कमजोरियों : लंबे अर्से से चुनावी प्रबंधन की कमजोरियों को लेकर अक्सर निशाने पर रही कांग्रेस ने कर्नाटक की चुनावी पिच पर सत्ता की पारी खेलने की अपनी पुख्ता तैयारियों से न केवल अपने विरोधियों बल्कि सियासी विश्लेषकों को भी हैरानी में डाल दिया है। करीब 1350 गंभीर दावेदारों की बड़ी संख्या के बावजूद शांतिपूर्ण टिकट बंटवारे, सूबे में सामाजिक समीकरणों की गांठ मजबूत करने, बोम्मई सरकार के खिलाफ 40 प्रतिशत कमीशन का राजनैतिक नैरेटिव बनाने से लेकर चार लुभावने चुनावी वादों की चाशनी के बीच त्रिस्तरीय चुनावी निगरानी प्रणाली के जरिए नामांकन की आखिरी तारीख से पहले ही कांग्रेस ने अपने चुनाव अभियान को टॉप गियर में चलाने की तैयारी दुरूस्त कर ली है।
सूबे में सत्ता विरोधी लहर की उम्मीद लगा रही कांग्रेस के सामने हालांकि उत्तराखंड चुनाव के झटके का सबक भी सियासी पाठ बना हुआ है और तभी तमाम दावों के बीच प्रबंधन में चूक की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी जा रही।कांग्रेस ने 2022 में उदयपुर में हुए नवसंकल्प चिंतन शिविर के दौरान गहराती राजनीतिक चुनौतियों के लिए चुनाव प्रबंधन को एक प्रमुख कमजोर कड़ी माना था और इसे दुरूस्त करने के लिए कई कदम उठाने की घोषणा की थी। संस्थागत रूप से पार्टी का चुनावी प्रबंधन तंत्र अभी मुखर रूप से सामने नहीं आया है मगर कर्नाटक का यह चुनाव कांग्रेस के लिए इसका पायलट प्रोजक्ट जरूर माना जा सकता है।
अनुमानों के विपरीत सूबे में कांग्रेस में दो बडे़ दिग्गजों सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के साथ करीब आधा दर्जन अन्य प्रमुख चेहरों के बीच नेतृत्व की गहरी अंदरूनी प्रतिस्पर्धा के बावजूदअसंतोष-नाराजगी की आवाज कहीं सुनाई नहीं दे रही। टिकट बंटवारे के बाद भाजपा में नाराजगी-विद्रोह की गूंज अभी तक थमी नहीं है वहीं हाल के वर्षों में आपसी सिर फुटव्वल से जूझती रही कांग्रेस का कर्नाटक में इस सिरदर्दी से मुक्त रहना किसी आश्चर्य से कम नहीं है। इसे थामने में मिली सफलता के लिए कांग्रेस अपने उम्मीदवार चयन की प्रक्रिया के तरीके को कारगर मान रही है।