हिमाचल प्रदेश

आंखों देखी तबाही को बयां करते हुए रो पड़े सैंज के लोग

Shantanu Roy
16 July 2023 9:19 AM GMT
आंखों देखी तबाही को बयां करते हुए रो पड़े सैंज के लोग
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सैंज। आंखों के सामने खून-पसीने की कमाई से खड़े किए आशियाने, व्यापारिक प्रतिष्ठान व अन्य संपत्ति नदी में समाती रही और बेबस लोग बस देखते ही रह गए। तबाही लेकर आई उफनती नदी के सामने आखिर चलती भी किसकी। सब कुछ इतनी तेजी से हुआ कि कुछ सामान, सामग्री बचाने तक का मौका न मिल सका। सैंज में तबाही के मंजर, आंखों देखी विनाशलीला को बयां करते हुए लोगों के आंसू निकल आए। अपना सब कुछ गंवाने वाले लोग बस अब किसी तरह जिंदगी गुजारने को विवश हो गए हैं। सैंज में प्रभावित ज्ञान चंद ने बताया कि अब कुछ अचानक हुआ और संभलने तक का मौका नहीं मिल सका। सीटियां बजाकर लोगों ने सभी को आगाह किया। अब किसी मकान में कोई किराएदार या कोई अन्य व्यक्ति रह तो नहीं गया है, इसका कोई पता नहीं। शर्मा का अपना भवन भी बाढ़ में बह गया। इलाके में 40 के करीब दुकानें और 32 से अधिक मकान खत्म हो गए। पुनर्वास के सवाल पर ये लोग कह रहे हैं कि नदी ने जिस प्रकार से भू-कटाव किया है, उससे यह कार्य असंभव सा लग रहा है। लोगों ने कहा कि एक झटके में सब कुछ खत्म हो गया। जो घर बच गए, उनमें मलबा, रेत व पत्थर भर गए हैं। लोग अब मलबे को निकालने में लगे हैं। लोगों का कहना है कि इस कार्य के लिए और लोगों को राहत पहुंचाने के लिए पैरामिलिटरी फोर्स की यहां तैनाती होनी चाहिए।
बिजली-पानी के बिना जिंदगी दूभर सी हो गई है। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह ने पिछले दिनों इलाके का हैलीकॉप्टर से निरीक्षण किया और राहत सामग्री हैलीकॉप्टर से इलाके में भिजवाई। अब पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने शनिवार को सैंज पहुंचकर लोगों का दुख-दर्द बांटा। बीते रोज लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह और सांसद प्रतिभा सिंह सैंज गए थे। व्यथा सुनाते हुए लोगों के इस दौरान आंसू छलक पड़े। उधर, पार्वती घाटी के तोष इलाके से लौटे होटल कारोबारी अनिल कांत शर्मा रैस्क्यू करके हाथीथान पहुंचे। सैलानियों राजन सेठी, कुलदीप कुमार, गौरव त्रिपाठी और रमन पाठक ने बताया कि घाटी में मणिकर्ण, कसोल, तोष, बरशैणी व पुलगा सहित कई इलाकों में राशन की दुकानों में राशन तक खत्म हो गया है। लोगों के घरों में भी राशन का स्टॉक खत्म है। ऐसे में भूखे मरने की नौबत आ रही है। रसोई गैस सिलैंडर तक नहीं मिल पा रहे हैं। घाटी में फंसे हुए कई पर्यटकों को इस वजह से खाना भी महंगा मिला। कई लोगों ने जो था वह खिलाया और पैसे भी नहीं लिए। उसके बाद राशन व अन्य खाद्य सामग्री खत्म होने की बात कही और अपनी मजबूरी बताई। उधर, राशन वितरण वाला महकमा हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा। इन लोगों ने कहा कि महकमे और प्रशासन को चाहिए था कि घोड़ों-खच्चरों पर अंतिम क्षेत्र तक आटा, चावल, नमक व चीनी आदि पहुंचाए। नमक डालकर लोग ब्लैक टी के साथ भी रोटी खा सकते थे और वहां फंसे पर्यटक भी किसी तरह भागने को विवश न होते।
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