जनता से रिश्ता वेबडेस्क | केरल हाईकोर्ट ने सोमवार को अपने एक फैसले में एक महिला अधिकार कार्यकर्ता को पोक्सो के आरोपों से रिहा करते हुए कहा कि नग्नता और अश्लीलता हमेशा एक दूसरे पर्यायवाची नहीं होते। कोर्ट ने कहा कि अक्सर लोगों को उनके शरीर की स्वायत्ता के अधिकार से वंचित किया जाता है। कोर्ट ने कहा कि महिला ने अपने शरीर पर पेंटिंग कराई और इससे सिद्ध नहीं होता कि यह कोई यौन क्रिया नहीं थी।
महिला अधिकार कार्यकर्ता रेहाना फातिमा पर पोक्सो के तहत केस दर्ज किया गया था। महिला पर आरोप है कि उसने एक वीडियो को साझा किया था, जिसमें वह अपने अर्द्धनग्न शरीर पर अपने नाबालिग बच्चों से पेंटिंग बनवाती नजर आ रही है। इस मामले में महिला के खिलाफ पोक्सो एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया था।
केरल हाईकोर्ट की जस्टिस कौसर एदापगथ ने महिला को पोक्सो के तहत आरोपों से बरी करते हुए कहा कि यह संभव नहीं है कि बच्चे किसी यौन क्रिया के तहत यह काम कर रहे थे। कोर्ट ने कहा कि महिला ने बच्चों को सिर्फ कैनवास की तरह अपने शरीर को पेंट करने की अनुमति दी। यह एक महिला का अधिकार है कि वह अपने शरीर को लेकर स्वायत्त फैसले ले सकती है। यह उसके समानता और निजता के मौलिक अधिकार के तहत आता है। साथ ही संविधान का अनुच्छेद 21 भी उसे इसकी इजाजत देता है। हाईकोर्ट में अपनी अपील में महिला ने सवाल उठाया कि महिला के शरीर के ऊपरी हिस्से को कामुक बताया जाता है जबकि पुरुषों के साथ ऐसा नहीं होता। कोर्ट ने महिला की दलील को सही मानते हुए बच्चों द्वारा मां के शरीर पर पेंटिंग करने को यौन क्रिया नहीं माना।