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शिमला। प्रदेश हाईकोर्ट में वाटर सैस अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं का राज्य सरकार ने अपना शपथ पत्र दाखिल कर दिया है। शपथ पत्र के माध्यम से कोर्ट को बताया गया कि पानी के उचित प्रबंधन के लिए केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को नियम बनाने की शक्तियां प्रदान की हैं। प्रदेश के पानी के स्रोतों का सही प्रबंधन के लिए सरकार ने वैधानिक शक्तियों का प्रयोग करते हुए वाटर सैस अधिनियम बनाया है। मुख्य न्यायाधीश एमएस रामचंद्र राव और न्यायाधीश अजय मोहन गोयल की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई 16 अगस्त को निर्धारित की है। उल्लेखनीय है कि हाईकोर्ट के समक्ष भारत सरकार के उपक्रमों और निजी विद्युत कंपनियों ने वाटर सैस अधिनियम को चुनौती दी है।
एनटीपीसी, बीबीएमबी, एनएचपीसी और एसजेवीएनएल ने दलील दी है कि केंद्र और राज्य सरकार के साथ अनुबंध के आधार पर कंपनियां राज्य को 12 से 15 फीसदी बिजली मुफ्त देती हैं। इस स्थिति में हिमाचल प्रदेश वाटर सैस अधिनियम के तहत कंपनियों से सैस वसूलने का प्रावधान संविधान के अनुरूप नहीं है। 25 अप्रैल, 2023 को भारत सरकार ने पाया था कि कुछ राज्य भारत सरकार के उपक्रमों पर सैस वसूल रहे हैं। भारत सरकार ने राज्य के सभी मुख्य सचिवों को हिदायत दी थी कि भारत सरकार के उपक्रमों से वाटर सैस न लिया जाए। इसके बावजूद भी राज्य सरकार केंद्र सरकार के निर्देशों की अनुपालना नहीं कर रही है। इससे पहले प्रदेश में निजी जलविद्युत कंपनियों ने भी हिमाचल प्रदेश वाटर सैस अधिनियम को चुनौती दी है। निजी जलविद्युत कंपनियों ने आरोप लगाया है कि पनबिजली परियोजना पर वाटर सैस लगाया जाना संविधान के प्रावधानों के विपरीत है।
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Shantanu Roy
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