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हिमाचल प्रदेश
हाई कोर्ट ने देरी के आधार पर सुनाया फैसला, पदोन्नति के खिलाफ दर्ज याचिका खारिज
Gulabi Jagat
8 Dec 2022 3:03 PM GMT
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शिमला
प्रदेश हाई कोर्ट ने लोक निर्माण विभाग में कार्यरत सुरिंद्र पॉल की पदोन्नति के खिलाफ दायर याचिका को देरी के आधार पर खारिज कर दिया। न्यायाधीश त्रिलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने प्रार्थी सुरेश कपूर और अन्यों द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए कहा कि समय बीत जाने के बाद देरी से दायर पदोन्नति और वरिष्ठता से जुड़े मामलों को कोर्ट द्वारा सुनवाई के लिए स्वीकार करने का मतलब स्थिर स्थिति को अस्थिर करने जैसा होगा। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि पदोन्नति और वरिष्ठता से जुड़े मामलों को अदालत के समक्ष ज्यादा से ज्यादा एक वर्ष के भीतर चुनौती दी जाए अदालत का दखल वाजिब हो सकता है। यदि समय रहते विवादित वरिष्ठता सूची अथवा पदोन्नति आदेशों को चुनौती न दी जाए तो इसका अर्थ यह भी लगाया जा सकता है कि प्रार्थी ने जूनियर की वरिष्ठता और उसकी पदोन्नति को स्वीकार कर लिया है। मामले को स्थिर होने देने का इंतजार करने वाले प्रार्थियों को हतोत्साहित करना जरूरी है। मामले के अनुसार निजी प्रतिवादी सुरिंदर पॉल को भूतपूर्व सैनिक कोटे से 13 मार्च 2000 को असिस्टेंट इंजिनियर नियुक्ति प्रदान की गई थी जबकि प्रार्थियों को 1996 और 1997 में नियुक्ति दी गई थी। 23 अप्रैल, 2007 को प्रतिवादी को तदर्थ आधार पर पदोन्नत कर एक्जीक्यूटिव इंजीनियर पदोन्नत किया गया। 4 नवंबर, 2008 को असिस्टेंट इंजिनियर की वरिष्ठता सूची जारी की गई जिसमें प्रतिवादी सुरिंद्र पॉल को प्रार्थियों से वरिष्ठ दर्शाया गया।
वरिष्टता का कारण भी वरिष्ठता सूची में बताया गया कि सेना में चार साल 11 महीने सेवा करने का लाभ देते हुए उन्हें वरिष्ठ बनाया गया है। कोर्ट ने मामले के रिकार्ड का अवलोकन करने पर पाया कि प्रार्थियों ने न तो 4-11-2008 को जारी वरिष्ठता सूची को समय पर चुनौती दी, जिससे उनके अधिकार प्रभावित हो रहे थे और न ही उन्होंने निजी प्रतिवादी की एग्जीक्यूटिव इंजीनियर के तौर पर पदोन्नति को समय रहते चुनौती दी। कोर्ट ने कहा कि प्रार्थियों ने केवल दो जनवरी, 2011 को कोर्ट के समक्ष याचिका दायर कर अपने अधिकारों के हनन की बात रखी।
Gulabi Jagat
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