हिमाचल प्रदेश

मां भयभुंजनी गढ़ माता मंदिर में हजारों श्रद्धालुओं ने नवाया शीश

Shantanu Roy
12 July 2023 9:35 AM GMT
मां भयभुंजनी गढ़ माता मंदिर में हजारों श्रद्धालुओं ने नवाया शीश
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सुलह। कांगड़ा जिले के उपमंडल पालमपुर के तहत मां भयभुंजनी गढ़ माता मंदिर में अंतिम मंगलवार को मेले में हजारों श्रद्धालुओं ने शीश नवाया। मंदिर पुजारी रमेश शर्मा ने बताया कि अंतिम मंगलवार मेले में 2 हजार से ज्यादा लोग मंदिर में नतमस्तक हुए। पिछले तीन दिनों से भारी बारिश के बाद मंगलवार सुबह खिली धूप से श्रद्धालुओं में काफी उत्साह देखने को मिला जिसके चलते श्रद्धालुओं की संख्या में इजाफा हुआ। मंदिर में आषाढ़ माह में मंगलवार मेलों का आयोजन किया जाता है। इस साल यह मेले 20 जून से आरंभ होकर 11 जुलाई तक चले। मंदिर में हर रविवार और मंगलवार को जातर का आयोजन किया जाता है।
परौर से भयभुंजनी मंदिर तक बस सेवा नहीं है। मात्र टैक्सी सुविधा ही उपलब्ध है। मंगलवार को मंदिर परिसर में अधिकतर टैक्सियों के जाम में फंसे होने के कारण परौर में श्रद्धालुओं को टैक्सियां न मिलने से परेशान होना पड़ा। वहीं मंदिर में पार्किंग न होने से गाड़ियों को मोड़ने में दिक्कत आती है जिस कारण लंबा जाम लग जाता है। मंगलवार को भी भारी संख्या में गाड़ियां मंदिर परिसर में पहुंची थीं जिस कारण जाम की स्थिति देखने को मिली। हैरानी की बात यह थी कि जाम की स्थिति को काबू करने वाला परौर से मंदिर परिसर तक कोई नहीं दिखा। स्थिति गंभीर होने के बाद भवारना पुलिस जाम खुलवाने पहुंची।
मां भयभुंजनी गढ़ माता मंदिर को गांव परौर में राष्ट्रीय राजमार्ग से जोड़ने वाली लगभग 6 किलोमीटर सड़क अभी भी खस्ताहाल है। सड़क पर जगह-जगह गड्ढे पड़े हुए हैं जो छोटे-बड़े वाहनों के लिए खतरा बने हुए हैं। इन गड्ढों के कारण पहले भी हादसे हो चुके हैं। भारी बारिश से कुछ जगह ल्हासे भी गिरे हैं। भयभुंजनी गढ़ माता का मन्दिर गढ़ धार की ऊंची पहाड़ी पर राजा संसार चंद कटोच वंश के ऐतिहासिक किले से लगभग 100 मीटर की दूरी पर पूर्व दिशा में बना हुआ है। यह मन्दिर लगभग 5000 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। मन्दिर का मुख्य द्वार पश्चिम की तरफ है। देवी की प्रतिमाएं तीन पिंडी रूप में हैं। पूर्वजों के अनुसार प्राचीन मन्दिर का निर्माण कांगड़ा के राजा संसार चंद कटोच वंश के राजपूत परिवार ने ऐतिहासिक किले के साथ किया था। ऐतिहासिक किले व मन्दिर का निर्माण कार्य कब हुआ, इसका उल्लेख कहीं दर्ज नहीं है। हालांकि मन्दिर और ऐतिहासिक किला लगभग 500 साल से भी अधिक पुराने हैं।
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