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शिमला। हिमाचल प्रदेश में 20 साल बाद पुरानी पैंशन को बहाल करने का दांव राज्य सरकार पर महंगा पड़ता जा रहा है। इसके तहत गंभीर वित्तीय संकट के दौर से गुजर रहे राज्य को केंद्र सरकार से मिलने वाले अतिरिक्त कर्ज पर कैंची चल सकती है क्योंकि नियमों को बदलने के बाद इसका प्रावधान किया गया है। इससे हिमाचल प्रदेश सहित उन सभी राज्यों को अतिरिक्त कर्ज नहीं मिल पाएगा, जिन्होंने एनपीएस के स्थान पर ओपीएस को लागू करने का निर्णय लिया है। इतना ही नहीं केंद्र सरकार कानूनी दलील देते हुए 1.36 लाख एनपीएस कर्मचारियों के हिस्से के 8000 करोड़ रुपए देने से भी इंकार कर रही है। इस सिलसिले में प्रदेश सरकार ने केंद्र सरकार को जो पत्र लिखा था, उसका संतोषजनक उत्तर नहीं मिल पाया है। नई व्यवस्था के तहत अब एनपीएस कर्मचारी अपनी राशि को नहीं निकाल पाएंगे क्योंकि कंपनी ने इस विकल्प को हटा दिया है। पहले कर्मचारी 25 फीसदी तक यह राशि निकाल सकते थे।
जिसकी एवज में बाद में उनकी पैंशन में कटौती की जाती थी। वित्तीय संकट के कारण सरकार ने कर्मचारियों व पैंशनरों को नए वेतनमान के एरियर की राशि भी फिलहाल रोक दी है। अब इस राशि के लिए 1 से 2 साल तक इंतजार करना पड़ सकता है। इसी तरह केंद्र सरकार की तर्ज पर प्रदेश के कर्मचारियों और पैंशनरों को डीए की 2 किस्तें (3 फीसदी व 4 फीसदी) भी अदा नहीं हो पाई हैं। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के अनुसार पूर्व सरकार हिमाचल प्रदेश पर 86000 करोड़ रुपए का कर्ज छोड़कर गई है। इसमें पूर्व सरकार के समय तक राज्य पर चढ़ा 75000 करोड़ रुपए का कर्ज तथा कर्मचारी-पैंशनरों के एरियर व डीए के 11000 करोड़ रुपए बकाया प्रमुख हैं। सरकार का कहना है कि खजाना खाली होने के कारण उसे आते ही 1500 करोड़ रुपए कर्ज लेना पड़ा और मार्च तक 1500 करोड़ रुपए कर्ज फिर लेना पड़ेगा, तभी सरकारी खर्चों को पूरा किया जा सकेगा। एनपीएस से ओपीएस में आए 1.36 लाख कर्मचारी सरकार की ओर से एसओपी जारी होने का इंतजार कर रहे हैं। इसको तैयार करने के लिए वित्त विभाग लगातार मंथन कर रहा है। एसओपी के जारी होने पर ही यह स्पष्ट हो पाएगा कि प्रदेश में पुरानी पैंशन को नए सिरे से बहाल करने का क्या प्रारूप रहेगा।
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Shantanu Roy
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