हिमाचल प्रदेश

हिमाचल हाई कोर्ट ने सुनाया फैसला, पूर्व सीएम के सुरक्षा अधिकारियों को प्रोमोशन में रियायत अवैध

Gulabi Jagat
20 July 2023 5:40 PM GMT
हिमाचल हाई कोर्ट ने सुनाया फैसला, पूर्व सीएम के सुरक्षा अधिकारियों को प्रोमोशन में रियायत अवैध
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शिमला: हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्री के सुरक्षा अधिकारियों को कांस्टेबल से हैड कांस्टेबल पदोन्नत करने संबंधी रियायती आदेशों को अवैध ठहराया है। आठ दिसंबर, 2020 को सरकार ने मुख्यमंत्री की सुरक्षा में तैनात पीएसओ को हैड कांस्टेबल बनाने के लिए स्थायी आदेश जारी किए थे। इन आदेशों के अनुसार मुख्यमंत्री के पीएसओ को पदोन्नत करने का प्रावधान करते हुए शर्त रखी थी कि जिस कांस्टेबल ने तीन साल से अधिक का समय मुख्यमंत्री की सुरक्षा में लगाया हो, उसे विशेष रियायत के 10 फीसदी कोटे के तहत हैड कांस्टेबल बनाया जाएगा। एक शर्त यह भी थी कि एक साल में केवल एक कांस्टेबल को पदोन्नत किया जाएगा। यह रियायत केवल मुख्यमंत्री के पीएसओ तक ही सीमित की गई थी। उक्त स्थायी आदेश को जारी करने की वजह बताते हुए सरकार का कहना था कि मुख्यमंत्री की सुरक्षा में तैनात कांस्टेबलों की जिम्मेदारियां बहुत ज्यादा होती हैं। उन्हें 24 घंटे सेवा में तैनात रहना पड़ता है।
मुख्यमंत्री के प्रदेश और देश दौरे के दौरान साथ रहना पड़ता है। अन्य गणमान्य व्यक्तियों की तुलना में मुख्यमंत्री को ज्यादा खतरे का भय रहता है, जिससे निपटने के लिए मुख्यमंत्री के पीएसओ को अतिरिक्त श्रम करना पड़ता है। हाई कोर्ट के न्यायाधीशों की सुरक्षा में तैनात पीएसओ ने उपरोक्त स्थायी आदेशों का लाभ केवल मुख्यमंत्री के पीएसओ तक सीमित करने को गैरकानूनी ठहराते हुए उन्हें भी विशेष रियायत में शामिल करते हुए पदोन्नति का लाभ देने के लिए याचिका दायर की थी। न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने याचिका को खारिज करने के साथ-साथ सरकार के स्थायी आदेशों को भी अवैध ठहराते हुए खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि मुख्यमंत्री के पीएसओ और अन्य गणमान्य व्यक्तियों की सुरक्षा में तैनात पीएसओ की सेवाओं में कोई फर्क नहीं है। जैसे मुख्यमंत्री संवैधानिक पद पर आसीन हैं, उसी तरह राज्यपाल, विधानसभा अध्यक्ष, हाई कोर्ट के न्यायाधीश और मंत्रिमंडल के सदस्य भी संवैधानिक पद पर आसीन हैं। सभी के साथ सुरक्षा का खतरा जुड़ा हुआ है। सरकार का यह निर्णय सबसे असंगत, तो इसलिए भी है कि वह एक वर्ग विशेष को उनकी बारी से बाहर पदोन्नति का लाभ देता है, जो समानता के अधिकार का उल्लंघन है।
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