तवलीन सिंह: जब एअर इंडिया के विमान से जोधपुर के लिए रवाना हुई तो देखा कि किसी ने मास्क नहीं पहना हुआ था। साथ में खुशी हुई यह देख कर कि उस विमान पर कई विदेशी पर्यटक थे, जो पिछले तीन सालों में नहीं दिखे हैं अपने देश में कोविड की वजह से। उनके न आने से कई छोटे होटल और दुकानें बंद हो गई थीं, जो विदेशी पर्यटकों के सहारे गुजारा करती थीं। जोधपुर पहुंचने के बाद मैंने मालूम किया अपने दोस्तों से कि इस साल क्या पर्यटन का कारोबार अच्छा चल रहा है या वही मंदी अब भी है, जो महामारी के कारण छाई रही है। सबने कहा कि तीन सालों बाद पहली बार मंदी के बादल हटने लगे हैं और जितने भी कारोबार पर्यटकों की वजह से चलते हैं, सब दुबारा जीवित हुए हैं बहुत सारी उम्मीदें लेकर।
शाम को एक दोस्त के जन्मदिन की दावत में गई शहर के बीच एक होटल में, तो उस होटल के मालिक से पता लगा कि पिछले तीन साल कितनी मुश्किल से गुजरे हैं। होटल के मालिक ने कहा, 'आपको अंदाजा ही नहीं होगा कि कितनी कठिनाई हुई है हमें। हमने तय किया था कि अपने किसी भी मुलाजिम को निकालेंगे नहीं, तो वैसा ही किया हमने, लेकिन खूब नुकसान उठा कर। इसलिए बहुत अच्छा लग रहा है अब कि विदेशी पर्यटक वापस आने लगे हैं।'
जोधपुर में मेरा आना-जाना कई सालों से है, सो अपनी आंखों से देखा है कि किस तरह यह प्राचीन शहर चमक उठा है पर्यटन की वजह से। जहां कभी टूटी-पुरानी बस्तियां और बाजार हुआ करते थे, अब आलीशान दुकानें बन गई हैं, जिनमें बिकती हैं राजस्थानी कारीगरी की चीजें। हर दूसरी गली में खुल गए हैं छोटे-मोटे होटल और रेस्तरां, जो भरे रहते हैं पर्यटकों से। सो, जब स्वास्थ्य मंत्री की घोषणा सुनी यहां के लोगों ने, अचानक मायूसी छाने लगी, इस डर से कि वापस आने वाला है वही महामारी का दौर।
तो क्या वास्तव में कोविड फिर से फैलने लगा है देश में? स्वास्थ्य मंत्री की घोषणा इसलिए अजीब लगी मुझे, क्योंकि अगर वास्तव में संकट फिर से आ गया है, तो क्यों पिछली बार की तरह यह घोषणा प्रधानमंत्री ने खुद नहीं की? क्या देश को संबोधित करके नहीं बताते कि सावधान हो जाना चाहिए हम सबको? ऐसा न करके जब इतनी बड़ी घोषणा राहुल गांधी को लिखे पत्र में की गई है, तो क्या ऐसा नहीं लगता कि इस घोषणा का मकसद है 'भारत जोड़ो यात्रा' को दिल्ली पहुंचने से पहले रोक देना?
ऐसा न होता तो क्या हाल में हुए हिमाचल और गुजरात के चुनावों में प्रचार को रोका न जाता? प्रचार में प्रधानमंत्री के अलावा देश के आला राजनेता लगे रहे और विशाल आमसभाओं को संबोधित किया, जैसे कि कोविड का कोई डर अब न रहा हो। अचानक चुनाव समाप्त होने के बाद ही क्यों मालूम पड़ा कि महामारी वापस आ गई है? अचानक क्यों दिखने लगे हैं वही सरकारी अधिकारी, जिनके चेहरे हम रोज टीवी पर देखा करते थे उस वक्त जब महामारी के कारण इतने लोग मरे थे कि कतारें लग गई थीं अस्पतालों के सामने और शमशानों में दिन-रात चिताएं जलती थीं।
जब सरकारी प्रवक्ताओं से सवाल किए पत्रकारों ने और सोशल मीडिया पर घबराहट फैलने लगी, तो मालूम हुआ कि भारत में तीन-चार मरीज मिले हैं पिछले कुछ महीनों में, जिनको कोविड का वही रोग लगा है, जो फिलहाल चीन में आग की तरह फैल रहा है। लेकिन चीन की बात कुछ और है, इसलिए कि उस देश में जो जीरो कोविड नीति अपनाई गई थी, वह पूरी तरह विफल साबित हुई। उससे न सिर्फ आर्थिक समस्याएं पैदा हुई हैं, आम लोग सड़कों पर उतर आए हैं इस जीरो कोविड का विरोध करने। विरोध प्रदर्शन इतने हुए कि चीन सरकार को अपनी नीति बदलनी पड़ी। जब लोग घरों से बाहर निकलने लगे, तो मालूम पड़ा कि उनमें से कई ऐसे हैं जिनको या तो टीके लगे नहीं हैं या वही चीनी टीके लगे हैं, जो बेकार साबित हुए हैं।
भारत में प्रधानमंत्री खुद कह चुके हैं बहुत बार कि दुनिया का सबसे सफल टीकाकरण अभियान उनके नेतृत्व में हुआ है और इसकी वजह से कोविड को हम हरा पाए हैं। सो, अब क्या हुआ अचानक पिछले हफ्ते कि स्वास्थ्य मंत्री को ऐसी घोषणा करने की जरूरत महसूस हुई, जिसके कारण देश भर में आतंक फैल सकता है? कहना मुश्किल है इसलिए कि अभी तक भारत सरकार की तरफ से स्पष्टीकरण नहीं आया है, लेकिन इतना जरूर कह सकते हैं हम कि अब जब महामारी के अंधेरे से हम निकलने लगे हैं, स्वास्थ्य मंत्री को शायद इस तरह की घोषणा नहीं करनी चाहिए थी। और वह भी राहुल गांधी को पत्र लिख कर। बहुत कठिन दौर से निकल कर आ रहा है देश, सो इस तरह की घोषणा करने से पहले स्वास्थ्य मंत्री को थोड़ा सोचना चाहिए था।