महाराष्ट्र

फांसी के 7 साल बाद आखिर इस आतंकी को लेकर क्यों मचा बवाल

Admin4
8 Sep 2022 6:15 PM GMT
फांसी के 7 साल बाद आखिर इस आतंकी को लेकर क्यों मचा बवाल
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29 साल पहले मार्च, 1993 में सीरियल बम ब्लास्ट ने मायानगरी मुंबई को दहला दिया था। इस धमाके में 250 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी और सैकड़ों लोग घायल हो गए थे। इन बम धमाकों का मुख्य साजिशकर्ता टाइगर मेमन और उसका परिवार था। टाइगर के भाई याकूब मेमन पर धमाकों की साजिश के लिए पैसे जुटाने का आरोप था। इसी के चलते 27 जुलाई 2007 को टाडा कोर्ट ने याकूब मेमन को मौत की सजा सुनाई थी। बाद में उसे 30 जुलाई, 2015 को फांसी पर लटका दिया गया था। कौन है याकूब मेमन और मौत के 7 साल बाद उसकी कब्र को लेकर आखिर क्यों मचा है बवाल? आइए जानते हैं।

याकूब मेमन की क्रब पर क्यों छिड़ा विवाद?

दरअसल, बीजेपी ने महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे पर सीएम रहते हुए याकूब मेमन की कब्र को मजार में बदलने का आरोप लगाया है। दूसरी ओर, शिवसेना का कहना है कि महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस की सरकार ने याकूब के शव को उनके परिवार को सौंपा था। बता दें कि 30 जुलाई, 2015 को फांसी के बाद याकूब को मरीन लाइन्स रेलवे स्टेशन के सामने बने 'बड़ा कब्रिस्तान' में दफनाया गया था।

याकूब मेमन की कब्र की फोटो हुई वायरल :

इसी बीच, याकूब मेमन के कब्र की एक फोटो वायरल हो रही है, जिसमें दावा किया जा रहा है कि आतंकी की कब्र को संगमरमर और लाइट से सजाया गया है। विवाद बढ़ने के बाद मुंबई पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी है। इस मामले में डीसीपी रैंक का अधिकारी वक्फ बोर्ड, चैरिटी कमिश्नर और बीएमसी से सवाल-जवाब करेगा।

बीजेपी नेता राम कदम ने लगाए ये आरोप :

बीजेपी नेता राम कदम ने याकूब की कब्र की कुछ तस्वीरें शेयर करते हुए आरोप लगाया कि उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री रहते हुए याकूब मेमन की कब्र को मजार बना दिया गया। इसके लिए उद्धव ठाकरे, शरद पवार और राहुल गांधी को मुम्बई की जनता से माफी मांगनी चाहिए।

कौन है याकूब मेमन?

याकूब मेमन का पूरा नाम याकूब अब्दुल रज्जाक मेमन है। वह पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट था। जेल में रहने के दौरान उसने इंदिरा गांधी ओपन यूनिवर्सिटी से पॉलिटिकल साइंस से ग्रैजुएशन किया था। इसके अलावा 2013 में उसने इग्नू से अंग्रेजी में पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की थी। मुंबई बम धमाकों में याकूब मेमन की फैमिली के 4 लोग शामिल थे। इनमें मुख्य आरोपी याकूब मेमन का बड़ा भाई टाइगर मेमन था, जो फिलहाल दाऊद इब्राहिम के साथ पाकिस्तान में रहता है।

बर्थडे वाले दिन हुई थी फांसी :

- याकूब मेमन को उसके 53वें जन्मदिन के रोज ही फांसी पर लटकाया गया था। हालांकि, फांसी से पहले उसे बचाने की कई कोशिशें हुईं। - दरअसल, टाडा कोर्ट ने 27 जुलाई, 2007 को याकूब मेमन को दोषी ठहराते हुए फांसी की सजा सुनाई गई थी। बाद में 21 मार्च 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने भी इस सजा को बरकरार रखा।

- 30 जुलाई 2013 को मेमन की ओर से रिव्यू पिटीशन दाखिल की हुई। कोर्ट से यहां भी राहत नहीं मिली और उसने राष्ट्रपति के सामने मर्सी पिटीशन लगाई। 11 अप्रैल 2014 को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने मेमन की दया याचिका को खारिज कर दिया।

ऐसे हुई बचाने की कोशिशें :

- 30 अप्रैल 2015 को महाराष्ट्र सरकार ने डेथ वॉरंट जारी करते हुए उसकी फांसी की तारीख 30 जुलाई 2015 तय की। 21 जुलाई 2015 को सुप्रीम कोर्ट से क्यूरेटिव पिटीशन भी खारिज होने के बाद मेमन की ओर से महाराष्ट्र के राज्यपाल के सामने दया याचिका लगाई गई। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट में रिट दाखिल करते हुए दया याचिका पर फैसला होने तक फांसी पर रोक की मांग की गई।

- 26 जुलाई 2015 को कुछ नेताओं और सिविल सोसायटी के लोगों ने तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को एक अर्जी देते हुए मर्सी पिटीशन पर दोबारा विचार करने को कहा। इसमें सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज एच एस बेदी और मार्कण्डेय काटजू, हुसैन जैदी, सीनियर एडवोकेट और पूर्व कानून मंत्री राम जेठमलानी, असदुद्दीन ओवैसी, आर जगन्नाथन और सीनियर एडवोकेट प्रशांत भूषण भी शामिल थे।

- इसके बाद याकूब मेमन के वकीलों ने ये तर्क देते हुए फांसी को रोकने की मांग की कि राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका खारिज करने और फांसी के बीच 14 दिनों का अंतर होना चाहिए। इसके लिए आधीर रात को ढाई बजे सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने सुनवाई की। हालांकि, अदालत ने सभी दलीलों को खारिज करते हुए फांसी को बरकरार रखा और 30 जुलाई की सुबह याकूब मेमन को फांसी पर लटका दिया गया।

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