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कोटा। कोटा थ्रेशर की चपेट में आकर 6 साल की दिव्यांशी गंभीर रूप से घायल हो गई थी। सिर के बाल, चमड़ी-हड्डी अलग हो गई थी। दिमाग का एक हिस्सा (बाहरी परत) चोट की वजह से बेकार हो गया था। कोहनी की हड्डी भी टूट गई थी। गम्भीर हालत में उसे MBS हॉस्पिटल लाया गया। न्यूरो सर्जन डॉक्टर एसएन गौतम ने जांच के बाद सर्जरी करने का निर्णय लिया। करीब 4 घंटे सर्जरी चली और बच्ची अब स्वस्थ है। एमबीएस में न्यूरो सर्जरी विभाग के डॉ. एसएन ( सच्चिदा नंद) गौतम ने बताया- दिव्यांशी लाडपुरा इलाके में रहती है। 31 मार्च को शाम 5 बजे खेलते समय चारा काटने के थ्रेशर में उसके बाल फंस गए। गम्भीर हालत में परिवार वाले उसे हॉस्पिटल लाए। मासूम के दिमाग का एक हिस्सा खुला हुआ था। इसकी वजह से दिमाग में संक्रमण होने से जान जाने का खतरा बना हुआ था। सर्जरी में न्यूरो सर्जरी, प्लास्टिक सर्जरी, ऑर्थो सर्जरी व एनेस्थिसिया विभाग को शामिल किया गया।
ऐसी सर्जरी में आमतौर प्राइवेट हॉस्पिटल में 2 लाख तक का खर्च आता। एमबीएस हॉस्पिटल में मासूम को चिरंजीवी योजना का लाभ मिला। 1 अप्रैल को बच्ची का ऑपरेशन किया गया। फिलहाल डॉक्टर्स की देखरेख में अस्पताल में ही भर्ती है। टीम ने ऑपरेशन कर जांघ की अंदरूनी परत के टुकड़े को लेकर जख्मी सिर को जोड़ा। उसी जगह से चमड़ी निकालकर सिर पर ट्रांसप्लांट किया गया। ऑपरेशन करीब 4 घंटे तक चला। मरीज को दो यूनिट खून भी लगाया गया। ऑपरेशन के बाद ICU में कई दिनों तक डॉक्टरों की देखरेख में रखा। उसकी लगातार ड्रेसिंग की गई। बाद में एक और ऑपरेशन में ऑर्थो विभाग के डॉक्टर दिनेश कुमार मीणा ने कोहनी की हड्डी को ऑपरेशन की मदद से जोड़ा।
डॉ. गौतम ने बताया- इस तरह के जटिल ऑपरेशन में स्पेशलिस्ट की जरूरत होती है। एक ही स्टेज में इस तरह की सर्जरी पहले कभी नहीं की गई। डॉक्टरों की टीम में कल्प शांडिल्य, कनिष्क गोयल, बनेश जैन, आशीष मोर, मनोजित, सीमा मीणा शामिल रहे। उन्होंने बताया- बाल के साथ सिर की हड्डी का छोटा टुकड़ा (6×6 सेंटीमीटर) मशीन में फंस गया था। इमरजेंसी में मरीज की जान बचाना जरूरी था। फिलहाल सिर को ढका गया है। सिर की चमड़ी को घुमाकर लगाया गया। अभी हड्डी को ट्रांसप्लांट नहीं किया गया। बाद में छोटा ऑपरेशन कर बोन सीमेंट (मेडिकल सीमेंट) की हड्डी बनाकर लगाई जा सकती है।
बच्ची के मामा मुकेश ने बताया- दिव्यांशी दो साल से मां उमा (27) के साथ ननिहाल में रहती है। उसका 2 साल का छोटा भाई भी है। उसके पिता ने उन्हें छोड़ रखा है। 31 मार्च की शाम साढ़े 5 बजे के आसपास हादसा हुआ था। परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी। किसी तरह खेती-किसानी से गुजर-बसर किया जाता है। प्राइवेट में ले जाने के पैसे नहीं थे। उस समय प्राइवेट हॉस्पिटल में हड़ताल भी चल रही थी। उसे न्यू मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल लेकर आए। यहां से उसे MBS रेफर किया गया। MBS में न्यूरो सर्जन डॉ. एसएन गौतम ने इलाज की जिम्मेदारी ली। चिरंजीवी योजना में दिव्यांशी का फ्री इलाज किया गया। बच्ची को अभी डिस्चार्ज नहीं किया गया है।
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