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कहां बजा अलार्म, बीजेपी-कांग्रेस के लिए कहां से अच्छी, कहां से बुरी खबर
भोपाल. मध्य प्रदेश में हाल ही में हुए नगरीय निकाय चुनाव के बाद अब राजनीतिक पंडित सियासी दलों के नफा-नुकसान का आंकलन करने में जुट गए हैं. नगरीय निकाय चुनाव के नतीजों के बाद कांग्रेस ग्वालियर चंबल और विंध्य को लेकर सबसे ज्यादा उत्साहित है. साल 2018 में सबसे ज्यादा सीटें बटोरने वाली कांग्रेस ग्वालियर चंबल में एक बार फिर खुद को मजबूत समझ रही है. इस चुनाव में ग्वालियर और मुरैना में कांग्रेस के महापौरों ने जबरदस्त जीत हासिल की है. साल 2018 में कांग्रेस को सबसे ज्यादा निराश विंध्य ने किया था. लेकिन, बीजेपी के गढ़ रीवा में कांग्रेस ने करीब ढाई दशक बाद महापौर की कुर्सी उससे छीन ली और खुद को मजबूत कर लिया.
गौरतलब है कि कांग्रेस के लिए महाकौशल से भी अच्छी खबर है. जबलपुर, छिंदवाड़ा में कांग्रेस से जीत दर्ज की है. ऐसे में कांग्रेस अब ग्वालियर, चंबल, विंध्य और महाकौशल में खुद की राजनीतिक जमीन को मजबूत करने में जुट गई है. वहीं, दूसरी तरफ बीजेपी के लिए ग्वालियर, चंबल, विंध्य और महाकौशल से बुरी खबर आई. लेकिन, मध्य भारत और मालवा-निमाड़ उसके लिए मजबूत किले बनकर एक बार फिर उभरे. इंदौर और भोपाल में मिली जबरदस्त जीत पर बीजेपी उत्साहित है. नगरी निकाय चुनाव के नतीजों में भले ही तीसरे दल ने एंट्री मार ली हो, लेकिन बीजेपी और कांग्रेस के लिए कमजोर वाले इलाकों पर फोकस बढ़ाना अब मजबूरी हो गई है.
इस बात पर मंथन शुरू
बता दें, दोनों ही दलों के अंदर इस बात को लेकर भी मंथन शुरू हो गया है कि 2023 में कौन कहां पर मजबूत और कमजोर साबित हो सकता है. इसी के आधार पर अब विधानसभा चुनाव की रणनीति तैयार होगी. कुल मिलाकर मध्य प्रदेश की सियासत में अब क्षेत्रीय राजनीति में खुद को मजबूत बनाने के लिए यह सियासी दल आने वाले दिनों में जोर लगाते हुए नजर आएंगे. एमपी कांग्रेस खुद को और मजबूत बनाने के लिए नया कदम उठाने जा रही है. पार्टी ब्लॉक से जिला स्तर तक गांधी चौपाल के जरिये लोगों तक अपनी रीति-नीति, कांग्रेस की विचारधारा और भाजपा सरकार की नाकामियों को पहुंचाएगी. कांग्रेसियों का कहना है कि महात्मा गांधी हमारे प्रेरणा स्रोत हैं. एक बार फिर प्रदेश में अपनी जड़ें मजबूत करने हम गांधी के दिखाए मार्ग पर चलेंगे.