था। जांच के बाद बच्ची को भर्ती कर लिया गया। चार डॉक्टरों की टीम ने 23 सितंबर को ऑपरेशन किया। सिर से पेट तक नली डालकर ब्लड प्रेशर कम कर गांठ का सफल ऑपरेशन किया गया। बच्ची अब बिल्कुल ठीक है। बच्ची के परिजन दो महीने पहले भी बच्ची को दिखाने आए थे। तब हमने गांठ को ऑपरेट करवाने की सलाह दी थी। परिवार ने बाद में कहीं और भी इलाज करवाया था।
डॉ.एस एन गौतम, डॉक्टर बनेश जैन, डॉक्टर अर्चना त्रिपाठी और डॉक्टर हंसराज चरण ऑपरेशन टीम में शामिल थे। डॉ.एस एन गौतम ने बताया कि बच्ची छोटी थी और एक तरह से दिमाग का ही ऑपरेशन होना था, जिसमें काफी रिस्क रहता है। छोटे बच्चों में कई बार बेहोशी की दवा के प्रभाव से कार्डियक अरेस्ट का रिस्क अधिक होता है। बच्ची को कोई कार्डियक प्रॉब्लम तो नहीं है इसके लिए उसकी धड़कन व बीपी की लगातार मॉनिटरिंग कर मैनेज किया। ऐसे मरीजों का ऑपरेशन प्रोन पोजीशन में किया जाता है। इसके कारण मरीज के फेफड़ों, पेट और आंखों पर दबाव बढ़ जाता है। इससे कृत्रिम सांस देने में परेशानी आती है। यह भी बड़ी समस्या थी। टीम ने इसे मैनेज किया। बच्ची की गांठ को अलग कर दिया गया है। इसके बाद बच्ची को ऑब्जर्वेशन में लिया गया। 10 दिन तक बच्ची को निगरानी में रखने के बाद अब उसे छुट्टी देने की तैयारी है।
डॉ.गौतम ने बताया कि छोटे बच्चों में ब्रेन की झिल्ली और एक हिस्सा हड्डी में से बाहर निकलने लगता है। यही गांठ बनने का कारण है । छोटे बच्चों के दिमाग की हड्डी में पिछली तरफ गैप होता है। समय के साथ-साथ यह बंद होता जाता है। जन्मजाम विकृति होने के चलते इस गैप में से दिमाग के अंदर का कुछ हिस्सा और झिल्ली बाहर निकलने लगती है और गैप को बढ़ा देती है। इसके साथ ही फ्लूड भी निकल कर दूसरी तरफ भरने लग जाता है। इसी वजह से गांठ बन जाती है। धीरे-धीरे गांठ बड़ी होने लगती है। अगर समय पर इसका इलाज नहीं हुआ तो रिसाव शुरू हो जाता है, जिससे मौत हो सकती है। गांठ अंदर की तरफ बढ़ने लगे तो भी नुकसानदायक होती है। दोनों ही स्थिति में मरीज के जीवन को खतरा होता है। इससे विकलांगता भी हो सकती है।
डीसीएम निवासी सुमन ने बताया कि उनकी बेटी के जन्म के महीने भर बाद दिमाग के पिछले हिस्से में गांठ होने का पता चला। दो महीने बाद जब गांठ बढ़ने लगी तो हमने कई डॉक्टरों को दिखाया। दवाइयां भी चलीं, लेकिन गांठ बढ़ती चली गई। डॉ. एसएन गौतम ने बताया कि ओक्सीपीटल एनकेफेलोसील, स्पाइना बाईफिडा बीमारी का ही एक रूप है। स्पाइना बाईफिडा होने के कई कारण हो सकते हैं। इनमें मुख्य रूप से आनुवंशिक कमी, गर्भावस्था में मां का रेडिएशन के सम्पर्क में आना, गर्भावस्था में फोलिक ऐसिड की कमी (विटामिन बी 9), अधिक उम्र में गर्भ धारण एवं गर्भावस्था में हानिकारक दवाओं का सेवन इसका कारण बनता है। यही अलग-अलग विकृतियां पैदा करती हैं। विश्व स्तर पर 1,000 जीवित जन्मे बच्चों में स्पाइना बाईफिडा के केवल 1-2 मामले ही पाए जाते हैं, जबकि भारत में यह संख्या प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर 4 से 8 तक होती है, जो अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग हो सकती है। ओक्सीपीटल एनकेफेलोसील पांच हजार में से एक बच्चे को होता है। इसके कई लक्षण हो सकते हैं, जैसे कि कभी-कभी रीढ़ की हड्डी में त्वचा पर बालों का एक असामान्य गुच्छा, एक बर्थमार्क या उभरी हुई रीढ़ की हड्डी के टिश्यू और सिस्ट (पानी से भरी हुई गांठ ) शामिल हैं। इसके अलावा कई गंभीर प्रकार की परेशानियां भी हो सकती हैं। जैसे आंत में रुकावट, मांसपेशियों में कमजोरी, बौद्धिक क्षमता में कमी, कूबड़ निकलना , एक या दोनों पैरों में लकवा भी हो सकता है।
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