हरियाणा
फोटोग्राफर के मुआवजे को हाई कोर्ट ने बढ़ाकर किया 21 लाख, सड़क दुर्घटना में गवाया था पैर
Shantanu Roy
28 Nov 2022 6:23 PM GMT
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चंडीगढ़। एक फोटोग्राफर को न केवल अपने पोर्टफोलियो में विविधता लाने के लिए अलग-अलग जगहों पर जाने की आवश्यकता होती है, बल्कि इसके अलावा उसे अलग-अलग कोणों से अलग-अलग विषयों को कवर करने की भी आवश्यकता होती है, जिसके लिए फुर्तीली चाल की आवश्यकता होती है, दुर्घटना के कारण हुई अपंगता निश्चित रूप से उसके व्यवसाय को कुशलतापूर्वक आगे बढ़ाने की क्षमता को प्रभावित करेगा, यह टिप्पणी पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने रोडवेज बस के कारण दुर्घटना का शिकार होकर अपनी एक टांग खोने वाले एक फोटोग्राफर का मुआवजा बढ़ाकर 21 लाख रुपये करने का आदेश देते हुए की। कोर्ट ने कहा कि फोटोग्राफर का काम एक कुशल व्यवसाय है न कि एक अकुशल व्यवसाय, इसलिए इस मामले में उसे उसके काम के अनुसार मुआवजा मिलना चाहिए। हाईकोर्ट के जस्टिस हरकेश मनुजा ने फोटोग्राफर को दी जाने वाली मुआवजा राशि को करीब 10.27 लाख रुपये से बढ़ाकर 21 लाख रुपये करते हुए यह आदेश पारित किया है। बता दें कि कैथल के एक फोटोग्राफर सुरेंद्र कुमार ने मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (एमएसीटी), कैथल द्वारा पारित 22 अप्रैल, 2016 के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। अपीलकर्ता जो पेशे से फोटोग्राफर था, 11 जनवरी, 2015 को हरियाणा रोडवेज की बस में सवार होकर कुरुक्षेत्र से कैथल वापस आ रहा था। बस जब बस स्टैंड कैथल पहुंची तो चालक ने बस को रोक लिया। जब सुरेंद्र कुमार उतर रहा था उसी समय चालक ने बगैर कोई कोई संकेत दिए, तेज गति से बस को चला दिया जिस कारण वह सड़क पर गिर गया और बस का पिछला पहिया उसके दाहिने पैर के ऊपर से निकल गया।सुरेंद्र कुमार ने दावेदार होने के नाते रोडवेज चालक पर तेज रफ्तार व लापरवाही से वाहन चलाने का आरोप लगाते हुए एमएसीटी कैथल के समक्ष 20 लाख रुपये मुआवजे की मांग करते हुए एक दावा याचिका दायर की। एमएसीटी कैथल ने सभी पक्षों को सुनने के बाद उसके पक्ष में 10.27 लाख रुपये की राशि मुआवजा जारी करने का आदेश जारी किया। अपीलकर्ता की दलील थी कि उसका दाहिना पैर घुटने के नीचे से कट गया, इसलिए यह राशि कम है उसका मुआवजा बढ़ाया जाए। हाई कोर्ट में दायर अपील में सुरेंद्र कुमार ने कहा कि एमएसीटी ने सभी तथ्यों को अनदेखा किया है, उसके दर्द और पीड़ा, भविष्य के चिकित्सा व्यय के साथ-साथ उसके कृत्रिम अंग के लिए कोई मुआवजा नहीं दिया गया। वह अपना काम करने में असमर्थ हो गया है। याचिका में कहा गया कि उसे 80 प्रतिशत स्थायी विकलांगता का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि, यह आन रिकार्ड कि अपीलकर्ता के पास कृत्रिम अंग है और तकनीक के कारण उसका जीवन आसान हो गया। लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता है कि इस अक्षमता के कारण, अपीलकर्ता अपने व्यवसाय को कुशलतापूर्वक आगे बढ़ाने में पहले की तरह सक्षम नहीं रहा।
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