हिमाचल प्रदेश

औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों में जल्द शुरू होंगे ड्रोन पाठ्यक्रम

Shantanu Roy
31 July 2023 9:19 AM GMT
औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों में जल्द शुरू होंगे ड्रोन पाठ्यक्रम
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शिमला। राज्य सरकार ने हिमाचल में ड्रोन तकनीक को बढ़ावा देने का निर्णय लिया है। इसी कड़ी में सरकार ड्रोन पायलट को करियर के रूप में अपनाने के इच्छुक युवाओं को प्रदेश में ही प्रशिक्षित करेगी। इसके तहत राज्य के विभिन्न औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (आईटीआई) में जल्द ड्रोन पाठ्यक्रम शुरू किए जाएंगे। सरकार का मानना है कि यह तकनीक विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार की व्यापक संभावनाएं भी प्रदान करती है। राज्य की कठिन भौगोलिक स्थिति के कारण ड्रोन का उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में किया जा सकता है। ड्रोन तकनीक दूरदराज के क्षेत्रों में समय पर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करवाने, आपात स्थिति के दौरान त्वरित प्रतिक्रिया, आवश्यक वस्तुओं और सामग्रियों का आसानी से परिवहन सुनिश्चित कर सकती है। कृषि क्षेत्र में ड्रोन का उपयोग दक्षता बढ़ाने, कीटनाशकों और उर्वरकों की बर्बादी में कमी लाने, पानी की बचत इत्यादि विशिष्टताओं के साथ किसानों के लिए एक वरदान साबित हो सकता है। ड्रोन के माध्यम से पारंपरिक छिड़काव विधियों की तुलना में कम मात्रा में छिड़काव और उर्वरक अनुप्रयोग की लागत में कमी सुनिश्चित होगी।
इससे खतरनाक रसायनों के प्रति मानव जोखिम भी कम हो जाएगा। ऐसे में सरकार ने मुख्य रूप से कृषि और बागवानी क्षेत्रों में मानव रहित हवाई वाहनों (यूएवी) अथवा ड्रोन का अधिकतम उपयोग करने का निर्णय लिया है। इसी कड़ी में चौधरी सरवण कुमार कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं को प्रौद्योगिकी का उपयोग करने और अपने शोध को प्रयोगशालाओं से खेतों तक ले जाने के लिए आवश्यक कदम उठाने के लिए कहा गया है ताकि किसानों को सबसे अधिक लाभ हो सके। ड्रोन का उपयोग फोटोग्राफी, सूचना एकत्र करने या आपदा प्रबंधन के लिए आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति, दुर्गम क्षेत्रों के भौगोलिक मानचित्रण, कानून प्रवर्तन, बचाव कार्यों में सहायता, वन्यजीव और ऐतिहासिक संरक्षण, भूमि उपयोग की वस्तुस्थिति जानने, कृषि एवं बागवानी के अलावा सेवा वितरण के लिए किया जा सकता है। ड्रोन तकनीक कृषि, बुनियादी ढांचे, निगरानी, खनन, भू-स्थानिक मानचित्रण, आपातकालीन प्रतिक्रिया, परिवहन, रक्षा और कानून प्रवर्तन सहित विभिन्न महत्वपूर्ण क्षेत्रों में तेजी से लोकप्रिय हो रही है। इस तकनीक से दूरदराज के क्षेत्रों में उगाई जाने वाली पारंपरिक हिमाचली फसलों और खाद्यान्नों की मैपिंग भी की जा सकती है।
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