अपनीबात : देश की राजनीति इस समय एक संक्रमण काल से गुजर रही है। यह सिलसिला आगामी लोकसभा चुनाव तक चलेगा। यह सार्वजनिक जीवन में भाषा और आचरण की सभी मर्यादा टूटने का दौर है। दोष सिद्ध होने पर भी कोई माफी मांगने को तैयार नहीं है। भ्रष्टाचार की जांच से बचने को मौलिक अधिकार मान लिया गया है। आजादी के बाद से विपक्ष इतना कमजोर और दिशाहीन कभी नहीं रहा। यहां तक कि जब संख्या बल में इससे कम रहा तब भी नहीं।
इसी दौर में बीते दिनों कांग्रेस नेता राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता चली गई। कांग्रेस इस बात से खुश है या दुखी यह पता लगाना कठिन हो रहा है। कांग्रेसी सड़क पर तो उतरे हैं, लेकिन उन्हें पता नहीं है कि वे किसके खिलाफ हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ तो कांग्रेस पिछले 22 साल से है। इसमें कोई नई बात नहीं है। दरअसल राजनीतिक परिदृश्य पर मोदी का होना ही कांग्रेस की सबसे बड़ी समस्या है।
कांग्रेस के तीव्र गति से हो रहे पतन को जरा इस बात से समझिए। यह बात नवंबर 1992 की है। पीवी नरसिंह राव देश के प्रधानमंत्री थे। दिल्ली में कांग्रेस के विधायकों और नेताओं की बैठक हुई। उसमें राव ने कहा कि ऐसा इंतजाम कर रहा हूं कि आप घर बैठे चुनाव जीतेंगे। बात यह थी कि उन्होंने उसी समय तय कर लिया था कि अयोध्या में जमीन अधिग्रहण के कल्याण सिंह सरकार के फैसले पर इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला छह दिसंबर (कारसेवा की तारीख) से पहले नहीं आने देंगे। कारसेवा निर्धारित तारीख पर नहीं हो पाएगी। कारसेवक और मंदिर समर्थक भाजपा नेताओं के विरुद्ध विद्रोह कर देंगे।