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NTCA को इंडियन ऑयल देगा 50 करोड़ रुपये, कूनो में नामीबिया से आएंगे आठ चीते
न्यूज़क्रेडिट: अमरउजाला
मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले में कूनो-पालपुर नेशनल पार्क में नामीबिया से आठ चीते आएंगे। चीता प्रोजेक्ट के लिए इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) को 50.22 करोड़ रुपए देगा। सात दशक बाद भारत के जंगलों में फिर चीते दौड़ेंगे।
भारत में सात दशक बाद चीतों का फिर आगमन हो रहा है। नामीबिया से आठ चीते भारत आ रहे हैं। इन्हें मध्यप्रदेश के श्योपुर में स्थित कूनो-पालपुर नेशनल पार्क में रखा जाएगा। चीता प्रोजेक्ट के लिए इंडियन ऑयल ने राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) को 50.22 करोड़ रुपये देने का प्रावधान किया है।
केंद्रीय वनमंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि श्योपुर के कूनो-पालपुर नेशनल पार्क चीता प्रोजेक्ट के तहत चीतों के लिए इंडियन ऑयल चार साल में 50.22 करोड़ रुपये दे रहा है। इस राशि का इस्तेमाल चीतों के आवास, प्रबंधन और संरक्षण, पर्यावरण विकास, स्टाफ के प्रशिक्षण और पशु चिकित्सा स्वास्थ्य देखभाल पर खर्च होगी।
748 वर्ग किमी में फैला है कूनो-पालपुर पार्क
कूनो-पालपुर नेशनल पार्क 748 वर्ग किलोमीटर में फैला है। यह छह हजार 800 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले खुले वन क्षेत्र का हिस्सा है। यहां चीतों को बसाने की तैयारी पूरी कर ली गई है। 15 अगस्त तक चीतों को लाने की योजना है। चीतों को लाने के बाद उन्हें सॉफ्ट रिलीज में रखा जाएगा। दो से तीन महीने वे बाड़े में रहेंगे। ताकि वे यहां के वातावरण में ढल जाए। इससे उनकी बेहतर निगरानी भी हो सकेगी। चार से पांच वर्ग किमी के बाड़े को चारों तरफ से फेंसिंग से कवर किया गया है। जिन आठ चीतों को लाया जा रहा है, उनमें चार नर और चार मादा है। चीता का सिर छोटा, शरीर पतला और टांगे लंबी होती हैं। यह उसे दौड़ने में रफ्तार पकड़ने में मददगार होती है। चीता 120 किमी की रफ्तार से दौड़ सकता है।
1948 में आखिरी बार देखा गया था चीता
भारत में आखिरी बार चीता 1948 में देखा गया था। इसी वर्ष कोरिया राजा रामनुज सिंहदेव ने तीन चीतों का शिकार किया था। इसके बाद भारत में चीतों को नहीं देखा गया। इसके बाद 1952 में भारत में चीता प्रजाति की भारत में समाप्ति मानी।
1970 में एशियन चीते लाने की हुई कोशिश
भारत सरकार ने 1970 में एशियन चीतों को ईरान से लाने का प्रयास किया गया था। इसके लिए ईरान की सरकार से बातचीत भी की गई। लेकिन यह पहल सफल नहीं हो सकी। केंद्र सरकार की वर्तमान योजना के अनुसार पांच साल में 50 चीते लाए जाएंगे।
सहारिया जनजाति की बेहतरी पर करें काम
वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट अजय दुबे का कहना है कि चीता प्रोजेक्ट का असर सहारिया जनजाति के लोगों पर पड़ेगा। सॉफ्ट रिलीज के बाद चीतों को खुला छोड़ा जाएगा। सहारिया जनजाति के लोगों की गुजर-बसर जंगल से होने वाले उत्पादों से होती है। ऐसे में सरकार को उनके रोजगार के इंतजाम पर भी ज्यादा फोकस करना चाहिए।
चीते को तेंदूए से खतरे की गुंजाइश कम
कहा जा रहा है कि भारतीय तेंदुओं के बड़े आकार की वजह से वह चीतों के लिए खतरा बन सकते हैं। इस पर दुबे ने कहा कि चीते और तेंदुएं पहले भी साथ-साथ रहते थे। इस वजह से चिंता की कोई बात नहीं है। अफ्रीका में भी शेर, तेंदूआ, चीता और हाइना साथ रहते हैं। इससे चीते को तेंदुओं से खतरा होगा, कहना गलत होगा। तेंदुएं और शेर अपने शिकार को घात लगाकर मारते हैं, क्योंकि वह ज्यादा भाग नहीं सकते। वहीं, चीते अपना शिकार दौड़ लगाकर करते हैं। हालांकि, उसका शिकार छोटा होता है।