हिमाचल प्रदेश

पंडित सुखराम और वीरभद्र सिंह को बताया राजनीतिक गुरू, पिता को याद कर भावुक हुए अनिल शर्मा

Admin4
10 Aug 2022 4:13 PM GMT
पंडित सुखराम और वीरभद्र सिंह को बताया राजनीतिक गुरू, पिता को याद कर भावुक हुए अनिल शर्मा
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शिमला: मौजूदा विधानसभा के आखिरी सत्र (Himachal vidhansabha monsoon session) में पहले दिन माहौल भावुक था. सदन ने चार दिवंगत नेताओं को आदरांजलि देते हुए उनसे जुड़ी यादें सांझा की. इस दौरान भाजपा विधायक अनिल शर्मा अपने पिता पंडित सुखराम को याद कर भावुक हो (Anil Sharma gets emotional) गए. अपेक्षाकृत सदन में खामोश रहने वाले अनिल शर्मा आज खूब बोले. उन्होंने पंडित सुखराम के जीवन के कई पहलुओं को खोलकर बयान किया. यही नहीं, उन्होंने वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य पर दार्शनिक टिप्पणियां भी कीं.पंडित सुखराम और वीरभद्र मेरे राजनीतिक गुरू: अनिल शर्मा ने अपने पिता पंडित सुखराम और वीरभद्र सिंह (Anil sharma on Virbhadra Singh) को अपना राजनीतिक गुरू बताया. अनिल शर्मा ने बताया कि उन्हें राजनीति का कोई शौक नहीं था. पिता पंडित सुखराम मुझसे चुनाव लड़वाना चाहते थे. खैर, पंडित सुखराम को केंद्र की राजनीति में जाने का मौका मिला. लोकसभा चुनाव जीते तो यही सोचा कि दिल्ली में कौन पहचानेगा. लेकिन इसी बीच, राष्ट्रपति भवन से टेलीफोन आया कि पंडित सुखराम को कल शपथ लेनी है.अनिल शर्मा ने याद किया कि वे दिल्ली में हिमाचल भवन में रह रहे थे. अनिल शर्मा ने बताया कि उनके पास मारूति कार थी. राष्ट्रपति भवन का रास्ता पता नहीं था. किसी तरह राष्ट्रपति भवन पहुंचे. उस समय पंडित सुखराम को डिफेंस मिनिस्टर का कार्यभार मिला. अनिल शर्मा ने कहा कि पंडित सुखराम (Anil sharma on Pandit Sukhram) ने 1962 में उस समय कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ा, जब कांग्रेस अत्यंत मजबूत थी. उस समय सुखराम का चुनाव चिन्ह शेर था. वे जीवन पर्यंत शेर की तरह लड़े. राजनीति में दुश्मनी की तो लड़ कर की और दोस्ती भी खूब निभाई.अनिल शर्मा ने बताया कि पंडित सुखराम अपने प्रदेश के लिए बहुत कुछ करना चाहते थे. वे कहते थे कि सत्ता मिले तो जनता के काम करो, काम करोगे तो पहचान खुद-ब-खुद बन जाएगी. अनिल शर्मा ने बताया कि कैसे उन्हें 1993 में प्रदेश से केंद्र जाना पड़ा. फिर उन्होंने 1998 में हिमाचल विकास कांग्रेस के गठन की पृष्ठभूमि की चर्चा की और बताया कि कैसे प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में गठबंधन सरकार बनाने में भूमिका निभाई. अनिल शर्मा ने बताया कि पंडित सुखराम ने संचार क्रांति का बिगुल बजाया.जब बेटे के एडमिशन लिए भटके अनिल शर्मा: उन्होंने एक किस्सा भी याद किया. अनिल शर्मा ने कहा कि वे अपने बेटे की एडमिशन के लिए मुंबई में भटक रहे थे. उनके पास वीरभद्र सिंह का सिफारिशी पत्र था. किन्हीं कारणों से एडमिशन नहीं हो रही थी. जब वह जयहिंद कॉलेज में गए तो प्रबंधन को उन्होंने सिफारिशी पत्र दिया. प्रबंधक ने पूछा कि आप कहां से हो और क्या करते हो. अनिल शर्मा ने कहा कि मैं विधायक हूं और हिमाचल मंडी से हूं. तब प्रबंधक ने कहा कि क्या आप पंडित सुखराम को जानते हैं? अनिल शर्मा ने बताया कि मैं उनका बेटा हूं. बस, फिर क्या था एडमिशन हो गया.वजह ये थी कि संचार मंत्री रहते हुए प्रबंधक का कोई काम पंडित सुखराम ने किया था. हालांकि जब जयहिंद कॉलेज के प्रबंधक ने दिल्ली में पंडित सुखराम से काम बताया तो उन्होंने कहा कि हो जाएगा. प्रबंधक को विश्वास नहीं हुआ, क्योंकि नेता ऐसे ही आश्वासन देते हैं, लेकिन जब काम हुआ तो वो हैरान रह गए. अनिल शर्मा ने बताया कि साख ऐसे कमाई जाती है. काम कोई करता है और लाभ किसी और को मिलता है.

मुंह में मच्छी मत डालो, मच्छी पकड़ना सिखाओ: अनिल शर्मा ने पंडित सुखराम के विजन का जिक्र किया और कहा कि सत्ता मिलने पर जनता के काम करने चाहिए. अनिल शर्मा ने कहा कि मौजूदा दौर में राजनेता मुफ्त वस्तुएं देने के वादे कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि लोगों के मुंह में मछली डालने के बजाय उन्हें मछली पकड़ कर आत्मनिर्भर बनाना चाहिए. अनिल शर्मा ने कहा कि 2017 में सत्ता में आने के बाद उन्होंने मेरे लिए उर्जा विभाग मांग लिया. उस समय पिताजी ने कहा कि उर्जा विभाग में क्षमता है. अनिल शर्मा ने कहा कि हिमाचल को रेवेन्यू की जरूरत है और सभी को ये विचार करना चाहिए कि राजस्व कैसे आए, न कि मुफ्त की बिजली जैसे वादे करने चाहिए.सीएम की दरियादिली पर जताया आभार: अनिल शर्मा ने बताया कि जब पिताजी बीमार हुए तो उन्होंने अपनी पुत्रवधु से बात की. पुत्रवधु ने मुंबई से कहा कि वो चॉपर का इंतजाम कर रही हैं, लेकिन मेरे बेटे ने कहा कि क्यों न सीएम साहब से बात की जाए. अनिल शर्मा ने कहा कि सीएम जयराम ठाकुर (Anil sharma on CM Jairam) ने तुरंत हैलीकॉप्टर उपलब्ध करवाया और पंडित सुखराम को इलाज के लिए दिल्ली ले गए. अमूमन अनिल शर्मा सदन में अल्पभाषी माने जाते हैं, लेकिन अपने पिता की स्मृतियों पर उन्होंने शोक उद्गार के समय काफी देर तक बात की और कई यादें सांझा की. इससे पंडित सुखराम के जीवन के कई अनछुए पहलू सामने आए.

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